सिंगरौली के निवास गांव में 18 मई को जे पी पावर प्लांट, डीबी पावर प्लांट और आर्यन पावर प्लांट के विस्थापित किसानों की महापंचायत और 19 मई को निगरी में जे पी पावर प्लांट के गेट पर किसानों का धरना था. सीधी से लगभग 35 किलोमीटर दूर निगरी जाते समय सड़क के दोनों किनारे सरई के ऊंचे-ऊंचे पेडों का जंगल और बीच-बीच में पक्षियों के चहचहाने की आवाज का सुखद एहसास बेहद टूटी सड़क पर रेंगती जीप में लगने वाले हिचकोलों की तकलीफ महसूस नहीं होने दे रहा था. टिकरी पहुंचते ही जे पी प्लांट की दो विशाल टंकियां और संयंत्र की इमारत दिखाई देती है. पावर प्लांट के गेट से आगे बढ़ने पर कुछ ही दूरी पर एक और ऊंचा टैंक दिखता है. स्थानीय कार्यकर्ता सचिन ने बताया कि यह जेपी का सीमेंट प्लांट है, जिसका निर्माण अवैध है. अवैध कैसे? यह पूछने पर कहा कि भूमि का अधिग्रहण पावर प्लांट के लिए हुआ था लेकिन जेपी ने यहां सीमेंट ग्राइंडिंग प्लांट भी लगा लिया.

IMG-20150522-WA0053मध्य प्रदेश इन दिनों तेजी से बदलाव की दौर से गुजर रहा है. 50 से ज्यादा पावर प्लान्ट स्थापित हो रहे हैं. कुछ लग चुके हैं, कुछ निर्माणाधीन हैं और कुछ प्रस्तावित हैं. विकास की यह तस्वीर आकडों और इंटरनेट पर देखी जा सकती है. यहां एक दूसरी तरह का बदलाव इससे कहीं तेज गति से हो रहा है. वह है, इन पावर प्लान्ट्‌स की वजह से अपना घर और खेत गंवा चुके किसानों और आदिवासियों की सोच में हो रहे बदलाव और उनकी सामाजिक-राजनीतिक सक्रियता का. 43 डिग्री सेल्सियस तापमान में सुबह आठ बजे से शाम 4 बजे तक खुले आसमान के नीचे तपती दोपहर में गर्म हवा को झेलते हुए जे पी पावर प्लान्ट के गेट पर धरने में बैठे पांच सौ से ज्यादा विस्थापित महिलाओं, पुरुषों और नौजवानों को मुठ्ठी भींचे, हाथ लहराते हुए. लड़ेेंगे तो जीतेंगे, का नारा लगाते देख, उनकी इस बात पर यकीन होने लगता है कि उन्होंने अब आर-पार की लडाई का मन बना लिया है. यह वह बदलाव है जिसे देखने के लिए मध्य प्रदेश के विन्ध्य क्षेत्र में जाना होगा.
सिंगरौली के निवास गांव में 18 मई को जे पी पावर प्लांट, डीबी पावर प्लांट और आर्यन पावर प्लांट के विस्थापित किसानों की महापंचायत और 19 मई को निगरी में जे पी पावर प्लांट के गेट पर किसानों का धरना था. सीधी से लगभग 35 किलोमीटर दूर निगरी जाते समय सड़क के दोनों किनारे सरई के ऊंचे-ऊंचे पेडों का जंगल और बीच-बीच में पक्षियों के चहचहाने की आवाज का सुखद एहसास बेहद टूटी सड़क पर रेंगती जीप में लगने वाले हिचकोलों की तकलीफ महसूस नहीं होने दे रहा था. टिकरी पहुंचते ही जे पी प्लांट की दो विशाल टंकियां और संयंत्र की इमारत दिखाई देती है. पावर प्लांट के गेट से आगे बढ़ने पर कुछ ही दूरी पर एक और ऊंचा टैंक दिखता है. स्थानीय कार्यकर्ता सचिन ने बताया कि यह जेपी का सीमेंट प्लांट है, जिसका निर्माण अवैध है. अवैध कैसे? यह पूछने पर कहा कि भूमि का अधिग्रहण पावर प्लांट के लिए हुआ था लेकिन जेपी ने यहां सीमेंट ग्राइंडिंग प्लांट भी लगा लिया.
निवास स्थित हायर सेकेन्ड्री स्कूल के मैदान पर किसानों की महापंचायत थी. पंंचायत के आयोजक टोको-रोको-ठोको क्रांति मोर्चा के संयोजक उमेश तिवारी ने तयशुदा समय प्रात: दस बजे माइक संभाल लिया. मंच पर विभिन्न किसान संगठनों, क्षेत्र में सक्रिय सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रदेश सचिव तथा बहुजन समाज पार्टी के नेता भी मौजूद थे. सामने आस-पास के गांव के करीब तीन चार सौ किसान थे, जो धूप से बचने के लिए दो विशालकाय पेडों की छांव में बैठे थे.
