गर्भधारण रोकने के लिए महिलाओं को ‘डिपो मेडरॉक्सी प्रोजेस्टेरोन एसिटेट’ (डीएमपीए) दवा इंजेक्ट की जा रही है. दुनिया के कई देशों में खतरनाक यौन अपराधियों की यौन ग्रंथी नष्ट करने के लिए उन्हें सजा के बतौर डीएमपीए दवा का इंजेक्शन दिया जाता है, जिसे मेडिको-लीगल शब्दावली में ‘केमिकल कैस्ट्रेशन’ कहते हैं. यह दवा पुरुषों और महिलाओं के शरीर को घातक रूप से नुकसान पहुंचाती है. ‘चौथी दुनिया’ के पास दुनियाभर के चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह और रिपोर्ट, चिकित्सा शोध संस्थाओं के रिसर्च पेपर्स, अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्वास्थ्य एवं चिकित्सा प्रतिष्ठानों की रिपोट्‌सर्र्, सामाजिक विशेषज्ञों की राय, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सामाजिक-अकादमिक फोरम पर रखे गए शोध-पत्र और दवा कंपनी की तकनीकी प्रोडक्ट रिपोट्‌र्स हैं. इसके अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का वह आधिकारिक ‘फ्रॉड’ मूल-आधार है, जिसने ऐसे अमानुषिक कृत्य का पर्दाफाश करने का रास्ता खोला और ‘मिशन परिवार विकास’ के नाम पर महिलाओं की देह में जहर चुभोये जाने की सरकारी योजना का सच सामने आ सका. कुछ प्रमुख वेब-मीडिया संस्थानों ने इस खबर को देश के जरूरी मुद्दे की तरह उठाया. समाचार चैनल ‘न्यूज़-24’ ने ‘चौथी दुनिया’ की पूरी खबर दिखाई, उसे ‘वाइरल’ भी बताया और आखिर में एक ही झटके में उसे ‘झूठा’ घोषित कर दिया. ‘चौथी दुनिया’ की खबर की समीक्षा करते हुए ‘न्यूज-24’ ने केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे और दिल्ली के गंगाराम अस्पताल की गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. माला श्रीवास्तव से एक झटके में बयान लिया और दूसरे झटके में खबर को ‘झूठा’ बता कर कार्यक्रम का शटर गिरा दिया. केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री और गायनोकोलॉजिस्ट ने क्या कहा, इसका हम तथ्यवार विवरण आपके समक्ष रख रहे हैं.

  • ‘चौथी दुनिया’ में प्रकाशित कवर-स्टोरी से खुल गई केंद्र सरकार की क़लई
  • जिस दवा को विशेषज्ञों ने बताया ख़तरनाक, उसे सरकार ने कहा सुरक्षित
  • समाचार चैनल ‘न्यूज-24’ ने साधा सत्ता के सुर में सुर, कहा ख़बर झूठी

dangerous-sterilization-cam‘चौथी दुनिया’ ने अपनी पिछली कवर स्टोरी (8 से 14 जनवरी 2018) में सात प्रमुख बिंदु सामने रखे थे, 1- महिलाओं में इंजेक्ट की जा रही है यौन-अपराधियों को सजा में दी जाने वाली दवा, 2.बिल गेट्स फाउंडेशन से साठगांठ कर स्वास्थ्य मंत्रालय कर रहा है घिनौना कारनामा, 3. जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर यूपी-बिहार समेत सात राज्यों में शुरू हुआ यह गंदा खेल, 4. देश की निम्न वर्गीय और निम्न-मध्यम वर्गीय माताओं को बांझ बनाने का कुचक्र, 5. आंकड़ों का ‘फ्रॉड’ कर स्वास्थ्य मंत्रालय ने 145 जिलों में पहुंचाया डीएमपीए जहर, 6. स्वास्थ्य केंद्रों को दिया गया टार्गेट, अधिक से अधिक महिलाओं को दें डिम्पा इंजेक्शन और 7. ‘मिशन परिवार विनाश’ साबित हो रहा है भारत सरकार का ‘मिशन परिवार विकास’.

ये सात मुद्दे ‘चौथी दुनिया’ की कवर-स्टोरी के केंद्रीय तत्व हैं. समाचार चैनल ‘न्यूज-24’ ने इन तथ्यों को दिखाया जरूर, लेकिन अपनी तथाकथित छानबीन में इन सात केंद्रीय तत्व पर ध्यान केंद्रित नहीं किया. इन बिंदुओं पर न अपनी कोई जानकारी हासिल की, न कोई पढ़ाई की और न कोई शोध किया. चैनल ने महज दो लोगों (केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री और गायनोकोलॉजिस्ट) से फौरी तौर पर बयान लिया और खबर के आधारभूत तथ्यों पर कोई पत्रकारीय सवाल-जवाब भी नहीं किया.

उन्होंने जो कहा उसे ‘जजमेंट’ समझ लिया. केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने तो फिर भी सत्ता-चरित्र से जरा अलग हट कर थोड़ी ईमानदारी बरती. हालांकि उन्होंने एक सरकारी नुमाइंदे की तरह ही बयान दिया और सरकार के कृत्य को सही ठहराया, लेकिन यह भी कहा, ‘दवा के साइड-इफेक्ट्स हो सकते हैं, हम इसे खारिज नहीं करते’. दिल्ली के गंगाराम अस्पताल की गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. माला श्रीवास्तव ने डीएमपीए दवा के बारे में बताने के बजाय उसे लगवाने के तौर-तरीके बताने शुरू कर दिए, फिर कहा कि डीएमपीए इंजेक्शन से माताओं के दूध पर कोई असर नहीं पड़ता. गायनोकोलॉजिस्ट ने माताओं के शरीर पर होने वाले नुकसान की कोई चर्चा नहीं की और न ‘न्यूज-24’ ने उनसे ये सवाल पूछे. जानकारी रहती तो सवाल पूछते.

