prisonersनेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की विभिन्न जेलों में अल्पसंख्यक यानी मुस्लिम एवं ईसाई कैदियों की संख्या में गिरावट आई है. बीते 29 अक्टूबर को प्रिजन स्टैटिक्स इंडिया रिपोर्ट-2013 शीर्षक से जारी अपनी इस रिपोर्ट में एनसीआरबी ने बताया है कि 31 दिसंबर, 2013 तक देश की कुल 1391 जेलों में 4 लाख 11 हज़ार 992 लोग कैद थे, जबकि उनकी क्षमता मात्र 3 लाख 47 हज़ार 859 बंदियों की है. कुल बंदियों में विचाराधीन 67.6 प्रतिशत, सजायाफ्ता 31.5 प्रतिशत एवं सिविल मामलों में हिरासत में लिए गए 0.9 प्रतिशत थे.
विशेष बात यह कि 2013 में बंदियों की कुल संख्या में मुसलमान 19.7 प्रतिशत थे, जबकि 2009 में वे 30 प्रतिशत थे. ग़ौरतलब है कि 29 अक्टूबर, 2006 को अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार सीमा चिश्ती की एक विशेष रिपोर्ट में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अप्रकाशित भाग के हवाले से बताया गया था कि महाराष्ट्र (10.6 प्रतिशत मुस्लिम आबादी) में मुस्लिम बंदी 32.4 प्रतिशत, गुजरात (मुस्लिम आबादी 9.06 प्रतिशत) में मुस्लिम बंदी 25 प्रतिशत से अधिक, असम (मुस्लिम आबादी 30.9 प्रतिशत) में मुस्लिम बंदी 28.1 प्रतिशत एवं कर्नाटक (मुस्लिम आबादी 12.23 प्रतिशत) में मुस्लिम बंदी 17.5 प्रतिशत थे. उस समय देश की विभिन्न जेलों में बंदियों की कुल संख्या एक लाख दो हज़ार 652 थी. मतलब यह है कि 2006 और 2009 की तुलना में 2013 में मुस्लिम बंदियों की संख्या 10 प्रतिशत से अधिक घटी है. एनसीआरबी की इस रिपोर्ट के अनुसार, 31 दिसंबर, 2013 को देश में हिरासत में लिए गए लोगों की संख्या 3113 थी, जिनमें 613 (19.7 प्रतिशत) मुसलमान थे, जबकि 2009 में हिरासत में लिए गए कुल लोगों में 676 (30.3 प्रतिशत) मुसलमान थे.

अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार सीमा चिश्ती की एक विशेष रिपोर्ट में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अप्रकाशित भाग के हवाले से बताया गया था कि महाराष्ट्र (10.6 प्रतिशत मुस्लिम आबादी) में मुस्लिम बंदी 32.4 प्रतिशत, गुजरात (मुस्लिम आबादी 9.06 प्रतिशत) में मुस्लिम बंदी 25 प्रतिशत से अधिक, असम (मुस्लिम आबादी 30.9 प्रतिशत) में मुस्लिम बंदी 28.1 प्रतिशत एवं कर्नाटक (मुस्लिम आबादी 12.23 प्रतिशत) में मुस्लिम बंदी 17.5 प्रतिशत थे.

