इतिहास हमेशा खुद को दोहराता है. दौर अलग-अलग हो सकते हैं, घटनाएं अलग-अलग हो सकती हैं, परिस्थितियां अलग-अलग हो सकती हैं और भूमिका भी दूसरी हो सकती है, परंतु पृष्ठभूमि, ध्येय और मंजिल एक जैसे होते हैं. गांधी जी एवं ममता बनर्जी के दौर अलग-अलग हैं. एक की हैसियत गुरु की है और दूसरे की भक्त एवं शिष्या की. दोनों की भूमिकाएं, दोनों के समय और घटनाएं भी भिन्न हैं, परंतु दोनों के जीवन में सादगी एक जैसी है. भ्रष्टाचार का कहीं नामोनिशान नहीं है. विशेष बात यह है कि ख़िलाफत आंदोलन के अली बंधुओं (मौलाना मोहम्मद अली जौहर एवं मौलाना शौकत अली) का समर्थन जिस प्रकार गांधी जी ने किया, उससे वह मुसलमानों के नेता माने जाने लगेे. ठीक उसी प्रकार अभी हाल में जामा मस्जिद दिल्ली के शाही इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी के ममता के समर्थन में आ जाने से मुसलमानों का ध्यान उनकी ओर आकर्षित होने लगा है. ध्यान रहे कि समाज सुधारक अन्ना हजारे के द्वारा ममता बनर्जी को आशीर्वाद देने के बाद ही ममता के हक में माहौल बनने लगा है. आइए देखें कि आख़िर इस देश के मुसलमान ममता को प्रधानमंत्री क्यों और कैसे बनाना चाहते हैं? 
bukhariभारत में हो रहे राजनीतिक धु्रवीकरण के वक्त कुछ भी असंभव नहीं है. अभी हाल में अन्ना हजारे द्वारा पश्‍चिम बंगाल की आठवीं मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस प्रमुख 59 वर्षीय ममता बनर्जी को आशीर्वाद देकर उन्हें प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश करते ही जनता का झुकाव उनकी ओर बढ़ता जा रहा है. दीदी के नाम से लोकप्रिय ममता बनर्जी भारतीय राजनीति में किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने मई 2013 में ममता को पारदर्शिता के लिहाज से सर्वोत्तम राजनीतिज्ञ माना था. प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रिका टाइम मैगजीन ने 2012 में उन्हें विश्‍व की सबसे प्रभावशाली 100 शख्सियतों में शुमार किया था. उसी वर्ष ब्लूमबर्ग मार्केट्स नामक पत्रिका ने भी उन्हें वित्तीय दुनिया में 50 सबसे प्रभावशाली ताकतों में से एक माना था.
दीदी की संसदीय राजनीति में शुरुआत 1984 में हुई, जब वह यादवपुर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर प्रसिद्ध कम्युनिस्ट राजनीतिज्ञ सोमनाथ चटर्जी को पराजित कर मुल्क की सबसे कम आयु की सांसद बन गईं. 2011 में पश्‍चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त सफलता हासिल करके उन्होंने वाममोर्चा सरकार को धराशायी कर दिया. उनकी इस सफलता में तत्कालीन वाममोर्चा सरकार द्वारा औद्योगिकीकरण के लिए जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण करने के विरोध में उनके नेतृत्व में हुए आंदोलन की निर्णायक भूमिका थी. पश्‍चिम बंगाल के मुसलमानों के बीच ममता बहुत लोकप्रिय हैं. कलकत्ता विश्‍वविद्यालय से इस्लामिक इतिहास में स्नातकोत्तर करने के चलते वह इस्लाम एवं मुसलमानों को ठीक से समझती हैं. वहां के मुसलमान दीदी पर बहुत भरोसा करते हैं और अपना हमदर्द मानते हैं.
2011 के विधानसभा चुनाव में कुल सीटों में 20 प्रतिशत मुसलमान उम्मीदवार राज्य में कामयाब हुए थे. पिछली बार के 46 की तुलना में इस बार 59 मुसलमान विधायक जीतकर सदन का गौरव बने. ज्ञात रहे कि उस समय तृणमूल कांग्रेस के 25 सदस्यों ने सफलता हासिल की थी. उसके साथ गठबंधन करने वाली कांग्रेस को 15 सीटों पर सफलता मिली, जबकि वाममोर्चा मुस्लिम उम्मीदवारों को लेकर 18 सीटों पर सिमट गया, जिसमें माकपा को 13, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक को 2, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी को 2 एवं समाजवादी पार्टी एक सीट मिली. ऐसा पहली बार हुआ कि दीदी अधिक एवं नए मुस्लिम चेहरे सामने लेकर आईं, जिनमें सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी हैदर अजीज सफवी, कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस नूर आलम चौधरी, मारे गए कंप्यूटर डिजायनर रिजवानुल रहमान के बड़े भाई रुकबानुर रहमान जैसे लोग शामिल थे. विशेष बात यह कि नवनिर्वाचित 7 मुस्लिम महिला विधायकों में से चार यानी नंदीग्राम के शहीद की मां फिरोजा बीबी, मुमताज बेगम, फिरदौसी बेगम एवं महमूदा बेगम तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर जीती थीं. ग़ौरतलब है कि पश्‍चिम बंगाल की कुल 293 विधानसभा सीटों में से 140 सीटों पर वहां की 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी का प्रभाव है. 2009 के संसदीय चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर दो मुस्लिम उम्मीदवार नूरुल इस्लाम एवं सुल्तान अहमद सफल हुए, राज्यसभा में भी उनकी संख्या दो हो गई है. राज्यसभा के दोनों सदस्यों का संबंध मीडिया से है. उर्दू दैनिक अख़बार-ए-मशरिक कोलकाता के संपादक नदीमुल हक़ एवं बंगला भाषा के दैनिक कलम के मुख्य संपादक अहमद हसन इमरान की नुमाइंदगी से दीदी का प्रभाव मुसलमानों में बढ़ा है. अभी हाल में इमरान के राज्यसभा सदस्य निर्वाचित होने का प्रभाव राज्य के अंदर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर पड़ा है, क्योंकि उनका प्रभाव देश के युवाओं में जबरदस्त है, वह छात्रनेता भी रहे हैं. इस सब का प्रभाव निश्छित रूप से ममता के हक में राष्ट्रीय स्तर पर पडेगा.
