डॉ राम मनोहर लोहिया के नोर्थ ईस्ट प्रवेश सत्याग्रह के 60 साल होने के उपलक्ष में यह लेख लिखने की प्रेरणा हूई !

डॉ राम मनोहर लोहिया और हमारी हिमालय नीति !

भारतीय समाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में देश दुनिया के सवालो पर इतनी गहराई से सोच -विचार करने वाले लोगों में से एक डॉ लोहिया थे ! हिमालय हमारा प्राकृतिक रक्षा की दीवार वाली बात को एक सिरे से नकारते हुए हजारों-हजार सालो से किस तरह हिमालय को पार करते हुए विदेशियों का आना जाना होता था वर्तमान समय का आसाम या पूरा नोर्थ-ईस्ट जिसे वो उर्वसियम कहते थे (उस समय प्रशासकीय नाम नेफा होता था !)

ओहोम,मिसिंग,बोडो,खासी,गारो,नागा,कर्बीयो से लेकर सभी आदिवासियो का आगमन किस तरह से होता आया है और यह विभिन्न वेष-भूषा,खान- पान ,और बोली भाषा वाले लोगों के बीच खुद जाकर उनके साथ रहने के बाद लोहिया जी का निरीक्षण आज से 60-70 साल पहले का है लेकिन वर्तमान नोर्थ-ईस्ट समस्या से इतना पहले से ही उन्होंने आगाह करने का काम किया है लेकिन हमारे देश में सत्ता मे बैठने वाले लोगों के इगो के कारण वे अन्य किसी की भी सलाह या बातों पर ध्यान नहीं देते हैं ! जो आज भी प्रासंगिक है !

लोहिया ने सम्पूर्ण हिमालय की बात की है जिसमे तिब्बत,नेपाल,भुटान,ब्रह्म देश (वर्तमान म्यांमार),पाकिस्तान, लद्दाख,अफगानिस्तान,पी ओ के,अक्साई चीन का भी समावेश किया है और वह बिलकुल सही कहा है क्योंकि हिमालय हमारे और अड़ोस-पड़ोस के सभी देशों को किसी न किसी रूप मे असर पड़ने वाला पहाड़ होने के कारण उसके बारे मे समग्रता से सोच-विचार लोहिया जी ने किया है !

1962 को चीन के हमले के10-15 साल पहले से लोहिया भारत सरकार को चेतावनी दे रहे थे ! अक्तूबर 1962 के भी पहले याने चीन की क्रांति के बाद तुरंत ही माओ ने एडगर स्नो को दिये गये साक्षात्कारों मे साफ शब्दों में चीन की विस्तार वादी बात उह्नोने कही है ! जिसे लोहिया बार बार दोहरा कर भारत सरकार को बताने की कोशिश किये थे लेकिन सरकार ने अनदेखी की है ! चीन ने तिब्बत को हथियाने की बात का लोहिया ने पुरजोर विरोध किया और भारत सरकार को भी विरोध करने के लिए कहा लेकिन विरोध करना तो दूर की बात उल्टा तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता दे दी गई ! लोहिया ने कहा भी कि कश्मीर से ज्यादा तिब्बत का सामरिक महत्व है और उसे स्वतंत्र रूप मे रहने देना भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है आगे जाकर उन्होंने कश्मीर के लोगों के सार्वमत (plebiscite) कराकर जो भी निर्णय होगा उसके अनुसार जाने की बात की है लेकिन लोहिया की बात की अनदेखी की गई ! आज की नोर्थ ईस्ट की समस्या से यह बात जुड़ी हुई है ! इसलिए अरुणाचल ,लद्दाख,अक्साई चीन,पी ओ के,कारगिल, सिक्किम,कैलाश मानसरोवर के सवाल झेलने पड रहे हैं !

भारत में विदेशी आक्रमण का एक कारण लोहिया जातीवाद भी मानते थे उनका कहना था कि कुछ चंद ऊँची जातियो को छोडकर सबसे नीचे के पायदानों पर की जातीया हमेशा उदासीन रही है सबसे बड़ी बात उह्ने शस्र धारण करने की मनायी और गैर बराबरी के कारण उन्हें नया आने वाला शासक शायद कुछ रियायत दे सकता इस आस मे उसका पुरजोर विरोध नहीं किये होंगें दूनियाँ के किसी भी देश के हिस्से मे इतना विदेशिओं के आक्रमण का इतिहास नहीं दिखाई देता है ! हजारों सालों से सतत आते रहे और शेकडौ साल राज करते रहे हैं ! सही मायनों में देखा जाए तो भारत का आजादी का समय कम और गुलामि का ज्यादा निकलता है !