डॉक्टर ने दूध पर ही कहा और चैनल ने दूध पर ही कार्यक्रम रोक दिया. डीएमपीए इंजेक्शन माताओं के शरीर पर क्या-क्या घातक नुकसान करता है, इसके आधिकारिक विस्तार में जाने से पहले हम दूध पर ही बात कर लें. भोपाल गैस त्रासदी में सुप्रीमकोर्ट द्वारा गठित उच्चस्तरीय जांच और सलाहकार समिति की सदस्य रहीं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की ख्यातिप्राप्त चिकित्साशास्त्री डॉक्टर सी. सत्यमाला कहती हैं कि डीएमपीए इंजेक्शन महिलाओं और उसकी आने वाली संतति के लिए बेहद खतरनाक (हैज़ार्डस) है. इसका एक इंजेक्शन भी लगवाना खतरनाक है.

यह स्तन-पान कराने वाली महिलाओं के लिए और भविष्य में खुद स्वस्थ रह कर स्वस्थ बच्चे की मां बनने की चाहत रखने वाली मां के लिए अत्यंत नुकसानदेह है. डॉक्टर सत्यमाला का कहना है कि डीएमपीए के असर पर शोध में जो तथ्य हासिल हुए, वे इस दवा के इस्तेमाल को पूरी तरह खारिज करते हैं. डेविड वार्नर की चिकित्साशास्त्र की मशहूर किताब ‘व्हेयर देयर इज़ नो डॉक्टर’ में डीएमपीए पर पांच साल शोध करने के बाद तैयार किया गया डॉ. सी. सत्यमाला का शोध-पत्र प्रकाशित  किया गया है, जिसने पूरी दुनिया के चिकित्साशास्त्रियों और वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसकी संस्था काउंसिल फॉर इंटरनेशनल ऑरगेनाइजेशन ऑफ मेडिकल साइंसेज़ की गाइडलाइंस-11 तो इससे आगे बढ़ कर कहती है कि स्तन-पान कराने वाली महिलाओं को डीएमपीए इंजेक्शन देना ही नहीं चाहिए.

डब्लूएचओ की गाइडलाइंस कहती है कि डीएमपीए इंजेक्शन के कारण हड्‌डी से खनिज तत्वों का क्षरण होने लगता है, लिहाजा दूध बनने की प्रक्रिया बाधित होती है और ऐसे में महिलाओं को डीएमपीए इंजेक्शन दिया जाना गंभीर विपरीत नकारात्मक असर डाल सकता है. ऐसा किया जाना अंतरराष्ट्रीय नियमों और नैतिकता का उल्लंघन है. दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए डीएमपीए इंजेक्शन को ठीक बताने वाली गंगाराम अस्पताल की गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. माला श्रीवास्तव को ‘इंडियन जरनल ऑफ मेडिकल एथिक्स’ में प्रकाशित उस रिपोर्ट को ध्यान में रखना ही चाहिए जिसमें आगाह किया गया है कि डीएमपीए इंजेक्शन से स्तन-कैंसर, रीढ़ की हड्‌डी के कैंसर जैसी तमाम घातक बीमारियों का खतरा बढ़ता है. क्या ऐसे स्तन का दूध नवजात शिशु को पिलाया जाना चाहिए जिसमें कैंसर जैसी बीमारी पल रही हो? ‘न्यूज-24’ को गंगाराम अस्पताल की गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. माला श्रीवास्तव से यह सवाल पूछना चाहिए था.

‘इंडियन जरनल ऑफ मेडिकल एथिक्स’ में प्रकाशित रिपोर्ट में ही आप पाएंगे कि वर्ष 2001 में सुप्रीमकोर्ट के समक्ष भारत सरकार ने यह स्वीकार किया था कि डीएमपीए इंजेक्शन जैसी दवा का व्यापक स्तर (मास लेवल) पर प्रयोग उचित नहीं है. इसका इस्तेमाल किसी भी स्थिति में महिलाओं के लिए संघातक है. फिर ऐसा क्या हुआ कि 2017 में भारत सरकार ने इसे आनन-फानन लागू कर दिया? भारत सरकार ने क्या भारत के लोगों को खतरनाक रसायनिक प्रयोग करने के लिए ‘गिनी-पिग’ समझ रखा है? इस सवाल का जवाब आपको ‘इंडियन जरनल ऑफ मेडिकल एथिक्स’ में प्रकाशित रिपोर्ट में ही मिल जाएगा, जिसमें यह कहा गया है कि सरकारी अस्पतालों में गरीब महिलाओं को डीएमपीए इंजेक्शन देकर ‘जीवित-प्रयोगशाला’ बना दिया जाएगा.

प्रमुख समाजशास्त्री एनबी सरोजिनी और महिला मामलों की विशेषज्ञ प्रख्यात पत्रकार लक्ष्मी मूर्ति का कहना है कि जनसंख्या नियंत्रण का लक्ष्य पूरा करने के लिए डीएमपीए जैसी दवा का प्रयोग देश की महिलाओं और आने वाली नस्लों के स्वास्थ्य को इतना घातक नुकसान पहुंचाएगा कि इसकी कभी भरपाई नहीं हो सकती. दवा बनाने वाली कंपनी ‘फाइज़र’ को भारत में फेज़-3 ट्रायल का कानूनी प्रावधान पूरा किए बगैर इसके इस्तेमाल की इजाजत दे दी गई. क्लिनिकल-ट्रायल की जरूरी औपचारिकता पूरी किए बगैर दवा कंपनी ने ‘पोस्ट मार्केटिंग सर्विलांस सर्वे’ भी कर लिया और इसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की गई. रिपोर्ट में गलत तथ्यों के भरे जाने की पूरी आशंका है. ऐसे संदेहास्पद सर्वेक्षण और संदेहास्पद आंकड़े (डाटा) के आधार पर डीएमपीए को ‘सेफ’ घोषित कर दिया जाना पूरी तरह संदेहास्पद है.

