nasbandiपिछले दिनों छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में कैंप लगाकर किए गए नसबंदी कार्यक्रम में कुल 17 महिलाओं की मौत ने छत्तीसगढ़ सरकार के ऊपर सवाल खड़े कर दिए हैं. सरकारी लापरवाही और डॉक्टरों की कारगुज़ारियों का नज़ारा इस नसबंदी कांड में साफ दिखाई दिया, जिसमें महिलाओं को अपनी जान गंवानी पड़ी और मासूम बच्चों के ऊपर से मां का आंचल छिन गया. इस नसबंदी शिविर में डॉक्टर ने निर्धारित मानकों की धज्जियां उड़ातेे हुए तकरीबन 5 से 6 घंटे में 83 महिलाओं की नसबंदी कर दी. इस हिसाब से देखा जाए तो एक आपरेशन को 3 मिनट मे निपटा दिया गया.
इस नसबंदी शिविर में दूरबीन विधि से 83 महिलाओं का ऑपरेशन किया गया. ऑपरेशन के बाद महिलाओं को उनके घर भेज दिया गया. घर पहुंचने के बाद महिलाओं की तबियत बिगड़ने लगी. उन्हें उल्टी, दस्त और चक्कर आने लगे, जिसके बाद परिजनों ने उनको स्थानीय अस्पतालों में भर्ती कराया. इस दौरान 17 महिलाओं की मौत हो गई. इन ऑपरेशनों ने सरकार को एक बार फिर कठघरे में खड़ा तो किया साथ ही दवाओं की स्थानीय स्तर पर जांच की प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े हो गए. कैंप लगाकर की जा रही नसबंदी ने कई सवाल खड़े किए हैं. इस घटना के बाद कई सारी चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. नसबंदी के बाद महिलाओं की मौत का सबसे बड़ा कारण डॉक्टरों को नसबंदी के दिए लक्ष्य को माना जा रहा है. डॉक्टरों को अधिक से अधिक नसबंदी ऑपरेशन करने का लक्ष्य दिया गया था. इस वजह से डॉक्टरों ने एक दिन में तीस ऑपरेशन किए जाने वाली मशीन से 83 ऑपरेशन कर डाले. जिनमें से 17 महिलाओं की मौत हो चुकी है. इन मौते के पीछे का प्रमुख कारण दवा को बताया जा रहा है. प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में पता चला कि ऑपरेशन के बाद जो दवाएं महिलाओं को दी गई, उसमें चुहे मारने वाली दवा जिंक फॉस्फाइड के अंश मिले हैं, यह उनकी मौत का कारण हो सकता है. पोस्टमर्टम रिपोर्ट में जो परिणाम आए हैं और महिलाओं में जो लक्षण दिखे वो जिंक फॉस्फाइड खाने के बाद दिखते हैं. इस रिपोर्ट के आधार पर महावीर फार्मा कंपनी की 43 लाख 34 हजार टैवलेट को जब्त कर लिया गया. टारगेट पूरा करने के लिए जिन महिलाओं का ऑपरेशन किया जा रहा था उनमें कुछ महिलाएं बैगा जाति की भी थीं. यह जाति विलुप्ति की कगार पर हैं और संरक्षण की श्रेणी में रखी जा चुकी हैं. इन लापरवाह डॉक्टरों को केवल अपने टारगेट को पूरा करना और पुरस्कार लेना ही दिखाई दे रहा था और इसके अलावा कुछ भी नहीं. डॉक्टरों के लिए महिलाओं की जिंदगी से ज्यादा उनका टारगेट था, जो उन्हें येन केन पूरा करना था. मामले को बढ़ता देख प्रशासन की तरफ से चार डॉक्टरों को निलंबित कर दिया गया. निलंबित होने वाले डॉक्टरों में डॉ आर के गुप्ता समेत नसबंदी कार्यक्रम के राज्य समन्वयक केसी उरांव, जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी आर के भांगे और प्रखंड चिकित्सा अधिकारी प्रमोद तिवारी थे. इसके बाद फरार चल रहे डॉक्टर गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया और उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई. गौरतलब है कि डॉ गुप्ता को इसी साल ही 50 हजार नसबंदी ऑपरेशन करने के लिए मुख्यमंत्री ने 26 जनवरी को पुरस्कृत किया था.
जांच के बाद जो जानकारी सामने आई हैं उससे पता चला है कि जिस अस्पताल में नसबंदी कैंप लगाएगा गया था वह चार साल से बंद पड़ा था. सरकारी दस्तावेजों के अनुसार नवंबर माह में बिलासपुर जिले में लगने वाले कैंपों में बंद पड़े निजी अस्पताल का कहीं नाम नहीं था. अब इस घटना से सरकार का गांव-गांव चलाया जा रहा नसबंदी कार्यक्रम सवालों के घेरे में आ गया है. यहीं नहीं आशा ताईयों के खिलाफ भी शिकायतें मिली हैं कि सरकार द्वारा दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि के अलावा जो नसबंदी कराने वाली महिलाओं को जो प्रोत्साहन राशि मिलती है उसमें से भी अपना हिस्सा लेती हैं. शिविर में नसबंदी के लिए लाई गईं ऑपरेशन के लिए अधिकतर महिलाओं के पति से नो तो ऑपरेशन की अनुमति ली गई और ना ही अन्य किसी परिजन से. शिकायत यह भी है कि आशा ताई को एक महिला के ऑपरेशन पर 150 रुपये प्रोत्साहन राशि के रूप में मिलते हैं. इसी लालच में वे महिलाओं को बहला-फुसलाकर ऑपरेशन के लिए लाती हैं. यहीं नहीं जिन महिलाओं की डिलेवरी हुई होती है और डिलेवरी होने के तीन महीने बाद ऑपरेशन करान सुरक्षित होता है. लेकिन वे महिलाओं को उससे पहले प्रोत्साहन के चक्कर में डिलेवरी के कुछ दिन बाद ही नसबंदी के लिए अस्पताल ले आती हैं. अब इतने बड़े हादसे के बाद छत्तीसगढ़ सरकार को चल रहे नसबंदी शिविर के रूपरेखा की जांच करनी चाहिए, जिससे आगे ऐसी घटनाएं न हों. बिलासपुर में हुए नसबंदी कांड की जांच के लिए न्यायिक जांच आयोग गठित किया गया है. इस आयोग का अध्यक्ष जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्रीमती अनीता झा को बनाया गया है. उन्होंने बताया की जांच की अवधि प्रशासन ने तीन माह निर्धारित की है. जांच आयोग पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं, क्योंकि पहले भी एक मामले में जांच का काम अनीता झा को दिया गया था. जिसकी जांच आज तक पूरी नहीं हो पाई है. ऐसे में नसबंदी कांड की जांच सरकार ने उनके हांथों में क्यों सौंपी? दूसरा सवाल जिन नकली दवा कंपनियों पर अब छापे मारे जा रहे हैं, उनके खिलाफ पहले कार्रवाई पहले क्यों नहीं की गई? क्या रमन सरकार गरीब महिलाओं के मरने का इंतजार कर रही थी? अब यह देखना होगा कि जांच के बाद सच्चाई सामने आती है या केवल जांच के नाम पर खाना-पूर्ति होती है.

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