black-moneyसमीक्षा बैठक छोड़ कर चले गए राजस्व सचिव, होर्डिंग्स से पीएम की तस्वीरें हटाने का निर्देश

काला धन उजागर करने की केंद्र सरकार की योजना इन्कम डिस्क्लोज़र स्कीम (आईडीएस) फेल हो गई. अरबों रुपये का लेन-देन करने वाले लोगों का पता फर्जी पाया गया है. छह लाख 90 हजार नोटिसें बैरंग वापस लौट आई हैं. स्कीम के ध्वस्त होने से धराशाई केंद्रीय राजस्व सचिव हंसमुख अधिया समीक्षा बैठक अधूरी छोड़ कर चले गए. आईडीएस के प्रचार के लिए लगाई गई होर्डिंग्स से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें हटाने का निर्देश जारी कर दिया गया है. यह तीन महत्वपूर्ण तथ्य इस विस्तृत खबर के सूत्र हैं.

आईडीएस योजना के तहत काले धन का पता लगाने की कवायद में यह खुलासा हुआ कि बैंकों के जरिए बहुत बड़ी तादाद में काले धन का ट्रांजैक्शन हो रहा है. सारे नियम-कानून ताक पर रख कर देश के विभिन्न बैंक पैन नंबर दर्ज किए बगैर करोड़ों और अरबों रुपये का लेन-देन धड़ल्ले से कर रहे हैं. केंद्र सरकार को समझ में ही नहीं आ रहा है कि ऐसे में क्या किया जाए! पैन नंबर दर्ज किए बगैर हुए करोड़ों और अरबों रुपये के सात लाख बड़े व सामूहिक लेन-देन (क्लस्टर ट्रांजैक्शन) से सम्बन्धित लोगों को जो नोटिसें भेजी गई थीं, उनमें से छह लाख 90 हजार नोटिसें ‘एड्रेसी नॉट फाउंड’ लिख कर वापस आ गईं. इन सात लाख बड़े ट्रांजैक्शंस में जो पते लिखाए गए थे, उन पतों पर कोई नहीं मिला. न नाम का पता चल पा रहा है, न पते पर कोई पाया जा रहा है और न उनके केवाईसी (नो योर कस्टमर) का ही कोई ओर-छोर मिल रहा है. 90 लाख बैंक लेन-देन (ट्रांजैक्शन) पैन नंबर के बगैर हुए, जिनमें 14 लाख बड़े (हाई वैल्यू) ट्रांजैक्शन हैं और सात लाख बड़े ट्रांजैक्शन हाई-रिस्क वाले हैं. इन्हीं सात लाख ट्रांजैक्शन के सिलसिले में नोटिसें जारी हुई थीं, जो लौट कर वापस आ गईं और केंद्र सरकार की इन्कम डिस्क्लोज़र स्कीम (आईडीएस) की धज्जियां उड़ा गईं.

काला धन पकड़ने के नायाब फार्मूले की तरह पेश की गई इन्कम डिस्क्लोज़र स्कीम (आईडीएस) अपनी निर्धारित अवधि के डेढ़ महीने पहले ही आधिकारिक किंतु अघोषित तौर पर फेल मान ली गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके तंत्र द्वारा बहुप्रचारित स्कीम की कानूनी और व्यवहारिक खामियों ने आईडीएस का बीच रास्ते में ही बंटाधार कर दिया. प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से फौरन निर्देश जारी होने लगे कि आईडी स्कीम की तमाम होर्डिंग्स से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें हटा ली जाएं. आईडीएस को मॉनीटर कर रहे केंद्रीय राजस्व सचिव हंसमुख अधिया ने 30 जुलाई की समीक्षा बैठक अधूरी ही छोड़ दी. पिछले दो महीने से प्रत्येक शनिवार को हो रही समीक्षा बैठक को अचानक अधर में छोड़ कर चले जाने से आईडीएस योजना का संचालन कर रहा केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) और उसके तहत काम करने वाला आयकर विभाग स्तब्ध है. केंद्रीय राजस्व सचिव के निर्देश पर ही सात लाख बड़े ट्रांजैक्शन से सम्बद्ध लोगों को नोटिस भेजी गई थी. वापस लौट आई नोटिसों का अब आयकर विभाग क्या करे! यह सवाल अधिकारियों को और परेशान कर रहा है. जिन बैंकों के जरिए ये ट्रांजैक्शन हुए, उन बैंकों से पूछताछ करने या उनकी संलिप्तता के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार सीबीडीटी या आयकर विभाग को नहीं है. यह अधिकार केवल भारतीय रिजर्व बैंक को है. आडीएस योजना बनाने वाले महान योजनाकारों ने स्कीम लागू करने की प्रक्रिया में भारतीय रिजर्व बैंक को शामिल ही नहीं किया था. लिहाजा, पैन नंबर दर्ज किए बगैर देश के विभिन्न बैंकों के जरिए हुए सात लाख क्लस्टर (समूहों में किए गए) हाई-रिस्क ट्रांजैक्शन, 14 लाख हाई-वैल्यू ट्रांजैक्शन और 69 लाख मध्यम ट्रांजैक्शंस के लिए बैंकों की संलिप्तता प्रमाणित होते हुए भी बैंकों को दोषी ठहराना मुश्किल हो रहा है. शासन को पता है कि देश के विभिन्न बैंकों के माध्यम से काले धन का ट्रांजैक्शन धड़ल्ले से हो रहा है, लेकिन देश के नीति-नियंता बैंकों के संदेहास्पद रोल पर पर्दा डालने का काम कर रहे हैं. ऐसे में आईडीएस जैसी स्कीमें देश के साथ धोखा नहीं हैं तो क्या हैं? आईडीएस स्कीम बनाने वाले प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय के ‘विद्वानों’ ने काले धन का पता लगाने की योजना में भारतीय रिजर्व बैंक को शामिल क्यों नहीं किया? यह सवाल सामने है, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय इस सवाल का जवाब नहीं दे पाएगा. क्योंकि इस स्कीम में इतनी ढेर सारी खामियां हैं कि पीएमओ किस सवाल का जवाब दे और किसका नहीं. उन खामियों पर चर्चा हम खबर के साथ करते जाएंगे.