इसे देखते हुए ही महिला संगठनों, स्वास्थ्य संगठनों, मानवाधिकार संगठनों और तमाम विशेषज्ञों ने इस दवा पर पूर्ण पाबंदी लगाने की मांग की थी. लेकिन इसकी सुनवाई नहीं हुई. एनबी सरोजिनी और लक्ष्मी मूर्ति ने इस बारे में ‘इंडियन जरनल ऑफ मेडिकल एथिक्स’ में विस्तार से शोध-परक लेख भी लिखा है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्युट्रिशन, हैदराबाद की पूर्व उप निदेशक डॉ. वीणा शत्रुघ्न कहती हैं कि सरकार ने महिलाओं पर जैसे निशाना साध रखा है. कोई यह ध्यान नहीं रखता कि डीएमपीए इंजेक्शन उसी महिला को लगाया जा सकता है जो पूरी तरह स्वस्थ हो और गर्भधारण नहीं करना चाहती हो.

महिला की जागरूकता का मान्य स्तर और उसकी औपचारिक सहमति जरूरी है, क्योंकि इस इंजेक्शन के साइड इफेक्ट्स बहुत गहरे हैं, जिसका खामियाजा तो महिला को ही भुगतना पड़ता है. हमारे देश का हेल्थ-केयर सिस्टम इसके साइड-इफेक्ट्स को हैंडिल नहीं कर सकता. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के पूर्व असोसिएट प्रोफेसर एवं प्रिंसिपल टेक्निकल अफसर और संस्थान के जेनेटिक टॉक्सिकोलॉजी विभाग के मौजूदा सलाहकार डॉ. एल.के.एस. चौहान कहते हैं कि प्रतिष्ठित साइंस जरनल के संदर्भों को देखते हुए यह साबित होता है कि डीएमपीए इंजेक्शन स्तन कैंसर और यौन संक्रमण का खतरा बढ़ाता है. इस इंजेक्शन के इस्तेमाल से एचआईवी का भी खतरा बहुत बढ़ जाता है. यह दवा रोगों से लड़ने की स्वाभाविक क्षमता (इम्यूनिटी) को नष्ट करती है.

जब किसी व्यक्ति के शरीर से इम्युनिटी ही खत्म हो जाएगी, तो वह सर्दी-जुकाम तक नहीं रोक पाएगा, फिर उसे गंभीर बीमारियां तो आसानी से पकड़ेंगी ही! ऐसी दवा को किस वैज्ञानिक और तकनीकी आधार पर मंजूरी दी जा सकती है, यह अपने आप में ही बड़ा सवाल है! डीएमपीए इंजेक्शन से होने वाले निर्बाध रक्तस्राव से ऑस्टियोपोरोसिस जैसी खतरनाक बीमारियां होने का भी अंदेशा रहता है. डॉ. चौहान कहते हैं कि अमेरिका के ‘फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ ने इस दवा को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक घोषित कर रखा है. अमेरिका में डीएमपीए इंजेक्शन के पैकेट पर बाकायदा चेतावनी छपी रहती है. वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. चौहान कहते भी हैं कि गर्भधारण रोकने के जब दुनिया में कई सुरक्षित उपाय मौजूद हों तो फिर ऐसी खतरनाक दवा के इस्तेमाल का कोई तार्किक औचित्य नहीं बनता.

डीएमपीए दवा बनाने वाली कंपनी ‘फाइज़र’ इसके सांघातिक खतरे के बारे में आगाह करती है लेकिन भारत सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय जिस ‘अंतरा’ के नाम पर डिम्पा का इंजेक्शन लगवा रहा है, उसके पैकेट पर ऐसी कोई वार्निंग छपी हुई नहीं है. जबकि कानूनी प्रावधान है कि ऐसे किसी खतरे के बारे में दवा के पैकेट पर प्रमुखता से चेतावनी छापी जाए. डीएमपीए दवा बनाने वाली कंपनी ‘फाइज़र’ की टेक्निकल प्रोडक्ट रिपोर्ट देखें तो आपको हैरत होगी कि जिस दवा के इतने ढेर सारे खतरे खुद दवा बनाने वाली कंपनी बता रही हो, उसे भारत सरकार ने किस अंधत्व में स्वीकार कर लिया? केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्‌डा हों या स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे, वे किस आधार पर यह ऐलान कर देंगे कि दवा का कोई नकारात्मक असर नहीं होता? और कोई न्यूज़ चैनल किस नैतिकता के बूते ‘चौथी दुनिया’ में प्रकाशित खबर को झूठा बता देगा? ‘फाइज़र’ की टेक्निकल रिपोर्ट वर्ष 2017 की अद्यतन रिपोर्ट है, जिसके खतरों के बारे में आप उपरोक्त दो बॉक्स में विस्तार से देख सकते हैं. इन खतरों के बारे में ‘अंतरा’ के पैकेट्स पर चेतावनी क्यों नहीं छापी गई? इसका जवाब स्वास्थ्य मंत्रालय को देना ही चाहिए.

