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जारवा (Jarawa) जनजाति मानव सभ्यता की सबसे पुरानी जनजातियों में से एक है जो पिछले कई वर्षो से भारत के केंद्रशासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर रह रही है. ये जनजाति बाहरी दुनिया से अभी भी दूर है और अभी भी पाषाण युग में जी रही है.  इस सभ्यता में हमारे पूर्वजो की छवि देखने और DNA आदि के जानने के उद्देश्य से अनेको पर्यटक अंडमान में आने के बाद जारवा इलाके से जरुर गुजरते हैं और इन्हें देखने का अलग ही रोमांच है.

बाहरी व्यक्ति को देखते ही मार दिया जाता है

वर्तमान समय में इनकी संख्या 240 से लेकर 400 तक अनुमानित है जो कि अत्यन्त कम है. जारवा लोगों की त्वचा का रंग एकदम काला होता है और कद छोटा होता है. करीब १९९० तक जारवा जनजाति किसी की नज़रों में नहीं आई थी और एक अलग तरह का जीवन जी रही है. अगर कोई बाहरी आदमी इनके दायरे में प्रवेश करता है, तो ये लोग उसे देखते ही मार देते हैं.

अपने ही बच्चे को मार देते हैं समुदाय के लोग

रिपोर्ट्स के मुताबिक, अफ्रीका मूल के करीब 50 हजार साल पुराने जारवा समुदाय के लोगों का वर्ण बेहद काला होता है. इस समुदाय में परंपरा के अनुसार यदि बच्चे की मां विधवा हो जाए या उसका पिता किसी दूसरे समुदाय का हो तो बच्चे को मार दिया जाता है. ऐसे में बच्चे का वर्ण थोड़ा भी गोरा हो तो कोई भी शख्स उसके पिता को दूसरे समुदाय का मानकर उसकी हत्या कर देता है और समुदाय में इसके लिये कोई सजा भी नहीं है. इस समुदाय के बारे में जानकारी रखने वाले डॉ. रतन चंद्राकर ने लिखा है कि जारवा जनजाति में नवजात को समुदाय से जुड़ी सभी महिलाएं स्तनपान कराती हैं. इसके पीछे जनजाति की मान्यता है कि इससे समुदाय की शुद्धता और पवित्रता बनी रहती है.

कुछ दिन पहले एक अमरिकी नागरिक को मारा है

पुलिस का कहना है कि 27 साल के अमेरिकी नागरिक जॉन चाउ स्थानीय मछुआरों के साथ वहां पहुंचे थे. लेकिन वहां के आदिवासियों ने तीर मार कर उसकी हत्या कर दी. नॉर्थ सेंटीनल नाम के इस द्वीप पर जाना भारत सरकार के आदेशानुसार बैन है. कोस्ट गार्ड समय-समय पर लोगों को यहां न जाने की वॉर्निंग देते रहते हैं लेकिन चाउ इस चेतावनी को नज़र अंदाज कर वहां गए.

 

 

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