छह लाख 90 हजार नोटिसें जब मुंह लटकाए वापस आ गईं तो राजस्व सचिव भी सन्नाटे में आ गए. समीक्षा बैठक में भी सवाल उठा कि वापस आई नोटिसों का जड़-मूल पता लगाने के लिए सरकार के पास तंत्र क्या है? बैंकों से पूछा नहीं जा सकता. किसी केंद्रीय एजेंसी से मदद ली नहीं जा सकती. राज्य सरकारों को इन्वॉल्व किए बगैर राज्य के तंत्र या थानों को छानबीन में लगाया नहीं जा सकता. इन सारी अड़चनों का पूर्वानुमान लगाए बगैर स्कीम लॉन्च कर दी गई और यह किसी कारगर परिणाम तक नहीं पहुंच पाई. वापस लौट कर आई नोटिसों के सूत्र पता लगाने के लिए अब आयकर विभाग को ही कहा जा रहा है. आयकर विभाग का कहना है कि आईडीएस के लिए निर्धारित समय सीमा में यह पता लगाया जाना असंभव है. इसकी विस्तार से ब्यौरेवार छानबीन के लिए बड़ी तादाद में प्रशिक्षित मानव संसाधन की आवश्यकता पड़ेगी. आईडीएस की समय-सीमा 30 सितम्बर तक ही है. इन स्थितियों के एक साथ सामने आते ही राजस्व सचिव ने हथियार डाल देना ही बेहतर समझा. उल्लेखनीय है कि राजस्व सचिव के नेतृत्व में ही सीबीडीटी आईडीएस की निगरानी कर रहा है. समीक्षा बैठक में राजस्व सचिव हंसमुख अधिया, सीबीडीटी के चेयरमैन अतुलेश जिंदल, मेंबर रेवेन्यु गोपाल मुखर्जी, मेंबर इन्वेस्टिगेशन सुशील चंद्रा और मेंबर आईटी एसके सहाय के साथ आयकर विभाग के प्रिंसिपल कमिश्नर्स और डायरेक्टरेट ऑफ सिस्टम्स के आला अधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शरीक रहते हैं. अतुलेश जिंदल के लिए वह अधूरी बैठक ही आखिरी बैठक साबित हुई, क्योंकि अगले ही दिन वे रिटायर हो गए. जिंदल के रिटायर होने के बाद रानी सिंह नायर चेयरमैन बनाई गई हैं. चेयरमैन बनने के पहले रानी सिंह नायर सीबीडीटी में ही लेजिस्लेशन एंड कम्प्यूटराइजेशन महकमे की प्रमुख (मेंबर एल एंड सी) के पद पर तैनात थीं. आईडी स्कीम बनाने में रानी सिंह नायर की प्रमुख भूमिका रही है. पैन नंबर के बगैर किए गए सात लाख ‘हाई वैल्यू ट्रांजैक्शन’ से जुड़े लोगों और समूह को नोटिस जारी किए जाने के बारे में सीबीडीटी से सम्बद्ध आयकर आयुक्त मीनाक्षी जे. गोस्वामी का कहना है कि आयकर विभाग की आंतरिक तकनीक के जरिए ऐसे तमाम अकाउंट का पता लगा. उन्होंने माना कि पिछले छह वर्ष के दरम्यान ऐसे 90 लाख ट्रांजैक्शंस हुए, जिनमें 14 लाख हाई-वैल्यू ट्रांजैक्शन और सात लाख उच्च-जोखिम (हाई-रिस्क ट्रांजैक्शन) वाले लेन-देन पाए गए. उन्हीं सात लाख ट्रांजैक्शंस से सम्बद्ध लोगों को नोटिस भेजने का निर्णय लिया गया था.