डिम्पा के ख़तरनाक खेल का बिंदुवार खुलासा

1- महिलाओं में इंजेक्ट की जा रही है यौन-अपराधियों को सजा में दी जाने वाली दवा

अब हम इस सनसनीखेज प्रकरण का बिंदुवार दृश्य दिखाते हैं. ‘चौथी दुनिया’ ने अपनी कवर-स्टोरी में लिखा है कि अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में खतरनाक यौन अपराधियों को सजा (केमिकल कैस्ट्रेशन) के बतौर डीएमपीए दवा इंजेक्ट की जाती है. अन्य देशों में मानव जीवन का इतना सम्मान है कि खूंखार यौन अपराधियों को केमिकल कैस्ट्रेशन की सजा में भी डीएमपीए जैसी खतरनाक दवा इंजेक्ट किए जाने का सामाजिक संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है. जबकि भारत सरकार यह दवा महिलाओं में धड़ल्ले से इंजेक्ट कर रही है और इस घोर सामाजिक अपराध पर देश चुप्पी साधे है.

अमेरिका के कई राज्यों में यौन अपराधियों को केमिकल कैस्ट्रेशन की सजा के बतौर डीएमपीए का इंजेक्शन दिया जाता है. जबकि डीएमपीए के घातक असर को देखते हुए अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इसे ‘ब्लैक-बॉक्स’ में डाल रखा है. अमेरिकन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन शरीर पर नकारात्मक और घातक असर डालने वाली डीएमपीए जैसी दवा का यौन-अपराधियों पर भी इस्तेमाल किए जाने का विरोध कर रहा है. अमेरिका के अलावा इंगलैंड, जर्मनी और इजरायल जैसे देशों में भी जीर्ण (क्रॉनिक) यौन-अपराधियों को केमिकल कैस्ट्रेशन की सजा देने का प्रावधान है. केमिकल कैस्ट्रेशन में डीएमपीए के इस्तेमाल और उसके खतरनाक असर का संदर्भ ‘विकिपीडिया’ और ‘इंडियन अकादमी ऑफ फॉरेंसिक मेडिसिन’ के ‘जरनल ऑफ इंडियन अकादमी ऑफ फॉरेंसिक मेडिसिन’ में प्रकाशित शोध-पत्र से भी लिया जा सकता है.

2- बिल गेट्स फाउंडेशन से साठगांठ कर स्वास्थ्य मंत्रालय कर रहा है घिनौना कारनामा

डीएमपीए का इस्तेमाल 1993-94 में कुछ खास प्राइवेट सेक्टर में हो रहा था. कई सामाजिक संस्थाएं इस इंजेक्शन के इस्तेमाल पर बैन लगाने की सुप्रीमकोर्ट से मांग कर रही थीं. 1995 में ड्रग्स टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड (डीटीएबी) और सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑरगेनाइजेशन ने खास तौर पर राष्ट्रीय परिवार नियोजन अभियान में डीएमपीए के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया था. वर्ष 2001 में कई दवाएं प्रतिबंधित की गईं, लेकिन डीएमपीए को प्रमोट करने वाली लॉबी इतनी सशक्त थी कि वह बैन नहीं हुई, बस उसे प्राइवेट सेक्टर में सीमित इस्तेमाल की मंजूरी मिली.

डीएमपीए इंजेक्शन के इस्तेमाल को लेकर हो रही कानूनी और व्यापारिक खींचतान में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के कूद पड़ने से डीएमपीए लॉबी मजबूत हो गई. फाउंडेशन ने वर्ष 2012 में ब्रिटिश सरकार को साधा और फिर विश्व के विकासशील और गरीब देशों में जनसंख्या नियंत्रण में सहयोग देने के बहाने अपना रास्ता साफ कर लिया. फाउंडेशन ने मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को साधा. स्वास्थ्य मंत्रालय ने परिवार कल्याण विभाग के जरिए ड्रग्स टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड (डीटीएबी) के पास प्रस्ताव भिजवाया कि डीएमपीए इंजेक्शन के इस्तेमाल पर लगी पाबंदी हटाई जाए.

डीटीएबी ने उस समय इस प्रस्ताव को टाल दिया और कहा कि इंजेक्शन का कुप्रभाव और गहरा गया है. डीटीएबी ने परिवार कल्याण विभाग को यह सलाह दी कि इस पर विशेषज्ञों से राय ली जाए और इसकी गहन पड़ताल कराई जाए. स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया, उल्टा चारों तरफ से दबाव बढ़ा दिया और सम्बद्ध महकमों पर सरकार का घेरा कस गया. फिर दृश्य बदलता चला गया. परिवार कल्याण विभाग ने 24 जुलाई 2015 को एक सम्मेलन बुलाया और विशेषज्ञों से सुझाव लेने का प्रायोजित-प्रहसन खेला. उन संस्थाओं, विशेषज्ञों और समाजसेवियों को सम्मेलन में बुलाया ही नहीं गया, जो डीएमपीए के इस्तेमाल पर लगातार विरोध दर्ज कराते रहे और कानूनी लड़ाई लड़ते रहे.

इस सम्मेलन के बहाने तुगलकी तरीके से यह तय भी कर लिया गया कि प्राइवेट सेक्टर में डीएमपीए इंजेक्शन का इस्तेमाल पहले से हो रहा है, इसलिए इसकी अलग से जांच की कोई जरूरत नहीं है और अब इसे सार्वजनिक क्षेत्र में भी आजमाना चाहिए. जबकि सबको पता है कि प्राइवेट सेक्टर में डीएमपीए के इस्तेमाल का आंकड़ा अत्यंत क्षीण है. दिलचस्प मोड़ तो यह आया कि अब तक विरोध दर्ज करते आ रहे डीटीएबी ने डीएमपीए इंजेक्शन का इस्तेमाल किए जाने की 18 अगस्त 2015 को मंजूरी भी दे दी.

