उपमुख्यमंत्री से सीधे मुख्यमंत्री का ख्वाब देख रहे राजस्थान के पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की स्थिति इन दिनों ..धोबी का कुत्ता घर का न घाट का.. कहावत वाली हो गई है अदालत का फैसला चाहे जो आए लेकिन पायलट बिल्कुल अधर झूल में लटक गए हैं क्योंकि यदि उनके पक्ष में अदालत फैसला देती है तो वह कांग्रेस के सदस्य रहेंगे और जब विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होगा तो उन्हें कांग्रेस का सदस्य माना जाएगा जिसके चलते उन्हें अशोक गहलोत की सरकार को वोट देना पड़ेगा और यदि वे वोट नहीं देते हैं सरकार के खिलाफ वोट करते हैं तो दल बदल कानून के तहत उनकी विधानसभा सदस्यता ही रद्द हो सकती है और यदि वे पार्टी छोड़कर नई पार्टी बनाते हैं तो भी दल बदल कानून उन पर लागू रहेगा भाजपा में भी जा नहीं रहे हैं क्योंकि उन्होंने घोषणा की है कि वे किसी भी सूरत में भाजपा ज्वाइन नहीं करेंगे ऐसे में अदालत का फैसला पायलट के खिलाफ आता है तो विधानसभा अध्यक्ष उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेंगे और उनकी विधानसभा सदस्यता तक रद्द कर सकते हैं या फिर वे अपमान का घूंट पीकर कांग्रेस में बने रहे और गहलोत सरकार के अंदर साधारण विधायक के रुप में काम करते रहे या एक और ऑप्शन के उनके पास है वह राजस्थान विधानसभा से इस्तीफा दे दे और केंद्र की राजनीति में चले जाएं जहां पर कांग्रेस के डूबते जहाज को जी जान लगाकर वापस अपना खोया हुआ सम्मान प्राप्त कर सकें कुल मिलाकर सचिन पायलट ऐसे दोराहे पर आ गए हैं कि चाहे जिधर जाए नुकसान उनका अपना ही है क्योंकि उन्होंने जल्दबाजी में जो फैसला लिया है उसके चलते उन्होंने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है इंसान को महत्वकांक्षी होना चाहिए पर व अति महत्वाकांक्षा कभी-कभी मनुष्य को ले डूबती है और सचिन पायलट के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है देखना होगा कि आज शाम तक अदालत का फैसला क्या आता है वह किसके पक्ष में आता है या फिर अदालती कार्रवाई उसी ढर्रे पर जाती है जैसा कि कई फैसलों के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है फिलहाल मामला न्यायालय में इसलिए कुछ भी लिखना अतिशयोक्ति होगी

बी एल सरोज

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