एक प्रेस कांफ्रेस में अन्ना ने ममता बनर्जी के लिए खुले तौर पर कहा, मैं दीदी का एक राजनीतिक नेता के रूप में समर्थन नहीं कर रहा हूं, बल्कि समाज एवं देश के प्रति उनके जो विचार हैं, वे बहुत मूल्यवान हैं. मैंने यदि पहली बार राष्ट्र और समाज के बारे में सोचने वाला कोई व्यक्तित्व देखा है, तो वह ममता हैं, इसलिए मैं उन्हें समर्थन दे रहा हूं. एक मुख्यमंत्री के तौर पर ममता बनर्जी अपना जीवन शानो-शौकत से गुजार सकती थीं, लेकिन वह एक छोटे से कमरे में सादगी के साथ जीवन बिता रही हैं. मैंने राष्ट्र के अच्छे भविष्य के लिए तमाम पार्टियों से 17 मुद्दों पर समर्थन मांगा था, लेकिन केवल ममता ने ही मुझे अपना समर्थन दिया.
उधर, अन्ना से मिलने दिल्ली आईं दीदी व्यस्तता के बावजूद जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना सैय्यद अहमद बुखारी से भेंट करने गईं, जिसका जबरदस्त प्रभाव पड़ता दिख रहा है. बीती 22 फरवरी को मुसलमानों के विशेष प्रतिनिधियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में स्वयं बुखारी ने कहा कि पश्‍चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कुछ दिनों पहले जामा मस्जिद आई थीं. उन्होंने राज्य में मुसलमानों की स्थिति, उनके कल्याण के लिए उठाए गए क़दमों एवं सच्चर समिति की अनुशंसाएं लागू करने के संबंध में बातचीत की. ममता ने बताया कि शिक्षा, रा़ेजगार एवं सरकारी संस्थाओं में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व के सिलसिले में विभिन्न क़दम उठाए गए हैं.
बुखारी ने बताया कि उन्होंने ममता बनर्जी से कहा कि यूं तो देश भर में मुसलमान हर क्षेत्र में पिछड़े हैं, लेकिन सच्चर समिति रिपोर्ट के अनुसार पश्‍चिम बंगाल में उनकी स्थिति ज़्यादा खराब है. इसलिए उनके पिछड़ेपन का स्तर पता लगाने के लिए सर्वे कराया जाए और फिर उन्हें शिक्षा, रोज़गार में आरक्षण दिया जाए. ग़ौरतलब है कि बुखारी ने दीदी को बीती 30 जनवरी को एक पत्र लिखा था, जिसका जवाब ममता ने 19 फरवरी को दिया. चौथी दुनिया से फोन पर हुई बातचीत में बुखारी ने कहा कि पश्‍चिम बंगाल के अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के लिए ममता ने विकास के जो कार्य किए हैं, उनका विवरण स्वयं उनके पत्र से जानकर व्यक्तिगत तौर पर एहसास है कि भारत को उन्हीं की तरह एक ऐसे सेक्युलर नेता की आवश्यकता है, जो केवल जुबानी वादों में नहीं, बल्कि काम करने में विश्‍वास करता हो. 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में जितने लोग हैं, उनमें वह सबसे अच्छी प्रधानमंत्री साबित होंगी. बुखारी ने कहा कि कांग्रेस एवं वाममोर्चे का यह आरोप बेबुनियाद है कि भाजपा एवं तृणमूल कांग्रेस के बीच खुफिया संधि है. ममता बनर्जी किसी भी स्थिति में चुनाव बाद भाजपा से कोई समझौता नहीं करेंगी.
ममता बनर्जी ने राज्य के मुसलमानों का पिछड़ापन दूर करने के लिए बड़े काम किए. ममता ने सत्ता में आते ही राज्य के उर्दूभाषी क्षेत्रों में उर्दू को द्वितीय सरकारी भाषा बनाने की घोषणा की. उन्होंने मदरसों के शिक्षकों, मस्जिदों के इमामों एवं मोअज्जिनों के वेतन बढ़ाए. मुस्लिम आरक्षण के संबंध में उनका दृष्टिकोण सर्वविदित है, इसलिए 17 प्रतिशत आरक्षण कोटे में 10 प्रतिशत मुसलमानों को मिलना तय हैं. उन्होंने आलिया विश्‍वविद्यालय के लिए 60 बीघा भूमि आवंटित की है और तीसरा हज हाऊस बनाने की ओर अग्रसर हैं. हर जिले में अल्पसंख्यक जिला कार्यालय खोले गए. प्रधानमंत्री पद के लिए अन्ना हजारे का ममता बनर्जी के संबंध में विचार व्यक्त करने और फिर 18 फरवरी को दिल्ली में ममता द्वारा उनसे मिल कर आर्शीवाद लेने और उनके 17 सूत्रीय कार्यक्रम से सहमति प्रकट करने के बाद ऐसा महसूस होता है कि दीदी प्रधानमंत्री पद के लिए एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आ गई हैं.

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