sssssssssssयह सवाल देश के तीन जाने-माने नामों से पूछने की इच्छा हो रही है. हालांकि मैं जानता हूं कि इनमें से कोई भी इस सवाल का जवाब नहीं देगा. सवालों का जवाब देने की परंपरा ही ख़त्म हो गई है, क्योंकि हर कोई यही मानता है कि जो वह कर रहा है, वही सही है. अगर कोई जिज्ञासा करे, तो उस जिज्ञासा को ये अपना अपमान मान लेते हैं. लेकिन, फिर भी यह आशा करनी चाहिए कि सवालों या जिज्ञासाओं का जवाब मिलेगा. देश के ये तीन प्रमुख नाम हैं, श्री अन्ना हजारे, श्री रामदेव एवं श्री नरेंद्र भाई मोदी. इन तीनों से सवाल इसलिए पूछना है, क्योंकि इन तीनों की देशभक्ति और जनता के प्रति समर्पण पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता है. पर जब किसी को वक्त या इतिहास या ईश्‍वर इतनी ज़्यादा साख दे कि लोग उनके कहे पर भरोसा करने लगें, तो उनकी ज़िम्मेदारी हो जाती है कि वे लोगों की जिज्ञासाओं का उत्तर दें.
एक समय बाबा रामदेव ने काले धन पर सवाल उठाया और देश में काला धन वापस लाने के लिए आंदोलन की शुरुआत की. वह देश भर में जहां-जहां गए, वहां-वहां सभाएं कीं और कहा कि देश की अगली सरकार पर काला धन वापस लाने की ज़िम्मेदारी है और मैं उसके लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दूंगा, क्योंकि उसके बाद रुपये और डॉलर का फ़़र्क कुछ इस तरह हो जाएगा, मानो एक रुपया डेढ़ डॉलर में मिल रहा है. अब बाबा रामदेव ने यह हिसाब अंतरराष्ट्रीय व्यापार के जानकारों से बात करके ही लगाया होगा. उनके बाद इस सवाल को भारतीय जनता पार्टी के महारथी और उस समय के लौह पुरुष कहे जाने वाले श्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी उठाया और आख़िर में यह सवाल श्री नरेंद्र मोदी ने उठाया. बाबा रामदेव ने इस सवाल को देश के सवाल से बदल कर राजनीतिक सवाल बना दिया. भारतीय जनता पार्टी ने इस सवाल को लपकने की कोशिश की और जब नरेंद्र मोदी ने अपना अभियान शुरू किया, तब उनके मुख्य वक्तव्यों में एक वक्तव्य सरकार बनने पर सौ दिनों के भीतर काला धन वापस लाने के वादे का था.

क्या सुप्रीम कोर्ट भारत के प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री या भारत सरकार को यह आदेश नहीं दे सकता कि देश के बैंकों का कितना पैसा कॉरपोरेट हाउसेज पर बकाया है, उसकी जानकारी दें और अगले छह महीनों में उस पैसे को वापस करने की बात कहें? अगर सुप्रीम कोर्ट यह नहीं कह सकता, तो उसके वे सारे तेवर, जो वह काले धन पर दिखा रहा है, उनका कोई मतलब नहीं है. क्योंकि, तब हमें लगेगा कि उसके तेवर देश के कॉरपोरेट हाउसेज को बचाने का एक तरीका हैं.

इस वादे पर देश के मध्यम वर्ग ने भरोसा किया, क्योंकि मध्यम वर्ग किसी भी तरह अपनी ज़िंदगी में खुशहाली चाहता है. ग़रीब स़िर्फ सपना देखता है, लेकिन मध्यम वर्ग उस चीज को अपने हक़ में होता हुआ देखना चाहता है और वह इसे सपना नहीं मानता. उसने यह माना कि बाबा रामदेव और भारतीय जनता पार्टी का गठजोड़ हो गया है और दोनों एक ही भाषा बोल रहे हैं. उसका मानना था कि निश्‍चित रूप से अगर देश में भाजपा की सरकार बनी, तो वह काला धन वापस लाएगी. भले ही वह सौ दिनों में न ला पाए, लेकिन दो सौ दिनों में तो ज़रूर लेकर आएगी. मध्यम वर्ग ने अपनी सारी ताकत के साथ भाजपा को जिताने में अहम भूमिका निभाई. इतना ही नहीं, मध्यम वर्ग ने दबे-कुचले वर्गों को तैयार करने में भी महत्वपूर्ण रोल अदा किया.