आइए देखते हैं कि 2009 से लेकर 2013 तक धार्मिक समूह के लिहाज से स्थिति क्या थी. 2009 में कुल 2232 लोग गिरफ्तार हुए, जिनमें हिंदू 1246 (55.80 प्रतिशत), मुस्लिम 676 (30.3 प्रतिशत) एवं ईसाई 281 (12.6 प्रतिशत) थे. इसी तरह 2010 में कुल 2325 लोग गिरफ्तार हुए, जिनमें हिंदू 1345 (57.84 प्रतिशत), मुस्लिम 717 (30.83 प्रतिशत) एवं ईसाई 243 (10.4 प्रतिशत) थे. 2011 में कुल 2450 लोग गिरफ्तार हुए, जिनमें हिंदू 1485 (60.6 प्रतिशत), मुस्लिम 650 (26.5 प्रतिशत) एवं ईसाई 254 (10.4 प्रतिशत) थे. 2012 में कुल 1922 लोग गिरफ्तार हुए, जिनमें हिंदू 1203 (62.6 प्रतिशत), मुस्लिम 543 (28.2 प्रतिशत) एवं ईसाई 116 (06 प्रतिशत) थे. 2013 में कुल 3113 लोग गिरफ्तार हुए, जिनमें हिंदू 2144 (68.9 प्रतिशत), मुस्लिम 613 (19.7 प्रतिशत) एवं ईसाई 248 (7.9 प्रतिशत) थे.
यही स्थिति कमोबेश विचाराधीन एवं सजायाफ्ता कैदियों के मामले में है. वर्ष 2009 में देश की विभिन्न जेलों में विचाराधीन कैदियों की कुल संख्या 2 लाख 50 हज़ार 204 थी, जिनमें हिंदू एक लाख 73 हज़ार 732 (69.4 प्रतिशत) एवं मुस्लिम 56 हज़ार 229 (22.5 प्रतिशत) थे. जबकि 2013 में यह संख्या 2 लाख 78 हज़ार 503 थी, जिनमें हिंदू एक लाख 92 हज़ार 202 (69 प्रतिशत) एवं मुस्लिम 57 हज़ार 936 (21 प्रतिशत) थे. वर्ष 2009 में जेलों में सजायाफ्ता कैदियों की कुल संख्या एक लाख 23 हज़ार 941 थी, जिनमें हिंदू 90 हज़ार 57 (72.7 प्रतिशत) एवं मुस्लिम 22 हज़ार 946 (18.5 प्रतिशत) थे. वर्ष 2013 में सजायाफ्ता कैदियों की कुल संख्या एक लाख 29 हज़ार 608 थी, जिनमें हिंदू 93 हज़ार 273 (72 प्रतिशत) एवं मुस्लिम 22 हज़ार 145 (17.1 प्रतिशत) थे. यहां भी मुस्लिम 1.4 प्रतिशत कम हो गए यानी 2009 में 22,946 की तुलना में कम होकर वे 2013 में 22,145 पर आ गए.
ईसाई, जो देश की कुल आबादी में 2.3 प्रतिशत हैं, हिरासत में लिए गए लोगों में उनकी संख्या 2009 में 12.6 प्रतिशत थी, जबकि 2013 में यह आंकड़ा 7.9 प्रतिशत आ पहुंचा. ग़ौरतलब है कि हिरासत में लिए गए लोगों में हिंदुओं की संख्या में इजाफा हुआ है. 2009 में यह संख्या 55.8 प्रतिशत थी, जबकि 2013 में 68.9 हो गई. वहीं विचाराधीन एवं सजायाफ्ता कैदियों के मामले में उनकी संख्या में कमी आई है. 2009 में यह संख्या 69.4 प्रतिशत थी, जो 2013 में घटकर 69 प्रतिशत हो गई.
इन तमाम बातों से निष्कर्ष यह निकलता है कि अल्पसंख्यकों यानी मुस्लिम एवं ईसाई कैदियों की संख्या, चाहे वह हिरासत का मामला हो, विचाराधीन का हो एवं फिर सजायाफ्ता यानी तीनों ही मामलों में घटी है. हिंदुओं की संख्या भी विचाराधीन एवं सजायाफ्ता मामले में घटी है, जबकि हिरासत में लिए गए लोगों में इनकी संख्या बढ़ी है. हिरासत में लिए गए लोगों में हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों एवं ईसाइयों की संख्या में 2009 या उससे पहले बढ़ोत्तरी की वजह 2001 में 9/11 के हमले के बाद बने पोटा कानून के तहत हुई अंधाधुंध गिरफ्तारियां हैं. जब अदालत को ऐसे लोगों के खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिले, तो उन्हें रिहा कर दिया गया. नतीजा यह हुआ कि हिरासत में लिए गए लोगों की संख्या घटती चली गई.
इस स्थिति में ऐसा महसूस होता है कि अदालत की निष्पक्ष भूमिका के कारण जेलों में अल्पसंख्यकों की संख्या कम होती जा रही है. उम्मीद है कि कमी का यह रुझान और बढ़ेगा, जो अल्पसंख्यकों के लिए निश्‍चय ही एक शुभ संकेत है. अगर वास्तव में ऐसा होता है, तो पहले टाडा और बाद में पोटा लागू होने के बाद ऐसे लोगों की संख्या में जो बढ़ोत्तरी हुई थी, उसमें निश्‍चय ही गिरावट आएगी. टाडा के तहत 55 हज़ार लोग गिरफ्तार किए गए थे, जिनमें 80 प्रतिशत मुसलमान थे. बहरहाल, देश की न्यायपालिका बधाई की पात्र है, जिसके कारण जेलों में अल्पसंख्यकों की संख्या घट रही है. यह स्थिति न्यायपालिका में उनके विश्‍वास को बढ़ाने वाली है.

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