डॉ सुरेश खैरनार,नागपुर

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय कश्मीर के कॉंग्रेस नेता सैफुद्दीन सोझ के बन्दी बनानेकी याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सिर्फ सरकार की बात सुन कर निर्णय दे दिया की सोझ बंदी नहीं है ! और इन्डियन एक्सप्रेस में वो अपने ही घर के दीवारों के पीछे से पत्रकारो से संबोधित करते हुए उनके घर पर तैनाती सुरक्षा बलों के जवानो ने उन्हे पत्रकारों से बात करने की मनाही की और उसके बावजूद वाए बोलते रहे तो उन्हे जबरदस्ती घरके अंदर घसीट कर ले गए ! यह वीडियो और फोटो के साथ उनकी खबर है ! यह गलत निर्णय लेने से हमारे देश के न्याय व्यवस्था की ईज्जत का क्या हुआ ? और इसकेलिए कौन जिम्मेदार है ?

प्रशांत भूषण के ऊपर आपने खुद सू मोटो नोटिस द्वारा अवमानना का मामला ठोक दिया है ! लेकिन लोगोंके जिवन-मरण के शेकडो केसेस आपके कोर्टो मे पडे हुए हैं लेकिन आपको उसके लिए समय नहीं है लेकिन दो मामूली सोशल मीडिया की टिप्पणी योको लेकर आप खुद सज्ञान लेते हो ? अगर सचमुच आप साभि माननीय न्यायाधीशोंको आपके और हमारे देश के न्याय व्यवस्था की इज्जत की इतनी चिंता होती तो एक करोड कश्मीरीयोके 370 हटाने के मामले को और वहाके नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा उसका सज्ञान लेनेके लिए हमारे सम्मानित सर्वोच्च न्यायालय के पास समय नहीं है ?
वैसाही नागरिकता बिल से संबंधित याचिकाओं को भी उतनाही समय हो रहा है लेकिन आपके पास सुनवाई के लिए समय नहीं है ! लेकिन नौ साल पुराने तहलका के इंटरव्यू के वाले प्रशांत भूषण को खोज कर निकालने के लिए समय है और है भी तो उसमे का मुख्य आरोप सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशोके भ्रष्टाचार से संबंधित है तो वह सच है या झूठ इसका फैसला करने की जगह आप लोग माफी मांगवा कर उसे रफा दफा करना चाहते हो ? और न्याय व्यवस्था के इज्जत की बात कर रहे हो ? अगर प्रशांत भूषण के आरोप बेबुनियाद है तो उन्हे अवश्य सजा देनी चाहिए लेकिन बार बार उनके ऊपर दबाव डालकर माफी की रट लगाना कहातक ठीक है ? इससे न्याय व्यवस्था की कितनी छीछलेदारि हो रही है यह आप लोगोको नही दिखता है ? ऑन लाइन सुनवाई करते हुए बिचमेही ऑडियो बंद करना और सामनेवाले वकील को उसकी पूर्व सूचना दिए बगैर ! आप लोगों को अपनी न्यायालय की प्रक्रिया और परम्परा का भी ख्याल नहीं है ?
नवंबर मे रिटायर होने वाले तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री रन्जन गोगोई अपनेही उपर किये गये महिला उत्पीडन के आरोपों की सुनवाई खुदही करते हैं और सजा वह भी अलिखित ! और उनके रिटायर होने के तुरंत बाद ही उस महिला को तुरंत बहाल करने वाले नये मुख्य न्यायाधीश महोदय ने एक शब्द से भी नहीं कहा की पूर्व मुख्य न्यायाधीश महोदय ने गलती की थी और इसिलिए मै इस महिला कर्मचारी को ससम्मान वापस ले रहा हूँ ! क्य सर्वोच्च न्यायालय को आप लोगोने इस तरह के व्यहार करके बहुत सम्मान प्रदान कर दिया है ?

बाबरी मस्जिद-राम मंदिर के मामले मे एक तरफ कह रहे हो की पुरातत्व विभाग के ऐसे कोई सबूत नहीं है कि वही पर रामलला पैदा हुए थे और उनका कोई मंदिर था कि जिसे तोडकर मस्जिद बनाई गई है और मस्जिद को 6 दिसंबर 1992के दिन ध्वस्त करने की कृती गैर कानूनी थी और उसकी केस अभिभी इलाहबाद के कोर्ट मे चल रही है ! और आप मंदिर बनाने का निर्णय किस आधार पर ले लिया ? यह भारतीय संविधान पर से लोगों का विश्वास कम करने की बात नहीं है ? और आप प्रशांत भूषण के ऊपर न्याय व्यवस्था पर से लोगों का विश्वास डोलनेकी बात कर रहे हैं ?
सैफद्दींन सोझ,बाबरी मस्जिद-राम मंदिर,सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश महोदय ने एक महिला कर्मचारी के साथ अभद्रताका मामला,रफा दफा कर के आप लोग हमारी न्याय व्यवस्था पर से लोगों का विश्वास खत्म करने मे शामिल हो और क्यौ नहीं हमारी न्याय व्यवस्था की गारिमा बनाने के लिए यह जो गलत निर्णय लेने की अलग स्वतंत्र पीठ बनाकर इन निर्णयों पर पुनर्विचार करना चाहिए ?

