ललन पासवान का दावा है कि पूरा पासवान समाज एनडीए के पक्ष में गोलबंद है और हमारी पार्टी के प्रति उसका भारी समर्थन है. राजनीतिक दावों से अलग हटकर अगर हम लोग मांझी द्वारा दलित एवं महादलित के विलय की घोषणा की चुनावी राजनीति के फलाफल पर विचार करें, तो साफ़ हो जाता है कि मुख्यमंत्री ने एक तीर से कई शिकार कर दिए. जानकार बताते हैं कि जीतन राम मांझी पर इस बात के लिए दबाव बनाया जा रहा था कि वह नीतीश कुमार के नीतिगत निर्णयों से कोई छेड़छाड़ न करें, लेकिन दलितों को एकजुट करने के निर्णय से साफ़ हो गया है कि मांंझी कोई भी दबाव सहने को तैयार नहीं हैं. महादलित मुख्यमंत्री का मुद्दा उछाल कर उल्टे वह नीतीश कुमार पर ही दबाव बना रहे हैं. सरकार के कुछ वरिष्ठ मंत्री भी उनका साथ दे रहे हैं. मंशा बहुत साफ़ है कि दलितों की गोलबंदी के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएं, ताकि आगामी चुनाव में अपने हिसाब से गोटियां सेट की जा सकें. पूर्व विधान पार्षद एवं राजनीतिक चिंतक प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि दरअसल, मांझी की लड़ाई उच्च पिछड़ावाद के ख़िलाफ़ है.

JITAN-RAM-MANJHI-WITH-DHOLबिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अब नीतीश कुमार के साथ आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं. अपनी बेबाक बयानबाजी से नीतीश कुमार को कई बार बैकफुट पर ला चुके जीतन राम मांझी ने इस बार उनकी सोशल इंजीनियरिंग में सेंध लगाकर सूबे की सियासत में भूचाल ला दिया है. अपनी लगभग नौ साल की सत्ता में नीतीश कुमार ने जिस सोशल इंजीनियरिंग का ढिंढोरा पीटा, अब उसे मांझी ठीक नहीं बता रहे हैं. मांझी कह रहे हैं कि अनुसूचित जातियों को दलित और महादलित में नहीं बांटना चाहिए. पासवान जाति में भी ग़रीबी कम नहीं है, इसलिए उसे अलग रखना ग़लत है. महादलित आयोग एवं महादलित विकास मिशन से महादलित और दलित को एक करने की सिफारिश की बात भी मांझी कह रहे हैं. उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार ने सत्ता में आने के ठीक बाद महादलित आयोग का गठन कर दलितों को दो भागों में बांटा था. पासवान को छोड़कर शेष 21 जातियों को महादलित में शामिल कर लिया गया. दलितों के इस बंटवारे का उस समय काफी विरोध भी हुआ था, लेकिन नीतीश कुमार ने डंके की चोट पर कहा कि वह अपने फैसले से पीछे नहीं हटेंगे.
महादलितों की ताकत का पूरा फ़ायदा नीतीश कुमार ने अपने चुनावी अभियान में उठाया और 2010 के चुनाव में उन्हें रिकॉर्ड तोड़ सफलता मिली. जो वोट बैंक पहले लालू प्रसाद के इशारे पर काम करता था, वह नीतीश कुमार के साथ हो गया. राजनीतिक तौर पर लालू प्रसाद के कमजोर होने की एक बड़ी वजह यह भी रही. मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की बातों से ही हम अनुसूचित जाति की ताकत का अंदाज़ा लगा सकते हैं. मांझी कहते हैं कि अनुसूचित जाति को अपनी ताकत पहचानने की ज़रूरत है. बिहार में डेढ़ करोड़ एससी हैं. इस हिसाब से सवा करोड़ मतदाता इस समुदाय से हैं. सवा करोड़ मतदाता हमारे पास रहें, तो बिहार की राजनीति को अपने हाथ से नहीं जाने देंगे. अगर हम सतर्क रहें, तो निश्‍चित तौर पर अगला मुख्यमंत्री भी कोई महादलित ही होगा. बिहार में 54 लाख मुसहर हैं. मुसहर अगर वोट की ताकत को समझ जाएं, तो वे सूबे की राजनीति को अकेले नियंत्रित कर सकते हैं. मांझी कहते हैं कि अनुसूचित जाति के अंतर्गत आने वाली सभी जातियों को शिक्षा के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा जाएगा. जिनकी साक्षरता दर कम होगी, वे एक श्रेणी में होंगे. कहने का आशय यह कि जीतन राम मांंझी अब दलितों की व्यापक गोलबंदी के अभियान में गंभीरता से लग गए हैं. पासवान जाति का अलग रहना उन्हें खल रहा था.