इस तरह मोदी सरकार ने मांओं को बांझ बनाने और भावी नस्ल को पंगु बनाने वाली दवा के अराजक इस्तेमाल की भूमिका मजबूत कर दी. डीएमपीए जैसी खतरनाक दवा के इस्तेमाल का विरोध करने वाले लोगों का मुंह बंद करा दिया गया और मीडिया के मुंह पर ‘ढक्कन’ पहना दिया गया, ताकि कोई शोर न मचे, कोई वितंडा न खड़ा हो.

मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्‌डा ने जुलाई 2017 में ‘मिशन परिवार विकास’ की शुरुआत की और कहा कि इसके जरिए वे 2025 तक देश की जनसंख्या को काबू में ले आएंगे. बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की सह अध्यक्ष मेलिंडा गेट्स ने कहा कि बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए यह काम किया जा रहा है. गेट्स फाउंडेशन के फंड पर चलने वाले इस अभियान की मॉनिटरिंग फाउंडेशन का इंडिया हेल्थ एक्शन ट्रस्ट कर रहा है. बिल गेट्स और मेलिंडा गेट्स केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्‌डा, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व अन्य सम्बद्ध राज्यों के मुख्यमंत्रियों से लगातार सम्पर्क में हैं.

उनकी सौहार्द मुलाकातें लगातार हो रही हैं. मिशन की फंडिंग का ब्यौरा क्या है, मिशन के ऑपरेशन का खर्च कहां से आ रहा है, दवा कहां से आ रही है, इसकी कीमत क्या है, इस पर रहस्य बना कर रखा जा रहा है, कोई पारदर्शिता नहीं है. बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के आगे-पीछे सरकारें नाच रही हैं. फाउंडेशन के आगे विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था भी नतमस्तक रहती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन को फाउंडेशन ने 40 अरब डॉलर का फंड दे रखा है. इसके अलावा बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइजेशन) को हर साल तीन अरब डॉलर देता है, जो डब्लूएचओ के सालाना बजट का 10 प्रतिशत होता है. पूरी दुनिया के स्वास्थ्य-अर्थशास्त्र पर बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और उसके ‘सिंडिकेट’ का बोलबाला है.

फिर मोदी सरकार, योगी सरकार, नीतीश सरकार, रघुबर सरकार, सिंधिया सरकार, रमन सरकार, शिवराज सरकार और सोनोवाल सरकार क्या बला है! ये सरकारें भी फाउंडेशन की मुट्‌ठी में हैं. इसकी एक बानगी देखें, पूरा माजरा समझ में आ जाएगा. मिशन परिवार विकास के नाम पर चल रहे डीएमपीए इंजेक्शन अभियान को मॉनिटर कर रहा है बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन का इंडिया हेल्थ एक्शन ट्रस्ट. गेट्स फाउंडेशन ने यूपी कैडर के आईएएस अफसर विकास गोठवाल को इंडिया हेल्थ एक्शन ट्रस्ट का प्रमुख बना रखा है. गेट्स फाउंडेशन से प्रभावित रहे तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गोठवाल को बाकायदा छुट्‌टी देकर ट्रस्ट ज्वाइन करने की मंजूरी दी थी. गोठवाल का कार्यकाल वर्ष 2014-15-16 के लिए था. फिर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने और उन्होंने गेट्स फाउंडेशन के त्वरित-प्रभाव में गोठवाल को अगले तीन साल के लिए भी ट्रस्ट में बने रहने की मंजूरी दे दी.

3- जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर सात राज्यों में शुरू हुआ गंदा खेल

4- देश की निम्न और निम्न-मध्यम वर्ग की महिलाओं को बांझ बनाने का कुचक्र

प्रजनन दर कम करने के लिए ‘मिशन परिवार विकास’ के नाम पर महिलाओं को ‘अंतरा’ के नाम से दिया जाने वाला इंजेक्शन ‘डिपो मेडरॉक्सी प्रोजेस्टेरोन एसिटेट’ उन्हें भीषण रोग की सुरंग में धकेल रहा है. इस दवा के इस्तेमाल के कुछ अर्से बाद महिलाएं फिर मां बनने लायक नहीं रह जातीं. अगर बनती भी हैं तो बच्चे इतने कमजोर होते हैं कि शीघ्र मौत के शिकार हो जाते हैं, जो बच जाते हैं वे विकलांग होकर रह जाते हैं. फार्माकोलॉजी विशेषज्ञों का कहना है कि डीएमपीए के इस्तेमाल से स्थायी तौर पर शारीरिक परिवर्तन हो जाता है और हडि्‌डयां गलने लगती हैं. पुरुषों में इसका इस्तेमाल करने से उन्हें हृदयाघात और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा रहता है. पुरुषों की छाती महिलाओं की तरह फूलने लगती है.

इसका इस्तेमाल करने वाली महिलाओं का शारीरिक विन्यास विद्रूप हो जाता है, हड्‌डी के घनत्व (बोन-मास) में गलन और संकुचन होने लगता है, होठ का रंग बदलने लगता है, बाल झड़ने लगते हैं और मांसपेशियों का घनत्व भी गलने लगता है. डीएमपीए इंजेक्शन ऑस्टियोपोरोसिस और स्तन कैंसर होने में योगदान देता है और इसके इस्तेमाल से कालांतर में गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है. यह एचआईवी के संक्रमण का आसान मददगार बन जाता है. डीएमपीए इंजेक्शन का इस्तेमाल करने के एक वर्ष के अंदर 55 प्रतिशत महिलाओं के मासिक धर्म में अप्रत्याशित बदलाव देखा गया है और दो वर्ष के अंदर इस अप्रत्याशित घातक बदलाव ने 68 प्रतिशत महिलाओं को अपने घेरे में ले लिया.

