आज दूसरे दिन हम पदमा शर्मा की कविताएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके काव्य मानस में स्त्री एक ऐसी किरदार है जिसे समाज इंसान नहीं मानता,इस्तेमाल की चीज़ मानता है।उनकी कविताएँ पहुंच की कविताएंँ।आज मुख्य टिप्पणी लिखी है आनंद सौरभ उपाध्याय ने.

प्रस्तावना:आनंद सौरभ उपाध्याय

पद्मा शर्मा जी कथाकार होने के साथ-साथ एक सुलझी हुई कवयित्री भी हैं।

आपकी कविताओं का मूल संसार स्त्री विमर्श पर आधारित है।
स्त्री के लिए आप की संवेदनाएं
सघन अनुभवों को जन्म देती हैं।
आपकी कविताओं में भी एक कहानी चलती रहती है जो अपनी बात को बड़े बेबाकी से कह देना चाहती है। स्त्री की छोटी-छोटी समस्याओं का एक अलग रूप आपके काव्य में देखने को मिलता है-
गैस पर चढ़ी भगौनी में
उबलते दूध की तरह
खदक रहे हैं विचार
मन में मन्थन , बौध्दिक चिन्तन
शाम को है वक्तव्य
विषय है स्त्री सशक्तिकरण
पदमा जी की कविताओं में एक विचार फूट पड़ता है, जो स्त्री के खिलाफ समुचित संघर्ष को बड़े ही बेबाकी से सामने लाता है।
नहीं बता पाई माँ को
बस में पिछली सीट पर बैठे व्यक्ति ने
अपने अंगूठे से मेरे जिस्म को छूने का प्रयास किया
मैं खिसकती चली गई अपनी सीट पर
आगे और आगे…
तब तुम भी मुझ पर चिल्लाई थीं
ठीक से नहीं बैठ सकती क्या?
आपके पास अपनी एक समर्थ काव्य भाषा है, जिसमें अन्य भाषाओं के भी शब्दों को जरूरत के अनुरूप उपयोग में लिया गया है। जिससे आपकी भाषा और भी प्रभावशाली हो गई है।
स्वागत किया उसने
मुस्कान के साथ
व्हाट केन आइ डू फाॅर यू …?
उछाला एक जुमला
मुस्कान के साथ
कविता में बिंबों के जरिये अनुभवों को विशेष स्थान मिला है क्योंकि आप एक कथाकार भी हैं आप शब्द चित्र उकेरना अच्छे से जानती हैं।
पदमा जी अपनी बात को कहीं कहीं कम शब्दों में बड़े संश्लिष्टता के साथ व्यक्त करती हैं। यह कविता के प्रति आपकी एक अलग तरह की चिंता है

चिड़िया सिर्फ ऊँची उड़ान भरती है
मंजिल पर पहुँचती है
बिना किसी को चोट पहुँचाए
स्त्री के लिए आक्रोश का स्वर लगातार सुनाई दे रहा है। पदमा जी के पास अपनी एक समर्थ काव्य भाषा है जो उन्होंने गहन संवेदना की शर्त पर उपार्जित की है

कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि पद्मा शर्मा जी की कविता स्त्री के लिए असुरक्षित संसार में उसके संघर्ष की व्यथा- कथा है दोराहे पर खड़ी स्त्री को सही रास्ता दिखाने में मदद कर रही है।

 

पदमा शर्मा की कविताएँ

1-

महिलाओं का शासन

अब महिलाओं का शासन
होगा देश में
रसोई और खेतों के अलावा भी
किन्तु …
लिखी गयी जो गाथा
बरसों पुरानी
लगेेगा समय बदलने में

फार्म भरने के बाद
वे सब फिर से
लग गयी हैं काम पर
पार्षद , नगरपालिका अध्यक्ष,
महापौर और सरपंच पद की प्रत्याशी

कुछ स्वयं चालित हैं
बांकी पति द्वारा संचालित

उनके पार्षद पति,
अध्यक्ष पति,
मेयर और
सरपंच पति हैं

लेने हैं उनको ही निर्णय
यहाँ तक कि
हो रहे हैं उनके ही स्वागत
दे रहे हैं वे भाषण
पहन रह हैं फूल माला

