आईपीयू के आंकड़ों के लिहाज़ से सबसे फिसड्‌डी देशों की संख्या भी अच्छी-खासी है. पूरे विश्व के संसदों में महिलाओं की 10 फीसद से कम भागीदारी वाले देशों की संख्या 31 है. ऐसा नहीं है कि इस सूची में केवल विकासशील देश, तानाशाही या राजशाही व्यवस्था वाले ही देश शामिल हैं. इसमें जहां जापान जैसा विकसित देश शामिल है, वहीं क़तर, यमन, कुवैत, बहरीन जैसे तानाशाही और राजशाही व्यवस्था वाले देश भी शामिल हैं. इस सूची में ईरान, श्रीलंका, नाइजीरिया, थाईलैंड जैसे विकासशील लोकतान्त्रिक देश भी शामिल हैं. ज़ाहिर है इन देशों में महिलाओं के लिए संसद में आरक्षण का प्रावधान नहीं है. लेकिन आईपीयू की सूची में सबसे गौर करने योग्य बात यह है कि इसमें कोई पैटर्न या नमूना तलाश नहीं किया जा सकता है. यह नहीं कहा जा सकता है कि विकासशील देशों में महिलाएं पिछड़ी हुई हैं, इसलिए उन्हें सत्ता में भागीदारी नहीं मिलती. जब जापान जैसे विकसित देश, जहां महिलाओं की सामाजिक हैसियत ऊंची है, वहां भी संसद में महिलाओं की भागीदारी नाममात्र है तो यह चिंता की बात है. जो देश आरक्षण के विरोध में दलीलें देते हैं, उन्हें अपनी दलीलों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.

भारत, विश्व और पड़ोसी देश

आईपीयू की रैंकिंग के मुताबिक, भारत महिलाओं की संसद में भागीदारी के मामले में 149 वें स्थान पर है. भारतीय लोकसभा में कुल 542 सदस्यों में महिला सांसदों की संख्या 64 है. ज़ाहिर है, भारत जैसे देश के लिए, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त हो, यह आंकड़ा बहुत उत्साहजनक नहीं है. जैसा कि पहले ज़िक्र किया जा चुका है, दुनिया का सबसे ताक़तवर लोकतंत्र अमेरिका की रैंकिंग भी 100 के नीचे है. अमेरिका खुद को मानवाधिकार, लैंगिक समानता और सबसे बढ़कर लोकतंत्र का प्रहरी मानता है. अमेरिका ने दुनिया में खास तौर पर मध्यपूर्व एशिया में लोकतंत्र की बहाली का ज़िम्मा खुद अपने कन्धों पर उठा रखा है. अब ऐसे देश में ही जब महिलाओं की कांग्रेस में भागीदारी केवल 19 फीसद हो, तो इसे विडम्बना नहीं तो और क्या कहा जाए!

जहां तक भारत का अपने पड़ोसियों से मुकाबले का सवाल है, तो संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में यह श्रीलंका, भूटान और मालदीव से आगे है. दूसरे पड़ोसी देश भारत से बहुत आगे हैं. इस मामले में भारत एशियाई देशों में 13वें स्थान पर है, जबकि सार्क देशों में 5वें स्थान पर. अ़फग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश जैसे देश भारत से काफी ऊपर हैं. इसका एकमात्र कारण यह है कि इन देशों की संसद में महिलाओं के लिए सीटें अरिक्षित हैं. गौरतलब है कि नेपाल की संसद में 30 फीसद महिलाएं चुनी गई हैं, अफगानिस्तान में 27.7 फीसद, पाकिस्तान में 20.3 फीसद जबकि बांग्लादेश में 20.3 फीसद महिलाएं चुनी गई हैं. ज़ाहिर है इस पिछड़ेपन का मुख्य कारण पुरुष प्रधान समाज की मान्यताएं हैं, जिसमें यह मान लिया जाता है कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले में कमज़ोर हैं. बहरहाल, भारत के पड़ोसी देशों के आंकड़े भले ही उत्साहजनक हों, लेकिन वहां भी आरक्षण का लाभ समृद्ध वर्ग की महिलाओं को मिल रहा है, जो पहले से ही अधिकार सम्पन्न हैं.

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