डीएमपीए इंजेक्शन का इस्तेमाल करने वाली महिलाएं बाद में जब गर्भधारण करना चाहती हैं तब पैदा होने वाला उनका बच्चा अत्यंत कम वजन का होता है और अधिकतर मामलों में ऐसे बच्चों की साल भर के अंदर मौत हो जाती है. दवा का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के कालांतर में गर्भधारण करने के बाद होने वाले बच्चों के यौन संक्रमित होने का खतरा अत्यधिक रहता है. इसका इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के मस्तिष्क तंत्र पर भी बुरा असर पड़ता है. इस दवा से ब्रेस्ट कैंसर के अलावा सर्वाइकल (रीढ़ की हड्‌डी) का कैंसर होने का भी बड़ा खतरा रहता है. वर्ष 2006 का एक अध्ययन बताता है कि दवा के दो साल के प्रयोग से ऑस्टियोपोरोसिस होने की आशंका प्रबल हो जाती है. वर्ष 2012 के एक अध्ययन में यह पता चला कि 12 महीने या उससे अधिक समय तक डीएमपीए के उपयोग से आक्रामक स्तन कैंसर होने के कई केस सामने आए.

डीएमपीए इंजेक्ट करने के पहले सम्बन्धित महिला को आगाह (कॉशन) करना जरूरी होता है. साथ ही डॉक्टर का यह दायित्व भी होता है कि वह इंजेक्शन लेने वाली महिला को डीएमपीए से होने वाले नुकसान के बारे में पहले ही बता दे. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. ‘अंतरा’ के पैकेट्स पर भी हिदायत या जोखिम की चर्चा नहीं है, यहां तक कि दवा निर्माता कंपनी का नाम भी दर्ज नहीं है. सामान्य तौर पर बच्चों को दिए जाने वाले टीके में भी चार हिदायतों के साथ टीका लगाया जाता है, लेकिन डिम्पा इंजेक्शन लगाने के पहले कोई हिदायत नहीं दी जा रही है.

केंद्र सरकार का यह अभियान देश के निम्न वर्गीय, निम्न मध्यम वर्गीय ग्रामीण और गांव आधारित अशिक्षित, अर्ध-शिक्षित कस्बाई आबादी को टार्गेट कर रहा है. जिला स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कौन महिलाएं जाती हैं और वे किस वर्ग से आती हैं, इसके बारे में सबको पता है. स्वास्थ्य केंद्रों को अधिकाधिक इंजेक्शन लगाने का लक्ष्य दिया गया है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर कोई डॉक्टर ही उपलब्ध नहीं रहता जो इंजेक्शन देने के पहले सम्बन्धित महिला का हारमोनल-असेसमेंट करे और उसे डीएमपीए इंजेक्शन के खतरों के प्रति आगाह करे.

इंजेक्शन देने के पहले सम्बद्ध महिला से सहमति लेने की औपचारिकता केवल कागज पर पूरी की जा रही है. जिस वर्ग से महिलाएं आती हैं, उनकी जागरूकता का स्तर उन्हें इस काबिल नहीं बनाता कि वे लगने वाले इंजेक्शन के खतरों और जोखिम के बारे में कुछ जान पाएं. बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन दवा बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी ‘फाइज़र’ और चिल्ड्रेन्स इन्वेस्टमेंट फंड फाउंडेशन के साथ मिल कर कई गरीब देशों में डीएमपीए को ही ‘सायाना-प्रेस’ नाम से बेच रहा है. डीएमपीए इंजेक्शन सिरिंज के जरिए दिया जाता है जबकि ‘सायाना-प्रेस’ के पाउच में सुई लगी होती है. सुई को शरीर में चुभोकर पाउच का सिरा दबा देने से दवा शरीर के अंदर इंजेक्ट हो जाती है. स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि भारत में भी ‘सायाना-प्रेस’ को किसी दूसरे नाम से सीधे महिलाओं को देने की तैयारी चल रही है.

5- आंकड़ों का ‘फ्रॉड’ कर स्वास्थ्य मंत्रालय ने 145 जिलों में पहुंचाया डीएमपीए जहर

6- स्वास्थ्य केंद्रों को दिया गया टार्गेट, अधिक से अधिक महिलाओं को दें डिम्पा इंजेक्शन

मिशन परिवार विकास लॉन्च करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने दावा किया था कि इस अभियान के जरिए वर्ष 2025 तक टोटल फर्टिलिटी रेट को 2.1 पर ले आया जाएगा. जबकि सच्चाई यह है कि देश का टोटल फर्टिलिटी रेट 2015-16 के सर्वेक्षण में ही 2.1 दर्ज किया जा चुका है. स्पष्ट है कि आधिकारिक आंकड़ों के फर्जीवाड़े में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्‌डा की सीधी मिलीभगत है. आंकड़ों का फर्जीवाड़ा करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण का वर्ष 2010-11 का पुराना डाटा उठा लिया और नेशनल टोटल फर्टिलिटी रेट 3.8 दिखा कर अधिक से अधिक जिलों को अपनी चपेट में लेने का कुचक्र रचा. केंद्रीय सत्ता के इस नियोजित ‘फ्रॉड’ में यूपी का फर्टिलिटी रेट 5 दिखाया गया और इस आधार पर यूपी के 57 जिलों में धंधा फैला लिया गया. राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) का ताजा आंकड़ा 2015-16 का है, जो यह बताता है कि देश का टोटल फर्टिलिटी रेट घट कर 2.1 पर आ चुका है. ताजा आंकड़े के मुताबिक उत्तर प्रदेश का फर्टिलिटी रेट 2.7 पर आ चुका है.

