tunna-ji-pandey3-copyबिहार में विधान मंडल अधिवेशन के ठीक पहले राजनीतिक चाल का पासा बदला हुआ दिख रहा है. सूबे का मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और इस लिहाज से एनडीए बचाव में है. भाजपा और इसके सहयोगी दल महागठबंधन के विधायकों पर उच्छृंखल व गैर-सामाजिक आचरण के आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन इस बार भाजपा खुद बैकफुट पर है. इसके विधान परिषद सदस्य टुन्नाजी पांडेय को चलती ट्रेन में नाबालिग से छेड़खानी के आरोप में जेल भेज दिया गया है.  हालांकि भाजपा ने घटना के कुछ ही घंटों के भीतर टुन्नाजी पांडेय को पार्टी से छह साल के लिए निलंबित कर दिया और कारण बताओ नोटिस जारी कर उससे जवाब तलब किया गया है. पार्टी ने जांच के लिए एक कमिटी भी गठित कर दी है. इस मामले में अब भाजपा के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है, सिवाय खुद के बचाव के. ऐसे मामलों में वह सत्तारूढ़ महागठबंधन के दल, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल(यू) और कांग्रेस से अपने को बेहतर साबित करने में जुटी है. ट्रेन में महिला से छेड़खानी के आरोपित विधायक सरफराज आलम पर कार्रवाई करने में जद (यू) को दो दिन लगे थे, जबकि नाबालिग से बलात्कार के आरोपित विधायक राजवल्लभ यादव पर कार्रवाई करने में राजद को कोई एक सप्ताह का वक्त लग गया. वहीं, कांग्रेस ने तो महिला को अगवा करने के आरोपित अपने विधायक सिद्धार्थ शर्मा पर कोई कार्रवाई ही नहीं की.

भाजपा के एमएलसी पूर्वांचल एक्सप्रेस से दुर्गापुर (पश्‍चिम बंगाल) से आ रहे थे. उसी कोच के एक यात्री थाईलैंड के भारतीय व्यवसायी विजयप्रकाश पांडेय की बारह वर्षीय पुत्री ने विधान पार्षद पर छेड़खानी का आरोप लगाकर रेल पुलिस में मामला दर्ज कराया. आरोप है कि एमएलसी ने लड़की को चूमने की कोशिश की, और भी कुछ कहा. हाजीपुर में रेल पुलिस ने टुन्नाजी को गिरफ्तार कर लिया. अदालत से उसे चौदह दिन की न्यायिक हिरासत मिली है. टुन्नाजी का आरोप है कि उसे साजिशन फंसाया गया है. एमएलसी का कहना है कि बोगी में अंधेरा था और मोबाइल का चार्जर निकालने के लिए उन्होंने लाइट जलाई थी. एमएलसी को इस बात पर भी आक्रोश है कि पार्टी ने एकतरफा कार्रवाई की, उसका पक्ष तक नहीं सुना. आरोपित टुन्नाजी पांडेय पर कार्रवाई के बावजूद भाजपा पर विपक्ष के हमले जारी हैं. हालांकि इसी समय बड़हड़िया (सीवान) के जद (यू) विधायक श्याम बहादुर सिंह पर जिले के पंचरूखी थाने में जिले के दो डॉक्टरों की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई. डॉक्टरों का आरोप है कि उन लोगों ने पंचरूखी में जमीन खरीदी है, जिस पर विधायक कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं. इसके एवज में वह बीस लाख रुपए की रंगदारी मांग रहे हैं. ये वही श्याबहादुर सिंह हैं, जिनके बार-बालाओं के साथ भोंडे नाच के वीडियो पिछले दिनों वायरल हुए थे.

