राजेश झरपुरे यानि सदाबहार कवि -कथाकार
*********

कविता को लोग इसलिए अपना हमदम अपना दोस्त मानते हैं कि यह सभी के मन में भी चल रहे सुहाने सुहाने विचारों को सहलाती है।वह हमारी भावनाओं को, हमारे अनुभवों को और मनोकामनाओं का समर्थन करते हुए हमारी तरफ से कवि के शब्दों के सहारे एक भाषाई आकार में सबके सामने होती है।वह हमारे ही अवचेतन की संवाहक होती है।समय के इस इस हिस्से में कवियों की एक विशाल बिरादरी इस मोर्चे पर डटी रहकर सच्ची सच्ची बातें भावनाओं की स्याही से लिख रही है।असंवेदनी लोगों के लिए झकझोर देने वाली बातें कविता के वस्त्र पहनकर एक किताब की आकर्षक पैकिंग में जब आतीं हैं तो सब उसका मुस्कराती आंखों से स्वागत करते हैं।मैं एक ऐसी ही किताब का जिसका नाम कुछ इस तरह है का कुछ इस तरहस्वागत कर रहा हूं,कि विभोर हो रहा हूं,पाठक के रूप में दूसरा छोर हो रहा हूँ,क्योंकि इसकी कविताओं को लिखा है अजीज़ दोस्त राजेश झरपुरे ने और छापा है रश्मि प्रकाशन का नाम देकर हरे प्रकाश उपाध्याय ने।कीमत भी दो सैकड़ा रूपयों में से पच्चीस कम रखी है तो यह एक सामान्य पाठक के जेब पर भारी नहीं पड़ेगी।

रसधार बरसाने वाली कविताओं के मुंतज़िर भंवरों को भी इस संग्रह की कतिपय कविताएं पसंद आएंगी,इसमें संदेह है,लेकिन उन्हें इन अलंकृत कविताओं में भी नीम का रस मिलेगा जो वाकई नीम के कीड़े हैं।यह सुखद है कि अब समकालीन कविता के पाठक गुणोत्तर श्रेणी में बढ़ रहे हैं।ऐसे पाठकों के लिए यह किताब खूब रूचेगी,वे अपनी निजी पुस्तकालय से इस पुस्तक को कभी बेदखल नहीं करना चाहेंगे,जब कभी भी उन्हें,सफल आदमी,रिटायर होते आदमी,असफल आदमी,वह आदमी,खनिक भाई, पिता,गुंडा और छोटी बहन के बारे में,खेलने के बजाय लड़ना सीखते बच्चों और मृत्यु,प्रेम,राजा,डर,दौड़ आदि के बारे में एक संवेदनात्मक ,गहन,भावुक विचार पढ़ना होगा,वे इसे तलाशेंगे।वे तलाशेंगे कुछ ऐसे सूत्र वाक्य

डरो मत
यह समय डर का नहीं
अपने समय के जयकारे लगाने का है।

या ऐसी पंक्तियां जिनमें एक बुदबुदाहट है

आप अकेले
हंस नहीं सकते
हंसने के लिए लेना होगी
अनुमति अनिवार्य

ऐसी अनेक व्यंजनाऐं राजेश के इस कविता संग्रह में हैं।मगर ये कविताएं कविताओं की परिचित चेहरे में ही शामिल हैं।कविता के चिर परिचित क्राफ्ट का एक और नमूना इन कविताओं के बहाने कविता कोश को मिला।यह प्राप्ति आश्वस्ति भी है।
मोहन कुमार डहेरिया कवि के हमशहर और हमसफर होने के नाते यह सममति देते हैं तो यह भरोसा किया जा सकता है कि राजेश झरपुरे की सचमुच ही काव्य संवेदना बहुआयामी है।वह मनुष्य की कोमल भावनाओं के साथ चलते हुए वर्जित क्षेत्र में भी उन्हें ले जाकर प्रेम पर कविताएं लिखते हैं।प्रतिरोध करके शब्द के हथियार को आजमाते हैं।वह कहानीकार होते हुए भी कविता की दुनिया में सधे कदमों से आवाजाही करते हैं।इस संग्रह को पढ़कर हम चकित होते हैं कि राजेश झरपुरे दोनों विधाओं के विषयों को अलग अलग करने का और उनका निबाह एक निष्णात की तरह कर पाने का हुनर रखते हैं।

       ब्रज श्रीवास्तव

 

Adv from Sponsors