6- ‘मिशन परिवार विनाश’ साबित हो रहा है भारत सरकार का ‘मिशन परिवार विकास’

‘मिशन परिवार विकास’ विनाशकारी इसलिए भी है क्योंकि जिन प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होमों में सम्पन्न और धनाढ्य लोग इलाज कराने जाते हैं, वहां के डॉक्टर कुलीन महिलाओं को डीएमपीए इंजेक्शन प्रेसक्राइब नहीं करते. ‘चौथी दुनिया’ ने कई प्राइवेट अस्पतालों में तहकीकात की और प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले कई डॉक्टरों ने भी पूछताछ में कहा कि वे डीएमपीए इंजेक्शन प्रेसक्राइब नहीं करते. अधिकांश डॉक्टरों ने कहा कि महिलाएं गर्भधारण न करें इसके लिए वे पतियों को सलाह देते हैं और महिलाओं को बस गर्भनिरोधक गोली लेने की सलाह देते हैं.

डॉक्टरों ने कहा कि डीएमपीए के साइड-इफेक्ट इतने ज्यादा हैं कि उसे संभाल पाना मुश्किल है, इससे क्लिनिक या अस्पताल की साख खराब होगी और व्यवसाय चौपट हो जाएगा. डीएमपीए इंजेक्शन को मंजूरी देने के खिलाफ कई सामाजिक संगठनों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिख कर उन्हें ऐसा करने से मना किया था. लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई. स्वास्थ्य मंत्रालय की योजना देश के निम्न और मझोले परिवारों के लिए विनाशकारी साबित हो रही है.


सरकार से उसकी पाशविकता के बारे में पूछा जाएगा कि नहीं..!

अंग्रेजी का एक सूत्र-वाक्य है, “where ignorance is bliss, it is folly to be wise.” यानि, जहां अज्ञानता परमानंद हो, वहां ज्ञान ही मूर्खत्व है. मीडिया सार्वजनिक मंच है, हम जो बोलते हैं, लिखते हैं या प्रतिक्रिया देते हैं, उसकी व्यापक श्रवणीयता और पठनीयता है. बिना सोचे-समझे, बिना किसी सामाजिक-मानवीय सरोकार के, बिना कुछ जानकारी हासिल किए, बगैर कुछ पढ़े-लिखे हम किसी भी गंभीर मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हैं तो हम यह नहीं समझते कि हमारे ही व्यक्तित्व का हास्य-पतंग सामाजिक आकाश पर उड़ता है और यह चारों तरफ स्थापित करता है कि हमारी अज्ञानता ही हमारा परमानंद है. इस ‘परमानंद के भाव’ के प्रति हमें सतर्क रहना चाहिए.

अभी का प्रसंग वह खबर है जो ‘चौथी दुनिया’ में प्रकाशित हुई और जिसे सोशल मीडिया का भी हिस्सा बनाया गया, ताकि वह और व्यापक दायरे में फैले और समाज में बृहत्तर सकारात्मक बहस का मार्ग प्रशस्त कर सके. ‘चौथी दुनिया’ में प्रकाशित खबर अत्यंत संवेदनशील है. इस खबर पर पिछले पांच महीने से काम चल रहा था, जब ‘मिशन परिवार विकास’ शुरू करने की घोषणा हुई थी.

स्वास्थ्य विभाग के एक आला अधिकारी ने तब ही कहा था कि केंद्र ने जिस ‘नेशनल फर्टिलिटी रेट’ के आधार पर देश के 145 जिलों में यह मिशन शुरू किया है, वह आंकड़ा 2010-11 का है. यानि, केंद्र सरकार ने 2015-16 का ‘नेशनल फर्टिलिटी रेट’ छुपा लिया और पिछला वाला अधिक फर्टिलिटी रेट बता कर अधिक जिलों को इस योजना के दायरे में ले लिया. आखिर केंद्र सरकार ने झूठ का सहारा क्यों लिया? क्या बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन से टेबुल के नीचे से मिलने वाले दो-तीन सौ करोड़ रुपए के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री झूठ परोसेंगे? यह सच है कि दुनिया के स्वास्थ्य-अर्थ (हेल्थ-इकोनॉमी) पर बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन का एकाधिपत्य है.

लेकिन इस योजना के पीछे क्या केवल अर्थ (पैसा) है? या इसके पीछे कोई अनर्थ छुपा है? इन सवालों की छानबीन करने के क्रम में डीएमपीए पर ध्यान गया, जिसे ‘अंतरा’ के नाम से महिलाओं में इंजेक्ट किया जा रहा है. दवा के गुणधर्म को लेकर जांच-पड़ताल हुई और जो परिणाम सामने आया, उसने हिला कर रख दिया. फिर ‘डीएमपीए’ को लेकर दुनिया के कई महत्वपूर्ण मेडिकल जर्नल्स से लेकर चिकित्सकों, वैज्ञानिकों और मेडिको-लीगल एक्सपर्ट्स के मंतव्य और संदर्भ पढ़े गए. विशेषज्ञों से विस्तार से बात की गई. और तब यह लगा कि केंद्र सरकार की इस योजना के पीछे केवल धन की लोलुपता नहीं, बल्कि इसके पीछे कुछ और ही खतरनाक इरादा है. वह इरादा क्या हो सकता है, इसी पर तो समाज में बहस होनी चाहिए और लोकतांत्रिक दायित्वों के तहत सरकार से जवाब मांगा जाना चाहिए.