डॉक्टर साहब ने बार बार कहा है कि जब तक गैर बराबारी जारी रहेगी तब तक भारत कभी भी खुशहाल नही रह सकता क्योंकि सदियो से कुछ चंद लोगों के पास सम्पत्तियों का अम्बार और बहुत बडी आबादी साधन संपत्ति से वंचित और आज तो गैरबराबरी बेतहाशा बढ़ रही है तो ऐसे मुल्क मे भला कभी शांति नहीं हो सकती है नोर्थ ईस्ट को लेकर भी उह्नोने यही बात जोर देकर कही है ! और आजके नोर्थ ईस्ट के आसन्तोष के कारण भी यही है दंडकारण्य के आदिवासियों के तथाकथित नक्सलवाद के भी ! और तब और देश के दूसरे हिस्सों में चल रही हिंसा के भी कारण यही वजह से है ! उसे जानबूझकर सम्प्रदायिक रंग दिया जा रहा है ताकि लोग असलियत को न जाने !
आज नोर्थ ईस्ट के सवाल को ऊपर से देखने वालोको तो घुसपैठियो का सवाल बताकर पल्ला झाड़ लिया है वास्तविक नोर्थ ईस्ट में साधन सम्पत्तियों के मालिक कोलकाता,मुम्बई और कुछ तो विदेश में रहते हैं और उनके जमिन पर खडे हुए चायके बागानों,लकडी,तेल,कारखनो मे में काम करने वाले लोगों को बाहरी बोलकर एन आर सी जैसे सतही उपाय करने की सस्ती लोकप्रियता हासिल कराकर असली मुद्दो से लोगों का ध्यान हटाने की साजिश है !

दूसरी बात उह्नोने आजादी के बाद नोर्थ इस्ट मे आने जाने कि पाबंदियों पर की है जो उह्नोने खुद तोडने की कोशिश की है ! 23 नवम्बर 1959 को तिनसुकिया (देवमाली) में बेन्गॉल रेगुलेशन एक्ट के तहत अपराधी मानकर हिरासत में लिया ! जिसे इस साल हप्ते भर मे 60 साल हो रहे हैं ! फिर चार दिन बाद 27 नवम्बर को उह्नोने दोबारा कोशिश की तो फिर हिरासत में लिया गया ! तो उह्नोने प्रेस कांफ्रेंस में कहा की भारत सरकार की चिनको रोकने की क्षमता नहीं है लेकिन मेरे जैसे भारतीय को जो निशस्र,असहाय और महत्वहीन व्यक्ति के सामने सरकार अपनी ताकत दिखा रही है ! जान बूझकर शेष भारत से उर्वसियम को अलग रखने की कोशिश में तिब्बत जैसा ही उर्वसियम चीन के कब्जे मे चला जाएगा मुझें जानकारी मिली है कि 1953-54 मेही हमारे सीमा से 80 मैल क्रॉनिली तक आकर वहाके आदिवासियो में माओ के चित्र बाटकर गये हैं ! यह 24 नवम्बर 1959 को प्रकाशित पत्र हैं !

डॉक्टर साहब ने सबसे चौकाने वाले तथ्य पर ध्यान खींचा है कि उर्वसियम विदेश मंत्रालय के तहत क्यो है ? इसपर अपनी आपत्ति दर्ज की है और बडे ही व्यंग्यात्मक ढंग से कहा कि एक दिन माओ कहेगा की यह प्रदेश आपके विदेश विभाग में है इसलिए उसपर अपना हक जताने का क्या मतलब होता है ?