टुन्नाजी पांडेय महिलाओं के साथ आपराधिक आचरण करने के मामले में मीडिया की सुर्खियां बटोरने वाले पहले जनप्रतिनिधि नहीं हैं. विधानसभा चुनाव के बाद महिला पर अपराध (बलात्कार, अपहरण, छेड़खानी, बदसलूकी) का पहला आरोप जद (यू) विधायक सरफराज आलम पर लगा था और उसे पार्टी से निकाल दिया गया. दिल्ली की एक महिला ने आलम पर  गुवाहाटी राजधानी में यात्रा के दौरान  बदसलूकी का आरोप लगाया था. उत्तर-पूर्वी बिहार के बाहुबली नेता तस्लीमुद्दीन के पुत्र सरफराज आलम की खुद की पहचान भी साफ-सुथरी नहीं है. इस प्रकरण में उन्हें गिरफ्तार किया गया था, पर जमानती धाराएं होने के कारण थाने से ही जमानत मिल गई. इस मामले में स्पीडी ट्रायल की बात कही गई थी, लेकिन सात महीने गुजर जाने के बावजूद इसकी तफ्तीश भी पूरी नहीं हुई है. हालांकि सरफराज आलम के इस कारनामे के सामने आने के बाद जद (यू) ने उन पर कार्रवाई की और पार्टी से छह साल के लिए निकाल दिया. पर, ऐसा करने में जद (यू) नेतृत्व को दो दिन का वक्त लग गया. कांग्रेस के विधायक सिद्धार्थ शर्मा के कारनामे भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं. पटना के एक नामचीन शिशुरोग विशेषज्ञ डॉक्टर के इस बिगड़ैल विधायक पुत्र पर एक बालिका के अपहरण का मामला दर्ज कराया गया था. चार दिन बाद अगवा युवती और विधायक थाने में नमूदार हुए. युवती ने मीडिया को बताया कि उसका अपहरण नहीं हुआ है. विधायक जी के चालक से उसका प्रेम-संबंध रहा और वे दोनों शादी करना चाहते थे. राजद विधायक और राबड़ी सरकार के पूर्व मंत्री राजवल्लभ प्रसाद यादव ने तो अब तक का रिकॉर्ड ही तोड़ दिया. नाबालिग लड़की के बलात्कार के आरोप में वह अभी जेल में बंद है. बिहारशरीफ की एक नाबालिग लड़की को झांसा देकर नवादा ले जाया गया. उसके साथ बलात्कार करने का आरोप राजवल्लभ पर है. इस प्रकरण में राजवल्लभ पर कार्रवाई करने में राजद को एक हफ्ता लग गया था. उसे दल से छह साल के लिए निकाला गया.

राजवल्लभ प्रसाद यादव, सिद्धार्थ शर्मा, सरफराज आलम और टुन्नाजी पांडेय में क्या समानता है? वस्तुतः चारों में एक बात समान है- ये सभी गैर राजनीतिक रास्ते से राजनीति में आए. धन ने जहां उन्हें राजनीति का रास्ता दिया, वहीं हैसियत और शोहरत भी दी. राजवल्लभ यादव की बलात्कार के एक मामले में फंसने के बाद  उसकी विधानसभा की उम्मीदवारी काट दी गई थी, पर निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद वह फिर लालू दरबार का रत्न बन गया था.

सरफराज आलम के पिता मोहम्मद तस्लीमुद्दीन किसी दौर में लालू प्रसाद के खास लोगों में थे. नीतीश की हवा चलने के बाद वे उनके साथ हो गए. फिलवक्त पिता राजद सांसद और पुत्र जद (यू) विधायक हैं. विधायक बनने से पहले तक सिद्धार्थ शर्मा की पहचान पटना के एक ख्यातिप्राप्त शिशुरोग विशेषज्ञ के पुत्र की ही थी, जो हत्या जैसे संगीन अभियोग में जेल की यात्रा कर चुके हैं. सीवान-गोपालगंज क्षेत्र में टुन्नाजी पांडेय बतौर शराब कारोबारी काफी जाना-पहचाना नाम है. कानून को ठेंगा दिखाने के जनप्रतिनिधियों के आचरण के उदाहरण तो और भी हैं. बिहार के मंत्री अब्दुल गफूर ने बाहुबली सरगना मोहम्मद शहाबुद्दीन से जेल में जाकर मुलाकात की. राजद सुप्रीमो ने उनका बचाव ही किया. बिहार में नई सरकार बनने के कुछ ही दिनों बाद जद (यू) विधायक बीमा भारती पर अपने बाहुबली पति अवधेश मंडल को पुलिस की गिरफ्त से भगाने का आरोप लगा था. जद (यू) की विधान पार्षद मनोरमा देवी पर शराबबंदी कानून के उल्लंघन का तो आरोप लगा ही, आदित्य सचदेवा की हत्या के आरोपी पुत्र को भगाने का भी आरोप लगा. विधायकों के ऐसे कारनामों की फेहरिस्त काफी लंबी है.

वस्तुतः राजनीति में गैर राजनीतिक तत्वों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है. कानून के उल्लंघन का अराजक भाव जनप्रतिनिधियों में पैदा हो गया है, जो सार्वजनिक जीवन में संकट का एक नया कारण बन सकता है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here