वित्त मंत्रालय के ही आला अधिकारी कहते हैं कि करोड़ों और अरबों रुपये के लेन-देन (ट्रांजैक्शन) में बैंकों द्वारा पैन नंबर की अनिवार्यता का कोई ध्यान नहीं रखा जाना और केवाईसी नॉर्म्स का पालन नहीं किया जाना बैंकों की अराजकता और मिलीभगत का प्रमाण है. तकनीकी व्यवस्था लागू है कि एक वर्ष की अवधि में भी अगर 10 लाख रुपये डिपॉजिट हुए या लेन-देन हुआ तो वह फाइनैंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (वित्तीय खुफिया इकाई) के समक्ष खुद ब खुद फ्लैग करने लगेगा. लेकिन वह फ्लैग नहीं हुआ, तो स्पष्ट है कि बैंक केवाईसी नियमों और पैन नंबर इंट्री के नियम को पूर्ण रूप से लागू नहीं कर रहे हैं. बैंकों के ऊपर केवाईसी का कोई दबाव भी नहीं है. बैकों पर खाता खोलने का टार्गेट और कर्ज बांटने का लक्ष्य पूरा करने का दबाव रहता है. बैंकों का यह स्पष्ट कहना है कि वे अपना प्राथमिक काम करें कि केवाईसी ही भरवाते रहें. साफ है कि बैंक के माध्यम से हो रहा नॉन पैन ट्रांजैक्शन मनी लॉन्ड्रिंग का प्रमुख जरिया बना हुआ है. पैन नंबर दर्ज किए बगैर होने वाले लेन-देन के लिए सीधे तौर पर बैंक दोषी हैं, फिर बैंकों पर इसका दायित्व तय किया जाएगा कि नहीं? इस सवाल पर वित्त मंत्रालय के आला अधिकारी ने कहा कि इसकी जिम्मेदारी किसी पर नहीं तय हो रही है. जिन बैंकों ने यह काम किया उन बैंकों से कौन पूछेगा? पूछने का अधिकार केवल आरबीआई का है, लेकिन इस स्कीम को लागू कराने में आरबीआई को शामिल ही नहीं किया गया है. इस स्कीम को केवल वित्त मंत्रालय और राजस्व विभाग मॉनीटर कर रहा है. आरबीआई का इन्वॉल्वमेंट रहता तो बैंकों से पूछा जाता. बैंकों में केवाईसी नॉर्म्स का पालन हो रहा है कि नहीं इसे भी आरबीआई ही देखने के लिए अधिकृत है, कोई दूसरा विभाग इसकी जांच नहीं कर सकता है. आईडीएस लागू करने की जिम्मेदारी अकेले आयकर विभाग को दे दी गई और स्कीम के फेल होने का ठीकरा भी आयकर विभाग के ही सिर फोड़े जाने की तैयारी है. वित्त विभाग के उक्त आला अधिकारी ने आईडीएस के धागे खोल कर रख दिए. उन्होंने कहा कि शनिवार 30 जुलाई की रिव्यू मीटिंग को राजस्व सचिव द्वारा अधूरा छोड़ कर चला जाना और होर्डिंग्स से पीएम की तस्वीर हटाने का निर्देश जारी होना ही आईडीएस के फेल होने की सनद है. अगर विजय हो रही होती तो निर्देश आता कि पीएम की फोटो से होर्डिंगें पाट दी जाएं. वे कहते हैं कि स्कीम फेल हो चुका, दो-चार हजार करोड़ आ भी गया तो क्या फर्क पड़ जाएगा? यह सागर में बूंद गिरने जैसा होगा. फॉरेन ऐसेट डिक्लेयरेशन स्कीम में ही कितना आ गया? छह हजार करोड़ आया. क्या है यह रकम? हम लोग आधी इकोनॉमी की बात कर रहे हैं, क्योंकि आधी इकोनॉमी काला धन है. इस संदर्भ में छह हजार करोड़ क्या होता है? अंदर की बात यही है कि इन्कम डिस्क्लोज़र स्कीम प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में बनी थी, टीपीएलडी से मुहर लगवाने की केवल औपचारिकता निभाई गई थी. सीबीडीटी में एक डिवीजन होता है टैक्स पॉलिसी एंड लेजिस्लेशन डिवीजन (टीपीएलडी), जो किसी भी नए प्रस्ताव के कानूनी पहलुओं पर विचार करता है और कानून मंत्रालय से परामर्श करने के बाद उसे अपनी मंजूरी देता है. विडंबना यह है कि टीपीएल डिवीजन में आईडीएस स्कीम का मसौदा मात्र तीन दिन रहा, उस पर टीपीएलडी की मुहर लगाने की केवल औपचारिकता पूरी की गई और पीएमओ भेज दिया गया. इस आपाधापी में भीषण कानूनी खामियां रह गईं.