महिलाएँ तो बैठी हैं
अब भी
घर में ,
रसोई में,
आँगन में
बच्चे पालतीं , खाना बनातीं,
झाड़ू बुहारतीं
कण्डे पाथतीं हुई

रंच मात्र
शासन नहीं कर पायीं
घर पर भी

फिर …
कैसे करेंगी शासन देश पर
पुरुष प्रधान समाज पर

—————
2-

खजाना

स्त्रियों के मन में होता है खजाना
अहसास का…
अनुभूति का…
कजरी के खजाने जैसा

बचपन से वृद्धावस्था तक तिनका-तिनका जमा करती हैं खजाने में…
बहुत छुपाती हैं स्त्रियां

उनके मन में बातों का एक खजाना भरा रहता है
उस पोटली से जब निकल नहीं पाता सब
तो उनींदी आँखों में सपने बन

रात भयावह कर देता है

बचपन में नहीं बता पाई वह पिता को
बगल के चाचा
जिन्हें आप अपने भाई से बढ़कर मानते थे
जब से उसके अंग विकसित हुए हैं
देखते हैं उसे घूर घूर कर
पास बुलाकर फेरते हैं सिर पर हाथ
अब लाड दुलार पहले जैसा नहीं रहा…
अपने गले लगाना चाहते हैं भींचकर
कई बार तो चीखने का मन होता है

नहीं बोल पाई अपने भाई को…
जिस दोस्त को आप मुझे स्कूल छोड़ने भेजते हैं
वह छूना चाहता है मेरे उन अंगों को
जो मेरे स्त्री होने का अहसास दिलाते हैं

नहीं बता पाई माँ को
बस में पिछली सीट पर बैठे व्यक्ति ने
अपने अंगूठे से मेरे जिस्म को छूने का प्रयास किया
मैं खिसकती चली गई अपनी सीट पर
आगे और आगे …
तब तुम भी मुझ पर चिल्लाई थीं
ठीक से नहीं बैठ सकती क्या

मेरे ठीक से ना बैठने में
पीछे वाले का पांव था माँ

इस तरह के पांव तो
पिक्चर हॉल की सीट पर भी मुझे परेशान करते रहे

नहीं बोल पाई किसी को
आते-जाते चौराहे पर
खड़े लड़कों की फब्तियां

जो गालियों से भी घिनौनी होती हैं
उनके हाथों के गंदे इशारे उनके मुंह से निकली
तोपों के गोले
छलनी करती हैं तन को भी मन को और ज्यादा …

आज भी चस्पा हैं
वो मन के कोने पर बैनर बन

अपने पुरुष मित्र को भी नहीं बताए पायी
कि उसका दोस्त मेरे लिए गलत बातें फैला रहा है
जो मेरे अस्तित्व की धरोहर को
नष्ट करने में तुली है

नहीं बता पायी
अपने पति को
तुम्हारे बॉस ने मुझे मैसेंजर पर
भेजे थे कई लिजलिजाते मैसेज
उनकी पैनी बेहूदा खूंखार नजर
चिपक गई थी पार्टी में
मेरे पीछे और आगे
जो नहाते वक्त भी अलग ना हो सकी

मेरे मुंह खोलने पर पिता भाई मां के संबंध बिगड़ जाएंगे
यह लगा देंगे मेरे पैर में जंजीर रोक देंगे मेरी ही उड़ान

इन बाधाओं से पार करती आज मैं खुद एक बच्ची की माँ हूँ

मैंने खजाने का मुँह खोल लिया है अपने पिटारे से

बढ़ती हुई बच्ची को एक-एक नसीहत देती जाती हूँ

उसे उसके खास अंगों की कराती हूँ पहचान …
समझाती हूँ कोई गलत तरीके से छुए तुम्हारे स्त्रीत्व को
तो बताना मुझे
मैं अरावली पर्वत सी रक्षा करूंगी तुम्हारी
तोड़ दूंगी उन हाथों को
अपनी दुर्गा खड्ग से काट दूंगी हाथ
शाहजहां ने काटे थे हाथ कारीगरों के
अपनी कारीगरी को
मिटाने वालों के हाथ काट दूंगी मैं
कोई फब्तियां कसी तो बता देना मुझे
मैं प्रतिकार का तीर चला कर कर दूंगी उसका मुँह बंद
जैसे एकलव्य ने किया था कुत्ते का मुँह बन्द