अन्ना हजारे ने अपनी देशव्यापी यात्रा में जनतंत्र लाने के तरीके और जनतंत्र की सही व्याख्या सभाओं में बताई तथा उनके इस अभियान ने तत्कालीन सत्तारूढ़ दल के प्रति लोगों में गुस्सा पैदा किया. अन्ना हजारे द्वारा पैदा किए गए उस गुस्से ने लोगों को भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में वोट डालने के लिए एक सुनिश्‍चित आधार दे दिया. अन्ना हजारे ने अपनी यात्रा में काले धन को लेकर भी बहुत प्रहार कांग्रेस सरकार पर किया. अन्ना हजारे द्वारा पैदा किया माहौल हो या नरेंद्र मोदी द्वारा उठाए गए मुद्दों का असर हो या फिर कुल मिलाकर प्रचार का सफल प्रभाव हो, देश ने पहली बार पिछले 30 सालों में एक पार्टी की सरकार बना दी. अब जब सरकार बन गई, तो देश के वित्त मंत्री तरह-तरह के तर्क देने लगे और मजे की बात ये वही तर्क थे, जो पिछली सरकार में उस समय के वित्त मंत्री चिदंबरम दे रहे थे. वित्त मंत्री के तर्कों पर प्रधानमंत्री की खामोशी समर्थन कर रही थी. बाबा रामदेव की चुप्पी लोगों में संदेह पैदा कर रही थी.
अचानक सुप्रीम कोर्ट बीच में आ गया और उसने काले धन से जुड़े नामों के बारे में एक सख्त रुख अपना लिया. उस सख्त रुख ने इस बहस को दोबारा केंद्रीय बहस बना दिया. ऐसा लगा, मानो जो 627 नाम आए हैं, स़िर्फ उनके पास काले धन की चाबी है. हम उन ख़बरों में नहीं जाना चाहते, जो कहती हैं कि सरकार ने चोरी से एक सूची मंगाई और यह उस सूची से बिल्कुल अलग है, जो सचमुच काले धन के पहरेदारों, काले धन के रखवालों या काले धन के मालिकों की सूची है. यह सूची स्विट्जरलैंड से आई ही नहीं है. स्विट्जरलैंड के तीन बैंक, जिनमें यूबीएस सबसे पहले नंबर पर आता है, उसमें किन लोगों के पैसे जमा हैं, इसकी देश में किसी को चिंता नहीं है और क्षमा कीजिएगा, न इसकी चिंता सुप्रीम कोर्ट को है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट को इस बात के लिए बधाई देनी चाहिए कि उसने सरकार को काले धन पर अच्छा या बुरा रुख लेने के लिए मजबूर किया.
हम सुप्रीम कोर्ट से एक आग्रह करना चाहते हैं और सुप्रीम कोर्ट के बहाने यह आग्रह हम अन्ना हजारे जी, बाबा रामदेव जी और नरेंद्र मोदी जी से भी करना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट से हमारा आग्रह है कि काले धन का तिलिस्म पांच सालों में टूट पाएगा या नहीं टूट पाएगा या बयानों में, एसआईटी की जांच में या सुप्रीम कोर्ट के रिटायर होते जजों की शृंखला में, इसका हल हम कब तक देख पाएंगे, पता नहीं. और, हमारी न्याय व्यवस्था एवं अंतरराष्ट्रीय न्याय व्यवस्था इतनी लचर है कि जितने लोग इस कॉलम को पढ़ रहे हैं, उनके जीवन में तो यह पैसा नहीं आ पाएगा. तो फिर सुप्रीम कोर्ट एक चीज पर ध्यान क्यों नहीं देता? क्योंकि, हमें मालूम है कि न नरेंद्र भाई मोदी, न अन्ना हजारे और न बाबा रामदेव इस पर ध्यान देंगे, पर सुप्रीम कोर्ट ध्यान दे सकता है.
हमारे देश का हज़ारों करोड़ या शायद लाखों करोड़ रुपया हिंदुस्तान के बैंकों ने कर्ज के रूप में देश के औद्योगिक घरानों को दिया है, जिन्हें हम आजकल कॉरपोरेट हाउसेज कहते हैं. यह सारा पैसा ये औद्योगिक घराने या कॉरपोरेट हाउसेज हजम करके बैठ गए हैं. वे बैंकों का पैसा वापस करने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं. अगर यह पैसा ही भारत के बैंकों के पास लौट आए, ब्याज के साथ न सही, अपने मूल में ही आ जाए, तो जो बूस्ट मिलेगा या किक मिलेगी, वह अप्रत्याशित होगी. लेकिन, बैंक भारत सरकार के, बैंकों से कर्ज लेने वाले कॉरपोरेट हाउसेज देश के, उनके नाम बैंकों के पास, बैंकों का पैसा कॉरपोरेट हाउसेज के पास. तो फिर आख़िर उनके नामों की सूची बैंक क्यों नहीं देते? आप आरटीआई डालते रहिए, लेकिन बैंक उसका जवाब नहीं देते. कहते हैं, यह देशहित में नहीं है. देश का पैसा कॉरपोरेट हाउसेज लाखों करोड़ की संख्या में हजम कर जाएं और जब यह पूछा जाए कि किन लोगों ने यह पैसा हजम किया है, किन लोगों ने कितना उधार लिया है, तो उसकी जानकारी न देना देशप्रेम है. क्योंकि, अगर जानकारी देंगे, तो देशद्रोह हो जाएगा. यह कौन-सा तर्क है?