आईडीएस में पुरानी अघोषित सम्पत्ति का भी पुनरनिर्धारण कर उसका टैक्स वसूलने का प्रावधान कर दिया गया. इसके लिए इन्कम टैक्स ऐक्ट की धारा 148 का हवाला दिया गया, जिसमें यह प्रावधान है कि जो निर्धारण (असेस्मेंट) पूर्ण हो गया हो उसे रि-ओपेन किया जा सकता है. असेस्मेंट दो साल के अंदर पूरा कर लिया जाता है. लेकिन उसी आयकर अधिनियम की धारा 149 में पुनरनिर्धारण की समय सीमा छह साल तय है. आईडीएस बनाने वाले लोगों ने इस धारा की तरफ कोई ध्यान ही नहीं दिया और स्कीम लागू कर दी. आईडीएस को जमीन पर लागू करने में लगे आयकर अधिकारियों को छह साल से अधिक की अघोषित सम्पत्ति के संदर्भों को कार्रवाई की परिधि में लेने में कानूनी मुश्किलें पेश आ रही हैं. आयकर विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामले निश्चित तौर पर अदालत में जाएंगे और वहां सरकार की हार होगी. आयकर और वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ निर्धारित समय के पार हो चुकी अघोषित सम्पत्तियों पर कर वसूलने के फैसले को अधिकार क्षेत्र का कानूनी अतिक्रमण बताते हैं. उनका कहना है कि स्कीम में इस तरह की कई अन्य कानूनी खामियां भी हैं.

इन्कम डिस्क्लोज़र स्कीम को लागू करने की प्रक्रिया में यह भी सामने आया कि फॉर्म 60 और 61 की आड़ लेकर भी अंधाधुंध लेन-देन किए जा रहे हैं. इन दो फॉर्म की सुविधा पैन कार्ड नहीं होने पर वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन इसका इस्तेमाल व्यापक पैमाने पर कर चोरी में किया जा रहा है और बैंक इस चोरी में मददगार हैं. प्रावधान यह है कि फॉर्म 60 और 61 का इस्तेमाल वही कर सकते हैं जिनकी आय का साधन सिर्फ कृषि है. लेकिन कर चोर इस सुविधा का बेतहाशा इस्तेमाल कर रहे हैं. फॉर्म 60 और 61 के साथ राशनकार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, आधार कार्ड, बिजली बिल या रिहाइश प्रमाणपत्र देने होते हैं, लेकिन छानबीन के दौरान विभिन्न बैंकों में बड़ी तादाद में फॉर्म 60 और 61 के खाली पड़े प्रपत्र पाए गए, जिनपर केवल हस्ताक्षर हैं, लेकिन उस पर कोई ब्यौरा भरा हुआ नहीं है और उन पर खूब लेन-देन किए गए हैं. बांग्लादेशी आप्रवासी भी भारी तादाद में फॉर्म 60 और 61 का फायदा उठा रहे हैं और आयकर नहीं दे रहे हैं. पूर्वोत्तर के राज्यों, पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा, बिहार और झारखंड में ऐसे ढेर सारे मामले उजागर हुए हैं.

