एक साजिश के तहत किसी भाषा को खत्म करने की कूटनीति ऐसे समय की गई है, जब इस नाइंसाफी के खिलाफ एकजुट खड़े होकर आवाज उठाने की इजाजत भी किसी को नहीं है। देश के अलग-अलग सूबों में विभिन्न तरह की भाषाएं बोली जाती हैं और सरकारी भाषा के रूप में प्रचलित भी हैं। ऐसे में हिन्दी राज्यों में दूसरे दर्जे का मुकाम रखने वाली उर्दू भाषा को हाशिये पर ला दिया जाना, किसी गंदी सियासत का हिस्सा ही कहा जा सकता है।

संस्था मुहिब्बान-ए-उर्दू द्वारा आयोजित एक फिक्र करने वाली बैठक के दौरान रामप्रकाश त्रिपाठी ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि हिन्दी लेखन की भाषा है तो उर्दू उसको खूबसूरत बनाने का काम करती है। आम बोलचाल में हिंदी के साथ उर्दू का मिश्रण करने पर ही बात मुकम्मल हो पाती है। न शुद्ध रूप से कही गई हिंदी भाषा किसी को संतुष्ट कर सकती है और न ही पूरी तरह से खालिस उर्दू ही किसी को तसल्ली दे सकती है। अगर उर्दू को दरकिनार किया गया तो हिंदी का हुस्न खराब हो जाएगा। उन्होंनें कहा कि उर्दू को शिक्षा नीति से अलग किए जाने का असर रोजगार और नौकरियों पर भी पडऩे वाला है। त्रिपाठी ने कहा कि किसी खास एजेंडे के तहत किए जा रहे काम के दौरान एक कौम खास को लक्ष्य बनाकर किए गए इस काम का असर कई तरह से आने वाला है।

उन्होंनें कहा कि यह शिक्षा नीति बनाने वालों और किसी व्यक्ति या संस्था विशेष को खुश करने के लिए किए गए इस कृत्य को करने वालों को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि उर्दू किसी कौम की जुबान नहीं है, बल्कि इसको इस्तेमाल करने वालों में हिन्दू धर्म के अनुयायी ज्यादा हैं। इस मौके पर नई शिक्षा नीति में उर्दू को दरकिनार किए जाने को लेकर उर्दू के मुहब्बत करने वालों में शामिल इकबाल मसूद, विजय तिवारी, अली अब्बास उम्मीद, रजा दुर्रानी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए उर्दू के होने वाले दोगलेपन की कड़ी निन्दा की। सोशल डिस्टेंस के साथ की गई इस मीटिंग में तय किया गया कि इस बदलाव को रोकने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यपाल को ज्ञापन देकर इस स्थिति पर पुनर्विचार करने की मांग की जाएगी। कार्यक्रम को लेकर जानकारी जावेद बेग ने दी। कार्यक्रम का संचालन बद्र वास्ती ने किया।

खान अशु, भोपाल ब्यूरो

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