१९६२ के उत्तरार्ध मे चीन ने इसी उर्वसियम पर हमला किया था उसके तुरंत बाद लोहिया पहले विरोधि पार्टी के नेता थे जिन्होंने 1963 में जाकर खुद युद्ध के बाद की स्थिति का आकलन करने के लिए गये थे इस बार उह्ने सरकार ने नहीं रोका ! उसपर डॉक्टर साहब की टिप्पणी काफी हैरान करने वाली है हमारी सेना के अफसरान कैसे नालायक थे अपनी खुद की जान बचाने के चक्कर में उह्नोने यह युद्ध हारनेके कारणो मे एक कारण बताया और आगे जाकर उह्नोने कहा कि ज्यादातर अफसर ऊँची जातियो तथा उच्च आय वर्ग से संबंधित होनेके कारण स्वार्थी होते हैं और खुद की और अपने परिवार की जान बचाने की कोशिश में राष्ट्रीय सुरक्षा का जिम्मा ठीक से नहीं निभाया और तेजपूर के कलक्टर के गायब होने की वजह सिर्फ अपने घर परिवार के सदस्यों को बचाने वह विशेष विमान से कलकत्ता भाग गया था !

सिविल सर्विस के बारे मे भी डॉक्टर साहब ने काफी कडी टिप्पणी की है उनका कहना था कि यह हमारे देश के नये राजा महाराजा है जो कि सिर्फ 200 परिवारो से है और यही भारतीय प्रसासन सेवा में घुसे हुये हैं पहले अन्ग्रेजो के सेवा में लगे हुए थे अब देशी अन्ग्रेजो की सेवा में है ! भारतीय नागरिक समाज से ये कोसो दूर है और जानबूझ कर प्रशासन की भाषा अन्ग्रेजी में रखते हैं ताकि आम जनता को गुमराह कर सके! उनके लिए भारतीय जनताके पसीने की कमाई से तन्ख्वाह,भत्ते और अन्य सहूलियत आजादी के बावजूद बदस्तूर जारी हैं ! और काम करने के तरीकों में कोई फर्क नहीं है ! और भारत सरकार ने भी इनके बारे में कुछ भी बदलाव नहीं किया है यह और गम्भीर बात है ! काम से काम आजादि के बाद कुछ बदलाव लाना चाहिए था लेकिन वर्तमान सरकार उह्ने नाराज नहीं करना चाहती !

62 के युद्ध को लेकर डॉक्टर साहब ने जनरल कौल की भी काफी आलोचना की है जनरल कौल ने तेजपूर खाली करने के लिए कहा यह भी एक कारण हो सकता है ! चिनके ६२ के हमले के बाद शायद ही कोई राजनेता हैं जिसने युद्ध के बाद तुरंत युध्दग्रस्त भुमिपर जाकर अपनी जान जोखिम में डालकर प्रत्यक्ष आकलन करने की कोशिश की हो इसलिए लोक सभा में चीन के युद्द को लेकर बहुत विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि भारत सरकार द्वारा क्या क्या गलतीया हुई थी ! वी पी मेनन और प्रधान-मंत्री जवाहरलाल नेहरू की सबसे ज्यादा क्यौंकि लोहिया का आरोप था जवाहरलाल नेहरु चिनके बारे मे बहुत अव्यहारीक थे चौएनलाई के प्रभाव मे आकर भारत पर चीन युध्द करने वाला है इसकी भनक तक नहीं लगने दी ! इसी पर डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के लोक सभा तथा अन्य जगहों पर दिये हुए भाषण वक्तव्य तथा लेखन को हिमालय नीति का नाम पडा होगा जो आज भी प्रासंगिक है !

क्योंकि चीन अब महासत्ता बन चुका है उसकी साम्राज्यवादी आदत पहले से ज्यादा बढ़ी है और काराकोरम से जाने वाले महामार्ग जो पी ओ के से होते हुए बलूचिस्तान के ग्वादार पोर्ट तक बना दिया है जो सामरिक दृष्टि से भारत के लिए खतरनाक है इस पर वर्तमान भारत की सरकार बिलकुल चुप्पी साधे हुए हैं ! उल्टा हमारे प्रधान-मंत्री देश विदेश में इतनी बार चिनके राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलते रहते हैं अभी अभी ब्रिक्स देशों के संम्मेलन मे मिले हैं लेकिन लगता नहीं है कि उह्नोने इस बात को उठाया है !चीन की चालों को और छल कपट की राजनीति को बहुत सावधानी पूर्वक अवलोकन करने की जरूरत है ! डॉक्टर साहब के 60-70 साल पहले ही चीनी चाल चलन को लेकर दिए दिए सलाह मशविरा आज भी प्रासंगिक है ! यही उनके उर्वसियम के सत्याग्रह की षष्ठी का सही स्मरण हो सकता है !

डॉ सुरेश खैरनार,नागपुर

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