इस बारे में पूछने पर वित्त विभाग के आला अधिकारी ने कहा, ‘नागरिकता का प्रश्न छोड़ दीजिए, जो यहां रहते हैं उन्हें टैक्स देना पड़ेगा, इसका कोई नियम ही नहीं बना है. हम भारत में रहने वाले लोगों की मैपिंग चाहते हैं. आप कहीं भी बैंक में खाता खोलें, आप कहीं भी वित्तीय लेन-देन करें आप मैप में रहें. हम अमेरिका जाते हैं तो टैक्स देते हैं कि नहीं! देश के लिए वित्तीय-प्रबंधन की प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए हम कैसे कंसर्न हों जब टैक्स देने में भी यह बाधा सामने आ जाए कि आप देश के नागरिक हैं कि नहीं. इससे क्या फर्क पड़ता है कि आप कहां के नागरिक हैं. आप भारत में रह रहे हैं, यहां कमाई कर रहे हैं, यहां बैंक में पैसे जमा कर रहे हैं, लेकिन टैक्स नहीं दे रहे. आपने जमीन खरीदी, बैंक एफडी बनाई, खाता खोला, नकद ट्रांजैक्शन किया, आपने शेयर खरीदा या निवेश में पैसा लगाया, आपने सोना खरीदा, लेकिन उसकी शिनाख्त नहीं हो रही. वो टैक्स भी नहीं दे रहे.’ उक्त अधिकारी ने कहा, ‘आप बैंक अकाउंट खोलने जाते हैं और बैंक मैनेजर को फॉर्म 60, 61 दे देते हैं तो टैक्स नहीं मांगा जाएगा. बैंकों में केवल हस्ताक्षर किए हुए बिना भरे हुए फॉर्म 60, 61 ढेर के ढेर पड़े हैं और उसपर ट्रांजैक्शन होता रहता है. उस पर कोई ब्यौरा भी नहीं रहता कि कितना खेत और कहां खेत. फॉर्म पर न डिपॉजिटर का नाम है, न पता है, न पेशा है, न उम्र है, ऐसी तो अंधेरगर्दी है. फिर कैसे डिसाइड हो कि वह कौन है.’ ऐसी मुश्किलों से देश की वित्तीय व्यवस्था गुजर रही है. विडंबना यह है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही इस पर चिंता और आश्चर्य जता चुके हैं कि 120 करोड़ की आबादी वाले देश में 50 लाख की आमदनी वाले मात्र डेढ़ लाख ऐसे लोग हैं जो आयकर देते हैं. जबकि 50 लाख से अधिक की आमदनी वाले लोगों की आबादी कुछ शहरों में ही लाखों में है.

आयकर चुराने के लिए फॉर्म 60 और 61 के बेजा इस्तेमाल के बारे में बताते हुए वित्त मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि वर्ष 2011 में कृषि आय के नाम पर करीब दो हजार लाख करोड़ रुपये की अघोषित सम्पत्ति उजागर हुई थी. यह वह रकम थी जिसे फॉर्म 60 और 61 से मिलने वाली सुविधा की आड़ लेकर बचाई गई थी. तभी इसका आधिकारिक तौर पर खुलासा हुआ था कि किसानों के वेश में काले धन का धंधा करने वाले लोग सक्रिय हैं और बैंकों की मिलीभगत से फॉर्म 60 और 61 का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं. कृषि क्षेत्र के नाम पर होने वाली आय की इस भारी राशि पर सरकार का ध्यान भी गया, लेकिन फिर भी कर चोरी रोकने का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हुआ. कृषि आय के नाम पर होने वाले काले धन के धंधे में शामिल बड़े नेताओं और नौकरशाहों के नाम सरकार को पता हैं, लेकिन उन पर हाथ डालने की हिम्मत किसी में नहीं है. खेती से होने वाली आय पर इनकम टैक्स नहीं लगता. इस सुविधा का कर चोरों ने इतना फायदा उठाया कि वर्ष 2004 में खेती से कमाई दिखाने वाला महज एक व्यक्ति था वह अचानक वर्ष 2008 में बढ़ कर दो लाख से अधिक हो गया. यानी वर्ष 2008 में दो लाख से अधिक लोगों ने फॉर्म 60 और 61 दिखा कर टैक्स चुरा लिया. वर्ष 2008 में खेती से कमाई गई 17 हजार 116 करोड़ रुपये की अघोषित राशि का खुलासा हुआ था जो 2011 में बढ़कर 2000 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया. यह राशि लगातार बढ़ती ही जा रही है, लेकिन इसे रोकने का कोई उपाय नहीं किया जा रहा. सरकार कहती रही कि जांच हो रही है. सीबीडीटी ने भी खेती से होने वाली इस अकूत आय का रहस्य जांचने का दावा किया और कहा कि एक करोड़ से अधिक कमाई वालों की पड़ताल की जाएगी. लेकिन हुआ क्या? वर्ष 2010 से लेकर 2013 के बीच 1080 लोगों की जांच हुई और वर्ष 2007 से लेकर 2015 के बीच मात्र 2746 लोग ही जांच की परिधि में आए. मतलब, ढाक के तीन पात.