देखे जो कोई गलत निगाहों से मैं दुर्गा बन दुष्ट आंखों का संहार करूंगी

पर कैसे बचेगी बस ट्रेन की सीट पर
पिक्चर हॉल की सीट पर
मैं बताती हूं सदा साथ रखना पिन
तुम्हारी तरफ बढ़ते पांवों में जोर से पिन चुभा देना
उन पावों से रक्त के साथ उसका कलुष भी बह जाएगा

पर पति के साथ जब रहोगी मैं कैसे बचा पाऊंगी तुम्हें

मैं तुम्हें दुर्गा रूप से अवगत कराऊंगी
काली की कथा सुनाऊंगी और पैदा करूंगी तुम्हारे अंदर स्वाभिमान की ज्वाला
कि तुम्हें कभी कहना ना पड़े मी टू

3-

सेल्स गर्ल

स्वागत किया उसने
मुस्कान के साथ
व्हाट केन आइ डू फाॅर यू …?
उछाला एक जुमला
मुस्कान के साथ

उत्तर हिन्दी में मिला
स्वेटर चाहिए…

कई सारे डिब्बे
डिब्बों में बन्द
सर्दी का मंत्र

एक स्वेटर
एक मुस्कान
दूसरा…
तीसरा…

आँखों में अपनापन
चेहरे पर ताज़गी
हल्का सिंदूर , लाली सुर्ख होठों पे
शरारती लट , इठलाती कपोलों पे

ये देखिए
सुंदर रंग
सुंदर डिजाइन
फबेगा आप पर
फिर वही मुस्कान

यकायक घण्टी बजी
उसके सेलफोन की
कुछ क्षण का व्यवधान
फिर वही मुस्कान

अब आँखे नम

अ्रगला स्वेटर
अगली मुस्कान

कैद न रह सके अश्रुकण
दर्द भरी मुस्कान

बीमार बेटा
बिगड़ती हालत
बच्चे का रूदन
आँख में पानी
फिर वही मुस्कान

लुभाने का , रिझाने का
एक अदद प्रयास
छिपाकर दर्द
फिर वही मुस्कान

——————–
4-

स्त्री के काम

लौट आयी है वो काम से
पुकारी जाती है घर में
वो दूसरे नाम से

घुसते ही उठाती है मोजा
राह में पड़ा पति का
रखती है सहेजकर
बच्चों की बिखरी किताबें ,
जूतों को लगाती है करीने से
फिर अपनी जूती उतारती है

कमरे में रखी जूठी प्लेटें
और गिलास पानी के
रखती है घिनौची पर
तब हाथ का पर्स
रखती है अल्मारी में

कपड़े बदल हाथ मुँह धेाकर
चाय चढ़ाती है गैस पर
बच्ची की ठुनकती बोली
ध्यान ले आती है होमवर्क पर

चीनी , चाय पी डाल
देखती है सब्जी नदारद
क्या बनायेगी रात को
अब आयेगी उसकी ही शामत

दूध डालती है
उबलती है चाय
अन्दर भी उबलता है बहुत कुछ
बस खदकता रहता है
उफनता नहीं

चाय की चुस्की , उड़ती भाप
मन में कई सारे काम
उनकी गुंजलक में
भूल गयी है स्वाद
बस मीठा और गरम ‘कुछ’ है
अपने न होने का अहसास

दो आलू की सब्जी
पति और बच्चे खाकर
सो चुके हैं कबके
बचे हैं पतीली में चार टुकड़े

अधपेट खाती है वह
पेट के लिए कमाती है वह

बिस्तर पर लेटकर भी
अगले दिन की तैयारी
पूरी रणनीति
बनती है मन में
थकान तन में
पलक झपकती है
नींद में बड़बड़ाती
बच्ची को थपकती है

सिर में दर्द, आँखों में नींद
जकड़ रहा है बदन
हो रही थकन

तिस पर भी
पति की इच्छा को
करती है पूरा अनिच्छा से
पिस रही है वो
भीतर और बाहर

फिर जाती है वो काम पे
वहाँ पहचानी जाती है वो
दूसरे नाम से

5-

स्त्री सशक्तिकरण

गैस पर चढ़ी भगौनी में
उबलते दूध की तरह
खदक रहे हैं विचार
मन में मन्थन , बौध्दिक चिन्तन
शाम को है वक्तव्य
विषय है स्त्री सशक्तिकरण

