बिहार के दो केन्द्रीय विश्व विद्यालयों में से एक गया का केन्द्रीय विश्वसविद्यालय पूरी तरह से व्यवस्थित होने की ओर अग्रसर है, वहीं पूर्वी चम्पारण के महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय को अब तक अपनी जमीन नसीब नहीं हो सकी है. यह विश्व विद्यालय अपनी स्थापना के पहले से ही विभिन्न विवादों में घिरा रहा है. यूपीए की सरकार में तो मानव संसाधन विभाग के मंत्री कपिल सिब्बल ने पूर्वी चम्पारण को अविकसित क्षेत्र बताकर गया में केविवि की स्वीकृति दे दी थी. लेकिन एनडीए की सरकार में चम्पारण के सांसदों और बिहार के मुख्यमंत्री के संयुक्त प्रयासों से पूर्वी चम्पारण में महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वचविद्यालय को स्वीकृति मिली. बिहार सरकार ने इसके लिए 240 करोड की राशि भी पूर्वी चम्पारण जिला प्रशासन को निर्गत कर दी. इसके लिए जमीन का चयन भी कर लिया गया, लेकिन आज 3 वर्ष बाद भी प्रस्तावित भूमि का अधिग्रहण नहीं हो सका है. हाल ही में 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर जिले के प्रभारी मंत्री विनोद नारायण झा ने इस केविवि को भूमि उपलब्ध कराने दावा किया था, लेकिन हकीकत यही है कि अभी तक भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है.

केन्द्र की एनडीए सरकार और राज्य की महागठबंधन सरकार के बीच की रस्साकशी में अब तक इस केविवि के लिए भूमि अधिग्रहण का काम नहीं हो सका था. दोनों ही सरकारें केविवि को अपनी-अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही थी. जिला प्रशासन भी रोज नए-नए पेंच लगाकर इसे टालने की नीति पर काम कर रहा था. कभी जमीन की मिल्कीयत पर सवाल उठाया जा रहा था, तो कभी चीनी मिल की भूमि को अधिग्रहित करने का विवाद सामने आ रहा था. इन्हीं सब को लेकर पूरी प्रक्रिया ठन्डे बस्ते में पड़ी थी. इस मामले में प्रशासनिक इदासिनता का आलम ये है कि भूस्वामियों की कई शिकायतों के बाद भी भूमि मूल्यांकन की गलतियों को सुधारने की कोशिश नहीं की गई. हालांकि अब स्थितियां बदल गई हैं. महागठबंधन के टूटने और जदयू और भाजपा के पुर्नमिलन के बाद पूरी पृष्ठभूमि ही उलट गई है. अब इस मामले में केन्द्र और राज्य सरकारें प्रतिद्वन्द्विता की जगह सहयोग की बात कर रही हैं. दो माह पूर्व जिला पदाधिकारी अनुपम कुमार की जगह नए जिलाधिकारी रमण कुमार ने पदभार ग्रहण किया. डीएम श्री कुमार ने आते ही भूअधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी कर प्रस्तावित भूमि को केविवि को हस्तांतरित करने की कवायद तेज कर दी. जिले के दो मंत्री भी अब इस मामले में सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं. मोतिहारी विधायक सह पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार को मधुबन विधायक सह सहकारिता मंत्री राणा रणधीर सिंह भूअधिग्रहण के कार्य को पूरा करने पर जोर दे रहे हैं. मुख्यमंत्री के निर्देश पर पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार 8 अक्टूबर को प्रस्तावित भूमि का निरीक्षण करने चन्द्रहिया पंचायत के बनकट, फुरसतपुर और बैरिया गांव पहुंचे. इनके साथ जिलाधिकारी रमण कुमार, अपर समाहर्ता अरसद अली, भूअर्जन पदाधिकारी अमरकान्त और महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वुविद्यालय के कुलपति डॉ. अरविन्द अग्रवाल भी उपस्थित थे. मंत्री प्रमोद कुमार ने कहा कि केविवि के लिए प्रस्तावित पूरी जमीन यानि 301 एकड का अधिग्रहण जल्द-से-जल्द पूरा किया जाएगा, ताकि केविवि का निर्माण योजनाबद्ध तरीके से हो सके. गौरतलब है कि इसके पूर्व आनन-फानन में केवल 36 एकड भूमि देने की बात सामने आ रही थी.

निरीक्षण के क्रम में एक बड़ी अनियमितता सामने आई. भूमि अधिग्रहण वाले गांव फुरसतपुर की दूरी शहर की सीमा से मात्र 2.5 किमी है. लेकिन इसे पेरिफेरल एरिया में नहीं लाया गया है, जबकि शहर की सीमा से 4 किमी की दूरी तक स्थित क्षेत्र पेरिफेरल एरिया होता है. यह अनियमितता भी सामने आई है कि विगत तीन वर्षो से केवल बनकट गांव का ही एमपीआर (निबंधन हेतु भूमि का सरकारी मूल्यांकन) हो रहा है, जबकि एमपीआर में फुरसतपुर को छोड़ दिया गया है. इसके कारण एक ही पंचायत के इन दोनों गांवों की भूमि के दर में दस गुना से ज्यादा का अंतर देखने को मिल रहा है. एक गांव की भमि का मूल्यांकन 4 लाख प्रति डिस्मील के दर से किया गया है, तो दूसरे गांव की भूमि का मूल्यांकन 44 हजार. एक विवाद मोतिहारी चीनी मिल की मिल्कियत वाले बैरिया गांव के लगभग 100 एकड़ जमीन को लेकर भी है. ग्रामीणों ने बताया कि भूमाफियाओं के दबाव में और इनकी मिलीभगत से ऐसा किया गया है. जमीन का रेट कम कराकर भूमाफिया इसे औने-पौने भाव में खरीदना चाहते थे. इस मामले को जिलाधिकारी से लेकर निबंधन विभाग पटना तक शिकायत की गई है, लेकिन इस पर कोई कार्यवाई अब तक नहीं हुई है. तत्कालीन जिलाधिकारी ने माना भी था कि विभाग से बड़ी चूक हुई है, लेकिन इसके सुधार के लिए कुछ भी नहीं किया गया. निरीक्षण के दौरान मंत्री के समक्ष भूस्वामी अनिल पाण्डेय सहित कई लोगों ने स्पष्ट कहा कि जमीन का पुर्नमूल्यांकन किया जाय. ग्रामीणों ने कहा कि जबतक इसे पेरिफेरल मानते हुए एमवीआर का पुनरीक्षण नहीं होता, हमलोग भूमि की राशि स्वीकार नहीं करेंगे. मंत्री प्रमोद कुमार ने डीएम से कहा कि किसानों की मांग जायज है और इस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर रास्ता निकाला जाय.

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