राजस्व सचिव के खिलाफ आईआरएस

आयकर विभाग में मानव संसाधन की कमी का हाल यह है कि आईडी स्कीम की आखिरी तारीख यानी 30 सितम्बर तक के लिए आयकर विभाग के सारे अधिकारियों की छुटि्‌टयां रद्द कर दी गई हैं. आयकर विभाग के अधिकारी पिछले एक जून से लगातार काम कर रहे हैं. स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि केंद्रीय राजस्व सचिव हंसमुख अधिया की निरंकुश कार्यशैली के खिलाफ भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी भीषण नाराज हैं. कई राज्यों में इंडियन रेवेन्यु सर्विस फेडरेशन की अधिकांश इकाइयां राजस्व सचिव का खुला विरोध कर रही हैं. यह विरोध अब संगठित होता हुआ आईएएस बनाम आईआरएस में तब्दील होता दिख रहा है. कई संघों ने विरोध का बाकायदा प्रस्ताव पारित कर दिया है. केंद्रीय राजस्व सचिव के निर्देशों को आईआरएस के अधिकारी अपनी स्वायत्तता पर प्रहार मान रहे हैं. आईआरएस राजस्व सचिव का पद समाप्त करने की मांग कर रहा है. आईडी स्कीम की समीक्षा बैठक को तुनक कर छोड़ दिए जाने के बाद केंद्रीय राजस्व सचिव के खिलाफ माहौल और तनावपूर्ण हो गया है.

काले धन के धंधेबाजों को प्रोत्साहित करता है पीएम का कथन

काला धन सामने लाने के लिए केंद्र सरकार ने एक जून को इन्कम

डिस्क्लोज़र स्कीम लॉन्च की थी जो 30 सितम्बर तक चलेगी. इसमें यह छूट दी गई कि अघोषित आय बताने वालों की पहचान गोपनीय रखी जाएगी और निर्धारित टैक्स देने के बाद उनकी सम्पत्ति वैध हो जाएगी. तकनीकी रूप से आय घोषणा योजना-2016 को वित्त अधिनियम-2016 के नौवें अध्याय में शामिल कर इसे 1 जून 2016 से लागू किया गया. योजना 30 सितंबर 2016 तक लागू रहेगी और जुर्माने का भुगतान 30 नवंबर तक कर देना होगा. आय की घोषणा ऑनलाइन या देशभर में मुख्य आयुक्तों के समक्ष दाखिल की जा सकेगी. बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आईडीएस को लेकर देशवासियों को जो बातें कही थीं उसे फिर से पढ़ें तो पीएम की बातों से ही स्कीम के धराशाई होने के छेद मिल जाएंगे. पीएम ने देश के लोगों से कहा कि जो भी पुराना अघोषित पड़ा हो उसकी घोषणा कर मुक्त हो जाइए. ऐसा कहने के पहले पीएम को आयकर अधिनियम की धारा 149 के बारे में अधिकारियों ने ठीक से ब्रीफ नहीं किया था. बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों को प्रधानमंत्री की वह बात भी पसंद नहीं आई कि ‘अघोषित आय के सम्बन्ध में सरकार को जो लोग जानकारी देंगे, सरकार उनके खिलाफ कोई जांच नहीं करेगी. इतना धन कहां से आया और कैसे आया इसके बारे में भी पूछा नहीं जाएगा.’ इस कथन पर उनका कहना था कि सरकार का यह रवैया लोगों को काला धन जमा करने और कुछ अर्से बाद टैक्स भर कर काले को सफेद कर लेने के लिए प्रोत्साहित करता है. खैर, पीएम का वह बयान देखें…