मम्मी लन्च बाक्स दो
बेटे की आवाज से
टूट गयी तन्द्रा
विचार छिन्न-भिन्न

बच्चों के जाते ही
फिर से विचारमग्न
पानी की मोटर की
घन्न …. घन्न …
गुम हो गये विचार
मस्तिष्क हुआ सुन्न

कुकर की सीटी से
लौटी विचार बीथी से
खाना बना क्या ?
पति की आदेश भरी पुकार
इन सबके बीच बचे नहीं
सब्जी की तरह कट गये विचार
गुंथ गये आटे में नमक की तरह
दाल के बघार की तरह
ऊपर ही ऊपर, तितर-बितर

पति के ऑफिस जाते ही
विचार पुनः हावी
कपड़े घोने थे
क्योंकि
बिजली की अभी आमद थी
मशीन की घिर्र-घिर्र
दिमाग से धुल गए
तथ्य और विचार

फिर कुछ सोच पाती
उससे पहले ही
महरी की तुनक
बर्तन की घिटपिट

ऐसे ही गुजरे पल
मन को मिला न संबल

दरवाजे की दस्तक
बच्चों की आवक
भोजन , होमवर्क
कई काम थे

शाम को उसे जाना है
आॅफिस से पति लौटे
उसके बाद का समय
दिया है उसने
वक्तव्य देने के लिए

उसके पास समय ही कहाँ
देने के लिए
कहने को तो ‘हाउस वाइफ’ है
सही तो है ‘घरेलू पत्नी’
पर पत्नी का घर है क्या ?

वह करती है घर की देखभाल
पर उसकी करेगा कौन ?

वह देती है भाषण
स्त्री सशक्तिकरण पर

फूला है पति का मुँह
बच्चों की शिकायतें
उनकी फरमाइशें
बदलती है लौटकर कपड़े
घुस जाती है रशोई में
रात्रि के भोजन की तैयारी में

6-

चिड़िया

बच्चों ने शरारत से कहा –
बहुत बुद्धिमान हैं आप
पहेली का हल बताएँगी ?
मैंने अलसाए भाव से कहा- ‘पूछो’
बच्चों के मन में उत्साह, जोश और चातुर्य-भाव बुलंदियों पर था
बोले-बताओ कौन है ? जिसके सिर पर पैर हैं ।

मुझे उत्तर ज्ञात था
नहीं चाहती थी फूलों से ओसकण उड़ जाएँ
उनकी खुशी के लिए …
सोचने का अभिनय किया थोड़ी देर
फिर कहा-‘चलो हार मानी’

चेहरे पर एलईडी जैसी दूधिया रोशनी फैल गयी
आँखों में हिरनी सा कौतुक
बच्चे उछलते हुए बोले-‘चिड़िया’

कूदते-फाँदते, ताली बजाते चिल्लाते हुए दौड़ गए
-“हार गई… हार गई”

एक मासूम बोला-‘नहीं’
सही उत्तर है-‘आदमी’

मन खोजने लगा
क्या यह सब है मनुष्य के पास भी
सिर है बुद्धि से भरा …
भरता है कल्पनाओं की ऊँची उड़ान मन की पाँख से
और …और
चाँद पर भी रख दिए हैं कदम

पर इंसान इन सबका उपयोग करता है दूसरों को गिराने में

चिड़िया सिर्फ ऊँची उड़ान भरती है
मंजिल पर पहुँचती है
बिना किसी को चोट पहुँचाए

7-

विज्ञापन की महिला

चेहरे पर खुशी
आँखों में उत्साह
मेकअप की कई पर्तों में ढँकी
सजी-सँवरी
बाहर से हँसती हुई
अन्दर से गमगीन
पर खिली हुई दीखती हैं
विज्ञापन की महिलाएँ

दिल में हैं कइ्र्र जख्म
छुपाकर उनको
खिलखिलाती हैं
घर जाकर फिर उनसे
होना है रूबरू

वे कैमरे में और कमरे में
होती हैं अलग – अलग
उनकी रील लाइफ
और रियल लाइफ
होती है बिल्कुल अलग