क्या सुप्रीम कोर्ट भारत के प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री या भारत सरकार को यह आदेश नहीं दे सकता कि देश के बैंकों का कितना पैसा कॉरपोरेट हाउसेज पर बकाया है, उसकी जानकारी दें और अगले छह महीनों में उस पैसे को वापस करने की बात कहें? अगर सुप्रीम कोर्ट यह नहीं कह सकता, तो उसके वे सारे तेवर, जो वह काले धन पर दिखा रहा है, उनका कोई मतलब नहीं है. क्योंकि, तब हमें लगेगा कि उसके तेवर देश के कॉरपोरेट हाउसेज को बचाने का एक तरीका हैं.
हम देश के विकास की गति तेज करने के नरेंद्र मोदी के सपने को कमजोर नहीं होते देखना चाहते, हम उसे और मजबूत होते देखना चाहते हैं. यह तभी हो सकता है, जब देश के बैंकों के लाखों करोड़ रुपये, जो कॉरपोरेट हाउसेज के पास हैं और जिनके वापस मिलने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि बैंक भी इसमें शामिल हैं, वापस आ जाएं. दरअसल, बैंकों के चेयरमैन, निदेशक एवं शाखा प्रभारी उन कॉरपोरेट हाउसेज से, जिन्होंने पैसे दबा रखे हैं, सुविधा शुल्क लेकर पैसे दबाने में उनकी मदद कर रहे हैं. और, हम यह आरोप लगा रहे हैं, तो इसके हमारे पास परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं. एक ग़रीब किसान पांच हज़ार रुपये के लिए जेल चला जाता है, अगर वह पैसे वापस नहीं करता. उसकी ज़मीनें कुर्क हो जाती हैं. एक कार मालिक, अगर समय पर किस्तें नहीं दे पाता है, तो उसकी कार उठा ली जाती है. इसके लिए बैंकों ने एक तरीके से दबंग लोगों या कहें कि गुंडों को कमीशन पर रखा हुआ है, लेकिन बैंक उन लाखों करोड़ रुपयों पर खामोश हैं, जो कॉरपोरेट हाउसेज ने दबा रखे हैं. और, वित्त मंत्रालय बैंकों के साथ मिलकर उनकी सूची बाहर नहीं आने दे रहा है, क्योंकि उसे यह डर है कि सूची जैसे ही बाहर आएगी, कोई न कोई पीआईएल कर देगा. तब सुप्रीम कोर्ट को भी इस पर एक रुख लेना पड़ेगा.
हम क्या सुप्रीम कोर्ट से यह आग्रह करें कि आप अगर काले धन पर गंभीर हैं, तो उससे ज़्यादा गंभीरता देश के कॉरपोरेट हाउसेज द्वारा कर्ज के रूप में लिए गए लाखों करोड़ रुपये, जिन्हें सालों हो गए और जिनका वे ब्याज भी नहीं देते, उसे वापस लाने का आदेश दें. क्या हम सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश से यह आग्रह कर सकते हैं कि आप हमारे इस लेख को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करें और देश की सरकार को नोटिस भेजें कि वह कम से कम इतना तो बताए कि देश के बैंकों का कितना पैसा उनके (कॉरपोरेट हाउसेज) ऊपर डूबा हुआ है, कितना पैसा बैंकों ने माफ़ कर दिया है और कितना पैसा अभी भी उन कॉरपोरेट हाउसेज पर बकाया है. क्या देश की जनता को यह जानने का हक़ नहीं है?
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश महोदय से हमारा यह आग्रह है कि आप हमारी इस विनती को सुनिए और भारत सरकार को आदेश दीजिए कि वह देश की जनता का पैसा देश के विकास चक्र को घुमाने में इस्तेमाल करने के लिए उसे औद्योगिक घरानों से वापस ले और देश को सचमुच विकास के युग में ले जाए. क्या बैंकों का पैसा भारत की जनता का पैसा नहीं है? और, इसी हक़ के साथ हम यह आग्रह और आशा करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट देश की सरकार और बैंकों को आदेश दे कि वे उस पैसे की सार्वजनिक जानकारी दें, जिसे कॉरपोरेट हाउसेज ने दबा रखा है. पहला क़दम अगर उठना है, तो यही उठना है, अन्यथा सुप्रीम कोर्ट सहित बाबा रामदेव, अन्ना हजारे और माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की बहुसंख्या को झूठी आशा दिलाने के अलावा कुछ नहीं कर रहे, ऐसा मानना होगा.

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