जो दवा खूंखार यौन अपराधियों को सजा के बतौर दी जाती है उसे अशिक्षित, अर्ध-शिक्षित महिलाओं में इंजेक्ट किया जा रहा है, महज इसलिए कि जनसंख्या कम हो सके? यह कैसी जघन्य बात है? और ऐसी जघन्य हरकतों पर इसी देश का कोई नागरिक यह बोले कि देश की विशाल जनसंख्या कम करने के लिए यह जरूरी है, या मीडिया सत्ता-सुर में रेंके… तो आप सोचेंगे न कि हम कैसे देशवासी हैं..! इस खबर को समाचार चैनल ‘न्यूज-24’ ने कह दिया कि फर्जी है तो दूसरी तरफ एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बढ़ती जनसंख्या का हवाला देते हुए इसे जरूरी बता दिया. फिर अपनी बात सुधारते हुए कहा कि हर दवा के थोड़े साइड इफेक्ट तो होते हैं. कुछ लोगों ने इसे मुस्लिम-प्रेरित बताने का भी धर्म निभाया.

इन बेमानी बहसों में उलझने के बजाय सरकार की पाशविकता पर बहस होनी चाहिए थी. यह प्रामाणिक तथ्य है कि डीएमपीए का इंजेक्शन लेने वाली महिला अगर दो साल बाद मां बनना चाहे तो उसके गर्भधारण में तमाम बाधाएं आएंगी. डीएमपीए की तासीर है कि वह हडि्‌डयां गलाएगी, शारीरिक विन्यास को विद्रूप करेगी, रासायनिक स्राव से कोख गंदा करेगी, मासिकधर्म को बाधित करेगी, स्तन कैंसर से लेकर रीढ़ की हड्‌डी में कैंसर का रोग बढ़ाएगी, महिला की देह को खतरनाक यौन-रोगों के संक्रमण का उपकरण बना देगी और ऐसी जर्जर महिलाओं से जो नस्ल पैदा होगी, वह विकलांग, मानसिक रूप से अर्ध विकसित और पंगु निकलेगी. बहस इस बात पर होनी चाहिए या इस बात पर कि जनसंख्या रोकने के लिए यह जरूरी कदम है? देश के जिन 145 जिलों को इसके लिए टार्गेट बनाया गया है, वहां का सामाजिक ढांचा देखेंगे तो आपको रोना आएगा.

कोई शिक्षा नहीं, कोई जागरूकता नहीं, इन्हें क्या पता कि डीएमपीए का जहर उनकी नस्ल का नाश करने वाला है! ऐसी दवाओं के इस्तेमाल के लिए ऐसे ही पिछड़े इलाकों को क्यों चुना जाता है जहां जागरूकता का लेशमात्र भी प्रवेश नहीं! उन भोले-भाले ग्रामीणों को क्या पता कि जो दवा उनके परिवार की महिलाओं को इंजेक्ट किया जा रहा है, उस दवा का इस्तेमाल यौन अपराधियों की यौन-क्षमता नष्ट करने के लिए किया जाता है! तो क्या केंद्र सरकार से यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि देश की महिलाओं की यौन क्षमता क्यों नष्ट की जा रही है? या कि अंधभक्तों की जमात में शामिल होकर हम लोकतंत्र को अपने ही पैरों तले कुचल दें..! क्या सरकार को यह बताना हमारी लोकतांत्रिक जिम्मेदारी नहीं कि बढ़ती जनसंख्या को काबू में करने के और भी तरीके हैं, मानवीय से लेकर प्रशासनिक तक..!

जनसंख्या को नौकरी से लेकर सुविधाओं तक जोड़ें, लोगों को दिमागी तौर पर यह समझाएं कि आबादी बढ़ाना अपना ही नुकसान है! ऐसा नहीं करके क्या जनसंख्या कम करने के लिए सरकार नरसंहार करेगी..? यह डीएमपीए का इंजेक्शन रसायनिक-नरसंहार नहीं है तो क्या है? सरकार से यह पूछा जाना चाहिए कि नहीं..?


डीएमपीए इंजेक्शन महिलाओं और उसकी आने वाली संतति के लिए बेहद खतरनाक (हैज़ार्डस) है. इसका एक इंजेक्शन भी लगवाना खतरनाक है. यह स्तन-पान कराने वाली महिलाओं के लिए और भविष्य में खुद स्वस्थ रह कर स्वस्थ बच्चे की मां बनने की चाहत रखने वाली मां के लिए अत्यंत नुकसानदेह है.

डॉ. सी. सत्यमाला


प्रतिष्ठित साइंस जरनल के संदर्भों को देखते हुए यह साबित होता है कि डीएमपीए इंजेक्शन स्तन कैंसर और यौन संक्रमण का खतरा बढ़ाता है. इस इंजेक्शन के इस्तेमाल से एचआईवी का भी खतरा बहुत बढ़ जाता है. यह दवा रोगों से लड़ने की स्वाभाविक क्षमता (इम्यूनिटी) को नष्ट करती है. जब किसी व्यक्ति के शरीर से इम्युनिटी ही खत्म हो जाएगी, तो वह सर्दी-जुकाम तक नहीं रोक पाएगा, फिर उसे गंभीर बीमारियां तो आसानी से पकड़ेंगी ही!

डॉ. एल.के.एस. चौहान

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