पिछली जनगणना के अनुसार, बिहार में पासवानों की संख्या 46 लाख 29 हज़ार 411 है. मांझी की सोच है कि महादलितों के साथ अब पासवान की गोलबंदी भी ज़रूरी है, ताकि अनुसूचित जाति की ताकत और भी धारदार बनाई जा सके. मांझी इसमें दोहरा फ़ायदा देख रहे हैं. पहला फ़ायदा यह है कि नीतीश कुमार से खफा पासवानों का एक बड़ा तबका उनके साथ हो सकता है. पिछले नौ सालों में पासवान बिरादरी सरकार की कई योजनाओं का लाभ नहीं उठा सकी. इसका गुस्सा उसमें बरकरार है. दूसरा फ़ायदा यह हो सकता है कि अपने इस सधे हुए क़दम से वह राम विलास पासवान की ताकत भी कुछ कम कर सकते हैं. मांझी के इस क़दम का भाजपा ने भी दिल खोलकर स्वागत किया है. सुशील मोदी कहते हैं कि वह मांझी के इस क़दम का दिल से स्वागत करते हैं और उन्हें पूरा सहयोग करने के लिए तैयार हैं. रालोसपा के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष ललन पासवान कहते हैं कि नीतीश कुमार ने तो अनर्थ कर दिया था. दलितों का बंटवारा करके उन्होंने अन्याय किया था. अब मांझी की घोषणा से साफ़ हो गया है कि हमारी मांग सही थी. पासवान बिरादरी का पिछले नौ सालों तक जो हक़ नीतीश कुमार ने छीना है, उसका दंड वोट के तौर पर पासवान समाज नीतीश कुमार को देगा.
ललन पासवान का दावा है कि पूरा पासवान समाज एनडीए के पक्ष में गोलबंद है और हमारी पार्टी के प्रति उसका भारी समर्थन है. राजनीतिक दावों से अलग हटकर अगर हम लोग मांझी द्वारा दलित एवं महादलित के विलय की घोषणा की चुनावी राजनीति के फलाफल पर विचार करें, तो साफ़ हो जाता है कि मुख्यमंत्री ने एक तीर से कई शिकार कर दिए. जानकार बताते हैं कि जीतन राम मांझी पर इस बात के लिए दबाव बनाया जा रहा था कि वह नीतीश कुमार के नीतिगत निर्णयों से कोई छेड़छाड़ न करें, लेकिन दलितों को एकजुट करने के निर्णय से साफ़ हो गया है कि मांंंंझी कोई भी दबाव सहने को तैयार नहीं हैं. महादलित मुख्यमंत्री का मुद्दा उछाल कर उल्टे वह नीतीश कुमार पर ही दबाव बना रहे हैं. सरकार के कुछ वरिष्ठ मंत्री भी उनका साथ दे रहे हैं. मंशा बहुत साफ़ है कि दलितों की गोलबंदी के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएं, ताकि आगामी चुनाव में अपने हिसाब से गोटियां सेट की जा सकें. पूर्व विधान पार्षद एवं राजनीतिक चिंतक प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि दरअसल, मांझी की लड़ाई उच्च पिछड़ावाद के ख़िलाफ़ है. अगड़ी जातियों से उनका कोई मतभेद नहीं है. अगड़ी जाति के नेता और मंत्री तो मांझी के क़दमों की सराहना कर रहे हैं. लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने अपने शासनकाल में जिस उच्च पिछड़ावाद को बढ़ावा दिया, उससे दलित और महादलित समुदाय का बड़ा तबका हाशिये पर चला गया. वास्तव में जीतन राम मांझी उन्हीं की आवाज़ बनकर उभरे हैं.
बकौल मणि, जब जीतन राम मांझी कहते हैं कि ग़रीब के बच्चे को डरने की ज़रूरत नहीं है, तो वह उन तबकों से सीधा संवाद करते हैं, जिनकी उपेक्षा लालू और नीतीश के कार्यकाल में हुई. लालू प्रसाद के कमजोर होने के बाद दलित तबके को लग रहा है कि जीतन राम मांझी ही उसकी भावनाओं को आवाज़ दे रहे हैं. अगर मांझी दलित और महादलित का विलय करा देते हैं, तो उनकी ताकत और भी बढ़ जाएगी. यही वजह है कि कोई भी दल या नेता अब मांझी को हल्के में नहीं ले रहा है. पासवान बिरादरी को मिलाने का पासा फेंककर मांझी ने अपनी ताकत और भी बढ़ा ली है. यह ताकत अब इतनी बड़ी हो गई है कि चुनावी गणित को उल्टा-सीधा कर सकती है. अब यह मानकर चला जा रहा है कि नीतीश खेमा मांझी पर जवाबी वार ज़रूर करेगा. देखना दिलचस्प होगा कि मांझी गुट उस हमले का जवाब कैसे देता है. उधर, मांझी के इस क़दम से पासवान खेेमे में बेचैनी है. अभी तक यह माना जा रहा था कि लगभग छह फ़ीसद आबादी वाली यह बिरादरी राम विलास पासवान के इशारे को ही समझती है, लेकिन मांझी के मास्टर स्ट्रोक ने इस गणित को उलझा कर रख दिया है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here