सभा की शुरुआत में ही पंचायत की अध्यक्षता कर रहे उमेश तिवारी ने विस्थापितों की समस्याओं, कंपनी प्रबंधन के अन्याय और शासन-प्रशासन की उदासीनता का उल्लेख किया. जिसने जेपी प्लांट के विस्थापितों पर दायर फर्जी मुकदमें वापस लेने, रोजगार से निकाले गए 125 लोगों को वापस काम पर रखने, अनुबंध के अनुसार नौकरी देने का वायदा पूरा करने, आदिवासी गांव, मछुआरी टोला जाने वाले बंद रास्ते को पुन: खोलने जैसी मांगें शामिल हैं. उन्होंने बताया कि विस्थापितों के लिए कंपनी ने जो आवास कॉलोनी बनाई है वह अधिग्रहित भूमि पर ही प्लांट से सटी हुई है. वहां कोई बुनियादी सुविधायें नहीं हैं. हर वक्त इतना शोर होता है कि वहां चैन से रह पाना नामुमकिन है. जबकि साल 2002 की नीति के अनुसार वैकल्पिक कॉलोनी में विस्थापितों को आवास का मालिकाना हक मिलना चाहिए था. 1320 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए डीबी पावर प्लांट द्वारा 2008 में किसानों से जमीन ली गई थी. लेकिन, आज तक न तो प्लांट लगा और न ही किसानों को उनकी जमीन वापस मिली. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रदेश सचिव कामरेड बादल सरोज ने गोपद नदी पर जेपी प्लांट द्वारा बनाए गए डैम पर आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि शासन ने केवल 6 मीटर की इजाजत दी थी लेकिन कंपनी ने 11 मीटर ऊंचा बैराज बना लिया. उन्होंने कहा कि इस जल चोरी के खिलाफ संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक कि शासन डैम की ऊंचाई 6 मीटर तक नहीं करवा देता.

प्रदेश में किसानों के बीच गहरी पकड़ रखने वाले भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष शिव कुमार शर्मा उर्फ कक्काजी ने कहा कि सरकार किसानों को दो तरफा लूट रही है. एक तरफ तो अधिग्रहण के जरिए उनकी जमीन छीन रही है तो दूसरी तरफ उनकी बर्बाद फसल का मुआवजा नहीं दे रही है. किसानों से ऋण पर 14 फीसदी तक ब्याज वसूला जा रहा है. फसल की बर्बादी पर बीमा राशि के भुगतान में कोताही बरती जा रही है. खेत गिरवी रखने वाले साहूकारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है. किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ सुनीलम ने किसानों के मन से कंपनी का और शासन का खौफ निकालने की कोशिश की.

महापंचायत की कार्रवाई चल रही थी तभी नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री और भूमि अधिकार के लिए संघर्ष का प्रतिरूप बन चुकी मेधा पाटकर पहुंची. अब तक पंचायत में शिरकत करने वालों की संख्या बढ़ कर एक हजार से अधिक हो चुकी थी. सुश्री पाटकर ने नारा दिया भूमि अधिग्रहण नहीं, भू-अधिकार चाहिए. मंच से दूर बैठी महिलाओं को उन्होंने मंच के शमियाने में बुलाया और कहा आप आंदोलन की ताकत हैं. बेखौफ होकर लड़िए. नारा दिया लड़ेंगे तो जीतेंगे. निहायत आत्मीय ढ़ंग से उन्होंने जल, जंगल जमीन पर उनके हक की बात की. कहा कंपनियों द्वारा की जा रही पानी चोरी के लिए लड़ना होगा. यह एक लंबी लड़ाई है. बड़े कॉरपोरेट और सरकार मिलकर देश की वन संपदा, जल संपदा और खनिज संपदा को लूट रहे हैं. एक के बाद एक कई उदाहरण देकर उन्होंने विस्थापितों में भरोसा पैदा करने की कोशिश की कि लड़ोगे तो जीतोगे. मध्य प्रदेश का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यहां प्रचुर प्राकृतिक संपदा है. यह संपदा ही यहां के किसानों-आदिवासियों के लिए अभिशाप बन गई है. आज हर तरफ लूट मची है. यहां किसानों और आदिवासियों को उनकी अपनी जमीन और जंगल से बेदखल किया जा रहा है. उन्होंने केंद्र और प्रदेश की मौजूदा सरकारों पर प्रहार करते हुए कहा कि विस्थापितों के लिए जमीन नहीं है और उद्योगपतियों को छूट है कि वे कहीं भी कोई भी भूमि ले सकते हैं. ऐसा कहीं किसी देश में नहीं होता. पानी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि नदियों को यह कहकर बांधा जाता है कि बिजली मिलेगी. सिंगरौली में इतनी बिजली पैदा होती है, लेकिन यहां अंधेरा है. बांध तो बन जाते हैं लेकिन नदी गायब हो जाती है. जरूरत नदियों का अस्तित्व बचाने की है. पानी का नियोजन कैसे हो यह एक चुनौती है. आर्यन पावर प्लांट के विस्थापितों से सीधा संवाद करते हुए मेधा पाटकर ने उनसे अपनी कब्जे की अधिगृहित भूमि जोतने को कहा. उल्लेखनीय है कि सीधी जिले के भुमका में आर्यन पावर प्लांट के लिए भुमका एवं मूसामूड़ी के किसानों की जमीन बिना उनकी जानकारी के फर्जी ग्राम सभा के आधार पर वर्ष 2009 में अधिग्रहित की गई थी. किसानों ने भूमि का मुआवजा भी नहीं लिया गया है. इस सिलसिले में शासन द्वारा अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
