डीयू  कुलपति नियुक्तिविवाद
चौथी दुनिया के 21-27 दिसंबर 2009 के अंक में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति दीपक पेंटल की नियुक्ति से जुड़े विवाद पर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें यह खुलासा किया गया था कि कैसे 2005 में दीपक पेंटल की नियुक्ति में तमाम नियम-क़ानूनों को ताक़ पर रख दिया गया था. रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद भी चौथी दुनिया ने पेंटल की नियुक्ति से संबंधित दस्तावेज़ों की पड़ताल जारी रखी. उसी जांच-पड़ताल के दौरान चौथी दुनिया को इस नियुक्ति प्रकरण से संबंधित कुछ और ऐसे अहम दस्तावेज़ हासिल हुए हैं, जिनके आधार पर यह साबित होता है कि दीपक पेंटल अभी भी दिल्ली विश्वविद्यालय एक्ट 1922 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए कुलपति पद पर क़ाबिज़ हैं.

मैंने डीयू प्रशासन से सूचना अधिकार क़ानून के तहत पूछा कि क्या डीयू एक्ट 1922 की धारा 45 के मुताबिक़ पेंटल के पास कोई लिखित अनुबंध है? इस पर मुझे बताया गया कि इस तरह का कोई अनुबंध उपलब्ध नहीं है. ज़ाहिर है, पेंटल ग़ैरक़ानूनी ढंग से अपने पद पर बने हुए हैं.

दरअसल, डीयू एक्ट 1922 की धारा 45 के तहत किसी भी वेतनभोगी अधिकारी और डीयू के बीच एक लिखित अनुबंध होता है. एक्ट के प्रावधानों के तहत इस क़रार की एक-एक कॉपी उस अधिकारी और डीयू प्रशासन के पास होती है. ग़ौरतलब है कि डीयू एक्ट की धारा आठ के तहत कुलपति, अधिकारी की श्रेणी में आता है और क़ानून 11 (एफ)(3) के मुताबिक़ कुलपति पूर्णकालिक वेतनभोगी अधिकारी होता है. लेकिन जब सूचना अधिकार क़ानून के तहत डीयू प्रशासन से दीपक पेंटल और उसके बीच हुए लिखित अनुबंध की कॉपी के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला कि इस तरह का कोई अनुबंध उपलब्ध नहीं है. ज़ाहिर है, जब अनुबंध होगा ही नहीं तो उसकी कॉपी कहां से उपलब्ध होगी. डीयू एक्ट के जानकार मानते हैं कि लिखित अनुबंध के बिना पद पर बने रहना ग़ैरक़ानूनी है, लेकिन जब कोई सवाल उठाने वाला ही न हो तो ऐसी गतिविधियां भला कैसे रुक पाएंगी? डीयू टीचर्स एसोसिएशन (डूटा) के अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्रा से जब इस मामले पर चौथी दुनिया ने बात करनी चाही तो उनका कहना था कि यह सब टेक्निकल मसला है. इससे भी कई अहम मसले हमारे पास हैं, जिन पर बात की जा सकती है. ज़ाहिर है, मसले तो कई हैं, लेकिन किस मसले को तूल देना है और किसे नहीं, यह रणनीति भी बख़ूबी समझी जा सकती है. शायद तभी 2005 में जब नियुक्ति की जा रही थी तो किसी को भनक तक नहीं लगी कि कैसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नियमों की अनदेखी करते हुए दीपक पेंटल को डीयू का कुलपति बनवा दिया. चौथी दुनिया के पास पेंटल की नियुक्ति से जुड़ी वह फाइल है, जिससे साबित होता है कि यह नियुक्ति विजिटर के हस्ताक्षर के बग़ैर हुई है. डीयू के विजिटर राष्ट्रपति होते हैं, जो कुलपति की नियुक्ति करते हैं. लेकिन पेंटल की नियुक्ति से संबंधित पूरी फाइल की जांच में ऐसा कोई पत्र नहीं मिला, जिससे पता चल सकेकि पेंटल को कुलपति नियुक्त करने के लिए विजिटर के हस्ताक्षर से कोई आदेश या पत्र जारी किया गया हो.

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