गर्मी के विज्ञापन में भी
मर्द रहते हैं सूट-बूटेड

असह्य सर्दी के विज्ञापन में
है नारी अर्द्धवस्त्र
पता नहीं किसका
कर रही हैं विज्ञापन
या दे रही हैं ज्ञापन

खोजी नजरें तो
कपड़ों के अन्दर से भी
ले लेती हैं नाप
सीने और अधखुले वस्त्र
ओछे और छोटे वस्त्र
नाममात्र के कपड़े
कर रहे हें प्रचार किसी वस्तु का
साथ ही प्रसार किसी और ‘बात’ का

सब ओर वे ही दिख रही हैं
चाहे उत्पाद
मर्दों के लिए हों
स्त्री के लिए हों ,
या बच्चों के लिए

इनका होना जरूरी है
वे अपनी अदा
अपनी देह
दिखाने का
सबको रिझाने का
ले रही हैं मेहनताना

उन्हें नहीं मालूम
वे बन गयी हैं श्रमिक
पैसा पा रही हैं श्रम का
पर वो भी आधा

तिजोरी भर रहे हैं
वे लोग
जो देते हैं मेहनताना
शोषण कर रहे हैं
जेबें भर रहे है
दे रहे हैं कम
पा रहे हैं मनमाना
उनकी देह और मन के
उत्पीड़न का बुन रहे हैं
सरेआम ताना-बाना

8-

●प्रेमिका●

प्रेमिका कोई दुर्ग नहीं
जिस पर
अपनी कामनाओं के रथ पर
….सवार होकर
दैहिक अंगों के शस्त्रों के बलबूते
चढ़ाई कर …
जीत लिया था किला
और सोच लिया राजा ने
अब यह किला मेरा है…

प्रेमिका तो सत्ता है
जिस पर विपक्ष की पैनी नजर
हमेशा चौकस रहती है

सत्ताधारी ये सोचने की भूल न करे
कि अब तो सब मेरे हाथ है
यहाँ सिर्फ मेरा ही शासन रहेगा
यह सोचकर वह बन्द कर देता है
ध्यान रखना
उसके भावों को समझना
उसकी इच्छाओं और कामनाओं को
पूरा करना

सत्ता पर काबिज़ रहने के लिए
उस क्षेत्र विशेष का ही नहीं
वरन आसपास के समग्र क्षेत्र का …
बखूबी ख्याल रखना पड़ता है

समय देना होता है भरपूर
भरोसा और विश्वास दिलाना होता है
मैं तुम्हारा ही हूँ
और तुम मेरी पटरानी

जब वह निश्चिंत और बेखबर हो जाता है
तो सत्ता खुद को राजा से अलग कर सकती है कभी भी

सत्ता सब कुछ सहन कर सकती है
पर उपेक्षा का सामना नहीं कर सकती

सत्ता उसी की रहती है
जो हर घड़ी, हर पल
उसी का बना रहता है
सोचता है सिर्फ उसी के बारे में
बना रहता है..
उपासक बना रहता है..
तब तक वह सत्ताधारी बना रहता है

9-

मेरा होना

मैं नदी हूँ और तुम समुद्र
कैसे समा पाओगे मुझमें
मैं ही विलीन हो जाऊँगी तुममें

मैं हवा हूँ और
तुममें है एक झंझावात
जो मेरे अस्तित्व को ही उड़ा ले जाएगा

मैं पृथ्वी हूँ और तुम आकाश
इतनी ऊँचाई पर कैसे होगा मिलन
तुमसे मिलने छोड़ना होगी अपनी जमीन

मैं रात्रि हूँ तुम हो दिवस
एक दूसरे की अनुपस्थिति में ही आते हैं

जब बन जाएंगे हम चप्पू और नाव
एक दूसरे को सहारा देकर होंगे समुद्र से पार

या समुद्र में ही

मैं सीप बन जाऊंगी
तुम बूँद बनकर मुझमें समा जाना
फिर होगा नए हीरक का सूत्रपात

नहीं तो

तुम वंशी बन जाना
मैं उसके छिद्र बनकर ही सुख
अनुभव करूँगी

तुम्हारी कमियों को निकालती रहूँगी बाहर
फिर शेष रहेगा मधुर संगीत
जीवन का गीत

डॉ.पद्मा शर्मा

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