‘मेरे प्यारे देशवासियो, आज मैं एक बात के लिए विशेष आग्रह करना चाहता हूं. एक ज़माना था, जब टैक्स इतने व्यापक हुआ करते थे कि कर में चोरी करना स्वभाव बन गया था. एक ज़माना था, विदेश की चीज़ों को लाने के सम्बन्ध में कई प्रतिबंध थे, तो तस्करी भी बढ़ जाती थी. लेकिन धीरे-धीरे वक्त बदलता गया है. अब करदाता को सरकार की कर-व्यवस्था से जोड़ना अधिक मुश्किल काम नहीं है, लेकिन फिर भी पुरानी आदतें जाती नहीं हैं. एक पीढ़ी अभी लगता है कि भाई, सरकार से दूर रहना ज्यादा अच्छा है. मैं आज आपसे आग्रह करना चाहता हूं कि नियमों से भाग कर के हम अपने सुख-चैन गंवा देते हैं. कोई भी छोटा-मोटा व्यक्ति हमें परेशान कर सकता है. हम ऐसा क्यों होने दें? क्यों न हम स्वयं अपनी आय के सम्बन्ध में, अपनी सम्पत्ति के सम्बन्ध में, सरकार को अपना सही-सही ब्यौरा दे दें. एक बार पुराना जो कुछ भी पड़ा हो, उससे मुक्त हो जाइए. इस बोझ से मुक्त होने के लिए मैं देशवासियों से आग्रह करता हूं. जिन लोगों के पास अघोषित आय है, उनके लिए भारत सरकार ने एक मौका दिया है कि आप अपनी अघोषित आय को घोषित कीजिए. सरकार ने 30 सितम्बर तक अघोषित आय को घोषित करने के लिए विशेष सुविधा देश के सामने प्रस्तुत की है. जुर्माना देकर हम अनेक प्रकार के बोझ से मुक्त हो सकते हैं. मैंने यह भी वादा किया है कि स्वेच्छा से जो अपने मिल्कियत के सम्बन्ध में, अघोषित आय के सम्बन्ध में सरकार को अपनी जानकारी देंगे, तो सरकार किसी भी प्रकार की जांच नहीं करेगी. इतना धन कहां से आया, कैसे आया, इसबारे में भी पूछा नहीं जाएगा और इसलिए मैं कहता हूं कि अच्छा मौका है कि आप एक पारदर्शी व्यवस्था का हिस्सा बन जाइए. साथ-साथ मैं देशवासियों को कहना भी चाहता हूं कि 30 सितम्बर तक की ये योजना है, इसको एक आखिरी मौका मान लीजिए. मैंने बीच में हमारे सांसदों को भी कहा था कि 30 सितम्बर के बाद अगर किसी नागरिक को तकलीफ हो, जो सरकारी नियमों जुड़ना नहीं चाहता है, तो उनकी कोई मदद नही हो सकेगी. मैं देशवासियों को भी कहना चाहता हूं कि 30 सितम्बर के बाद ऐसा कुछ भी न हो, जिससे आपको कोई तकलीफ हो, इसलिए भी मैं कहता हूं, अच्छा होगा 30 सितम्बर के पहले आप इस व्यवस्था का लाभ उठाएं और 30 सितम्बर के बाद संभावित तकलीफों से अपने-आप को बचा लें.’

नाकाम रही है विदेशों में जमा काला धन निकालने की योजना

विदेशों में रखे काले धन के बारे में स्वैच्छिक स्वीकारोक्ति योजना भी पिछले साल नाकाम हो चुकी है. इसके बावजूद केंद्र सरकार इस योजना को फिर से लागू करने के बारे में विचार कर रही है. पिछले वर्ष इस संदर्भ में केवल 638 खुलासे हुए जिसमें विदेशों में 3,770 करोड़ रुपये की अघोषित सम्पत्ति का ही पता चल पाया. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि 6,500 करोड़ रुपये की अघोषित विदेशी परिसम्पत्ति का खुलासा हुआ है. इसके बाद सरकार ने घोषणा की थी कि जिन लोगों ने विदेशों में जमा काले धन और परिसम्पत्तियों का खुलासा नहीं किया है, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. लोकसभा चुनाव के दरम्यान नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 80 लाख करोड़ रुपए की राशि विदेश में जमा है, जिसे वे सत्ता मिलने के सौ दिन के भीतर देश वापस ले आएंगे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. विदेशों में जमा अघोषित धन सामने आने के लिए पिछले साल लाई गई स्कीम के समय भी राजस्व सचिव हंसमुख अधिया ही थे. उन्होंने भी कहा था कि सरकार अब उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करेगी जिन्होंने विदेश में जमा कालेधन या परिसम्पत्तियों का खुलासा नहीं किया है, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. प्रधानमंत्री के 6,500 करोड़ रुपये के दावे के बरक्स हंसमुख अधिया ने यह स्वीकार किया था कि 638 लोगों ने अपने बैंकों खातों समेत विदेशी निवेश या विदेशी परिसम्पत्तियों की घोषणा की और कुल 3,770 करोड़ रुपये की रकम का खुलासा हुआ.

वित्त्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि विदेशों में जमा काला धन वापस लाने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले साल जो त्रैमासिक स्कीम चलाई थी उसका सारा जोर एक दबाव सृजित करने को लेकर था. देश के भीतर काले धन की एक समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही है. विदेशों में भी भारतीयों की अकूत सम्पत्ति जमा है. यह नकद राशि के रूप में भी है और अचल सम्पत्ति के रूप में भी है. केंद्र सरकार वर्ष 2017 में 90 देशों के बीच होने जा रहे समझौते के प्रति काफी आशान्वित है, जिसमें शामिल सभी देश काले धन की सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए सहमत हो गए हैं. काला धन जमा करने को लेकर कुख्यात देशों पर अमेरिका का भी काफी दबाव है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह आशंका गहरा रही है कि काले धन का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों में हो रहा है.

