राज्य गठन के बाद पहली बार भाजपा बहुमत में आई और रघुवर दास मुख्यमंत्री बने. इस पद पर अपने को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा के छह विधायकों को तोड़ कर भाजपा में मिला लिया. एक हजार दिन पूरे होने पर मुख्यमंत्री ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से पांच वर्षों तक शासन करने का आर्शीवाद भी ले लिया. एक हजार दिन की अपनी उपलब्धियां बताते हुए रघुवर दास ने कहा कि जब उन्होंने संभाली, उस समय राज्य आर्थिक और सामाजिक दोनों ही क्षेत्रों में पिछड़ा हुआ था. हमने सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व काम किया है.

दावों से दूर है वास्तविकता

ऐसा लगता है कि अपने एक हजार दिनों की उपलब्धियां गिनाते हुए मुख्यमंत्री पूरी तरह से जमीनी हकीकत से बेखबर हैं. प्रदेश में 67 प्रतिशत लड़कियां एवं महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं, पर स्वस्थ झारखंड का दावा किया जा रहा है. एक माह में लगभग तीन सौ बच्चों की मौत कुपोषण से हो गई. अभी भी राज्य में निरक्षरों की संख्या लगभग चालीस प्रतिशत है. आधी से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रही है, लेकिन पूरे राज्य से गरीबी दूर करने की बात की जा रही है. बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. लोग पेयजल, बिजली, मकान, शौचालय, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सड़क की समस्याओं से जूझ रहे हैं, लेकिन उन्हें विकसित झारखंड का हसीन सपना दिखाया जा रहा है.

3 लाख 10 हजार करोड़ के औधोगिक निवेश का दावा तो किया जा रहा है, लेकिन एक भी बड़ा उद्योग झारखंड में अभी तक स्थापित नहीं हो सका. सरकार ने केवल छोटे-छोटे उद्यमियों से निवेश कराकर वाहवाही लूटने का काम किया है. मुख्यमंत्री ने लाखों लोगों को नौकरी देने की बात कही, लेकिन किसे कहां नियुक्त किया गया, किसी को पता नहीं. उन्होंने यह भी दावा किया कि राज्य के किसानों की आय दोगुनी हो गई है, लेकिन एक माह के अंदर कर्ज में फंसे आधा दर्जन किसानों ने आत्महत्या कर ली.

किसानों के कल्याण के लिए दर्जनों योजना शुरू की गईं, लेकिन सभी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं. उच्च न्यायालय की फटकार के बाद भी राज्य की एक प्रमुख सड़क रांची-टाटा हाइवे का काम पूरा नहीं हो सका है. वहीं राज्य की लगभग एक सौ से भी ज्यादा स्वीकृत ग्रामीण सड़कों का निर्माण कार्य अधर में है. हाल के बरसात में प्रदेश के 100 से ज्यादा पुल-पुलिया क्षतिग्रस्त हो गए, जबकि इनका निर्माण दो-तीन वर्ष पूर्व ही हुआ था. मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की थी कि 2018 तक अगर सभी गांवों में बिजली नहीं दे सका, तो अगले चुनाव में वोट मांगने नहीं आऊंगा, साथ ही उन्होंने जीरों पावर कट की भी बात कही थी. लेकिन हकीकत ये है कि राजधानी में ही घंटो तक पावर कट होता रहता है, गांवों की बात तो दूर है. ग्रामीण इलाकों में तो बिजली अभी भी एक सपना ही है.

मुख्यमंत्री का ये दावा भी हकीकत से दूर है कि सभी पंचायतों में स्वच्छ पेयजल पहुंचाया जा चुका है. एक बड़ी आबादी अब भी मीलों दूर से पानी का पानी ढो कर लाती है. स्वच्छ भारत अभियान के तहत पूरे राज्य को खुले में शौच से मुक्त करने का दावा तो हकीकत से पूर्णत: विपरीत है. अव्वल तो ज्यादातर शौचालयों का निर्माण कागजों में ही हुआ, लेकिन जो बने वे भी निर्माण के कुछ देर समय बाद ही टूट गए. एक तरह से कहा जा सकता है कि सारी उपलब्धियां कागजों तक ही सिमट कर रह गई हैं. मुख्यमंत्री रघुवर दास भ्रष्टाचार के मामले में जीरों टालरेंस की बात करते हैं, लेकिन यहां भ्रष्टाचार चरम पर है. विकास के नाम पर धड़ल्ले से लूट-खसोट और पैसों का बंदरबांट जारी है.

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