महापंचायत को संबोधित करते हुए किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा कि किसानों की विभिन्न समस्याओं व चुनौतियों से पार पाने के लिए स्थानीय स्तर पर चल रहे आंदोलनों को व्यापक बनाना होगा. उनके बीच एकजुटता और समन्वय जरूरी है. इस दिशा में किसान मंच ने राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न किसान संगठनों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया है. पिछले महीने दिल्ली में भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ हुई रैली इसकी एक शुरूआती कड़ी है. उन्होंने समाजवादियों और वामपंथियों से पूरी ताकत के साथ आगे आने की अपील की. प्रदेश में किसानों के बीच गहरी पकड़ रखने वाले भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष शिव कुमार शर्मा उर्फ कक्काजी ने कहा कि सरकार किसानों को दो तरफा लूट रही है. एक तरफ तो अधिग्रहण के जरिए उनकी जमीन छीन रही है तो दूसरी तरफ उनकी बर्बाद फसल का मुआवजा नहीं दे रही है. किसानों से ऋण पर 14 फीसदी तक ब्याज वसूला जा रहा है. फसल की बर्बादी पर बीमा राशि के भुगतान में कोताही बरती जा रही है. खेत गिरवी रखने वाले साहूकारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है. किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ सुनीलम ने किसानों के मन से कंपनी का और शासन का खौफ निकालने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि मुकदमों और जेल से भयभीत होने की जरूरत नहीं. अहिंसक तरीके से आंदोलन जारी रखें. आंदोलन का मंत्र है मारेंगे नहीं, मानेंगे भी नहीं. यही भूमि अधिकार आंदोलन की ताकत है. पंचायत को सीपीआई के प्रदेश सचिव अरविन्द श्रीवास्तव, ईश्वरचन्द्र त्रिपाठी, राम लल्लू गुप्ता समेत एक दर्जन से अधिक वक्ताओं ने संबोधित किया.
कंपनियों की बेरहमी और शासन-प्रशासन की उपेक्षा के बीच विस्थापित किसानों आदिवासियों की पीड़ा और उनके संघर्ष पर विचार करते हुए करीब 150 साल पहले एक आदिवासी समुदाय के मुखिया द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति को संबोधित भाषण का बरबस स्मरण हो जाता है. 1855 में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन पीयर्स ने सिएटल के मूल निवासियों के मुखिया के पास प्रस्ताव भेजा कि सरकार उनकी जमीन खरीदना चाहती है. राष्ट्रपति के दूत ने यह पेशकश मुखिया के सामने रखी. अपने समुदाय की मौजदगी में मुखिया ने जो जवाब दिया वह पत्र आज पर्यायवरणविदों के लिए आधार पत्र का रूप ले चुका है. मुखिया के भाषण में मूल निवासियों द्वारा जंगल-जमीन छोड़े जाने का दर्द ही नहीं बल्कि कुछ बुनियादी सवाल भी हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं मुखिया ने कहा आपने हमारी जमीन खरीदने की पेशकश की है. यह आपकी भलमनसाहत है. हम जानते हैं यदि हम नहीं देंगे तो आप बलपूर्वक लेंगे, लेकिन कोई हवा, धूप और पानी कैसे खरीद सकता है. आपके लिए यह सिर्फ भूमि है जिस पर आप फैक्ट्री लगायेंगे, गाड़ियां दौड़ायेंगे. आपके लिए यह सिर्फ ज़मीन का टुकड़ा है, क्योंकि आपने कभी यहां के पेड़ों की छांव, धरती की तपिश, सुबह की धूप में चमकती ओस का नूर और जंगल से आती हवा की शीतलता को महसूस नहीं किया है. हमारे लिए यह धरती हमारी मां है यहां हमारे पूर्वज दफन हैं और हमारी नाल गड़ी है. हमारे लिए यह पवित्र है, हमारा जीवन है.
इसके एक साल बाद सीएटल के मुखिया और अमेरिकी सरकार के बीच अनुबंध हुआ जिसके तहत उनकी अधिकांश भूमि पर सरकार का कब्जा हो गया. दस साल बाद सरकार ने एक क़ानून बनाकर सीएटल में वहां के मूल निवासियों के रहने को गैरक़ानूनी करार दे दिया. कहानी आज भी वैसी ही है सिर्फ समय बदल गया है कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है. आश्चर्य मत करियेगा यदि विस्थापित किसान और आदिवासी उसे बदलकर एक नया इतिहास रच दें.

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