उक्त अधिकारी ने कहा कि विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस भारत लाना इसलिए भी संभव नहीं हो पा रहा है क्योंकि काला धन जमा करने वाले लोगों में देश के बड़े-बड़े नेता, बड़े-बड़े नौकरशाह, बड़े-बड़े उद्योगपति और बड़े-बड़े सामर्थ्यवान दलाल शामिल हैं. काला धन जमा करने का सबसे बड़ा स्रोत देश स्विट्जरलैंड के बैंकों में खाता खोलने की न्यूनतम राशि ही 50 करोड़ डॉलर होती है. इससे भारत से काला धन ले जाने वालों की ‘औकात’ का अंदाजा लगाया जा सकता है. हवाला के जरिए देश का धन बेतहाशा दूसरे देशों में जा रहा है. फेमा (फॉरेन एक्सचेंज मेंटेनेंस एक्ट) आने से हवाला का धंधा करने वालों पर फेरा (फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट) जैसे सख्त कानून का भी खौफ नहीं रहा. अब तो ‘जुर्माना भरो और धंधा करो’ जारी है.

शुरुआती दौर में स्विस बैंक एसोसिएशन ने कहा था कि गोपनीय खातों में भारत के लोगों की 1,456 अरब डॉलर की राशि जमा है. लेकिन भारत सरकार ने इसे हासिल करने की कोई कारगर पहल नहीं की. बताया जाता है कि भारतीय मुद्रा में 300 लाख करोड़ रुपये का काला धन अकेले स्विस बैंकों में जमा है. उस समय एक आकलन भी आया था कि उक्त राशि भारत को वापस मिल जाए तो देश के प्रत्येक जिले को 50,000 करोड़ रुपये मिल जाएंगे.

पिछले साल भी कम हुई थी घोषणा

केंद्र सरकार ने पिछले साल भी ऐसी ही स्वैच्छिक घोषणा की स्कीम लागू की थी. उस स्कीम में महज तीन सौ स्वीकारोक्तियां आई थीं और तीन हजार करोड़ की सम्पत्ति घोषित हुई थी. उनमें केवल एक व्यक्ति ने दो सौ करोड़ की अवैध सम्पत्ति की घोषणा की थी. इस बार भी आईडी स्कीम के तहत स्वीकारोक्तियों का आंकड़ा उत्साहजनक नहीं है. अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्लोबल फिनैंशियल इंटेग्रिटी इंडिया की रिपोर्ट है कि देश से हर साल 45 से 50 बिलियन डॉलर काला धन विदेश जाता है. उस हिसाब से स्वैच्छिक घोषणाओं से आने वाली रकम कुछ भी नहीं है. काले धन का धंधा देश में पिछले काफी अर्से से फल-फूल रहा है, लेकिन अब दुस्साहसिकता बहुत अधिक बढ़ गई है. वर्ष 1997 में स्वैच्छिक घोषणा स्कीम (वॉलंटरी डिस्क्लोज़र स्कीम) के तहत सरकार के खजाने में सात हजार आठ सौ करोड़ रुपए जमा हुए थे. आज यह स्वीकारोक्तियां घट कर नगण्य हो गई हैं, जबकि काले धन का धंधा अप्रत्याशित रूप से काफी बढ़ गया है.

सरकार का दावा हवा-हवा

केंद्र सरकार का दावा है कि पिछले दो वर्षों के दरम्यान 50 हजार करोड़ रुपये की अप्रत्यक्ष कर चोरी पकड़ी गई और 21 हजार करोड़ रुपये की अघोषित आय का भी पता लगाया गया. दो साल में 3,963 करोड़ रुपये के तस्करी के सामान भी जब्त किए गए. वित्त मंत्रालय का तर्क है कि प्रवर्तन उपाय बढ़ाने और सक्रिय करने से 50 हजार करोड़ रुपये की अप्रत्यक्ष कर चोरी का पता लगाया जा सका और 21 हजार करोड़ रुपये की अघोषित आय का भी सुराग हासिल हो सका. कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एमबी शाह की अगुआई में बनी स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) के जरिए भी काफी सफलता हासिल हुई और 1,466 मामलों में अभियोजन की कार्रवाई शुरू की जा सकी. इस पर वित्तीय मामलों के विशेषज्ञों ने सवाल उठाया कि प्रवर्तन को दुरुस्त करने से जब अप्रत्यक्ष करों की इतनी बड़ी चोरी और अतनी बड़ी अघोषित आय का पता लगाया जा सकता है तो फिर इन्कम डिस्क्लोज़र जैसी खर्चीली स्कीमें चलाने का क्या औचित्य है?

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