कितने लोगों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास डोलने के लिए यह निर्णय निमित्त हो सकता है ? सामान्य आदमी आपसी झगडे होते हैं तब अंतमे यही कहता है कि हम कोर्ट में जायेंगे ! लेकिन आपका यह निर्णय लोगोका न्याय व्यवस्था पर से विश्वास कम करने के लिए पर्याप्त है ! मंदिर निर्माण का निर्णय में भी हमारे संविधान की अनदेखी करते हुए वर्तमान सरकार और कुछ हिन्दुत्ववादी तत्वों की मर्जी रखने के लिए मंदिर निर्माण का निर्णय दिया गया जो सर्वस्वी गलत है !
वही बात जम्मू कश्मीर के 370 आर्टिकल को खत्म करने की और एक राज्य सरकार को केंद्र शाषित बना देना के निर्णय को लेकर कमसे कम 70 से ज्यादा याचिकाओ पर अब एक साल पूरा होकर तिन हप्ते से ज्यादा समय हो रहा है ! लेकिन कोई सुनवाई नहीं की जा रही है ! कैसे कश्मीर के लोग देश की मुख्य धारा में शामिल हो सकते ? उन्हे तो एक कोढ़ी के जैसा अलग-थलग वह भी संचार के साधन,ठप्प करके ! कोरोना के कारण स्कूल बंद कर दिये और ऑन लाइन एजुकेशन की बात चल रही है तो क्या कश्मीर के बच्चे उससे वंचित रहेंगे ? और मुख्य धारा में शामिल हो सकते?
भारत के संविधान को बदलकर एन आर सी जैसे इतने गंभीर मुद्दे पर भी काफी याचिकाए प्रलंबित है ! और उसको लेकर चल रहे आंदोलन के शेकडो लोगोको तथकथित देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है ! जिस कानून का मामला आपके सामने पडा हो और उसिको बचानेकी कोशिश आप जाने अनजानमे कर रहे हैं !

जहातक मेरी समझ है की न्यायालय सर्वोच्च होता है तो कुछ दिनों से मैं देख रहा हूँ की न्यायालय सरकार की मर्जी रखने के लिए निर्णय दे रही है ! इसमे हमारे संविधान की अनदेखी करके निर्णय लेने या ना लेने की बात देख रहा हूँ जिसका उदहारण 370, आयोध्या के राममंदिर निर्माण का निर्णय और नागरिकताके कानून के खिलाफ चल रहे मुद्दे पर आपका चुप रहने की बात किस बात का परिचायक है ?

कश्मीर के बारे में तो लगता है की जैसा कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन चुका है ऐसा सरकार दावा करती है लेकिन आपका 370 पर एक साल पूरा होने आ रहा है लेकिन सुनवाई तक नहीं करना यह बात वहाकी हालतों देखकर निर्णय लेने की बात आप कर रहे हैं और सरकार कह रही है की हालत सामान्य है तो कोर्ट को 370 को लेकर जो भी याचिकाए साल भर से आपके सामने पेश है उनपर कोई भी सुनवाई क्यो नही हो रही ?

सैफुद्दीन सोझ के ताजा केस को देखकर लगता नहीं कि आप अपने निर्णय स्वतंत्र रूप से ले रहे हो ! और सचमुच कोर्ट वर्तमान सरकार के दबाव में काम कर रहा है तो बहुत ही चिंता की बात है !

वर्तमान भारत के गृहमंत्री और प्रधान-मंत्री का ट्रेक रेकार्ड देखकर लगता नहीं कि उन्हे हमारी संविधानीक संस्थाओ के प्रती कोई सम्मान हैं ? क्यो कि यही प्रधान-मंत्री गुजरात के मुख्यमंत्री बनते हुए उन्होंने शपथ ली थी कि मैं नरेंद दामोदर दास मोदी इश्वर को साक्षी मानकर यह शपथ लेता हूँ कि मैं आज गुजरातके मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए यह आशव्स्थ करता हूँ कि गुजरातमे रहनेवाले हर नागरिक के साथ बगैर कोई भेदभाव किये मै कार्य करूंगा ! और 150 दिन के भीतर 27 फरवरी 2002 को गोधरा की साबरमती एक्सप्रेस की रेल्वे दुर्घटना में मारे गए 58 लोगों के शवोकी गोधरा के कलेक्टर ने कानून व्यवस्था की स्थिति को देखकर मना करने के बावजूद विश्व हिंदू परिषद के लोगोंको अहमदाबाद शहर में जुलूस निकालने के लिए जबरदस्ती देनेका काम मुख्यमंत्री ने किया है ! और 28 फरवरी की शाम अहमदाबाद एयरपोर्ट पर 3000 भारतीय सेना के जवान गुजरातमे लॉ एंड आर्डर कायम करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा भेजे गये थे और मुख्यमंत्री ने तीन दिन तक उन्हे एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकलने नहीं दिया ! इससे गुजरात दंगों को अंजाम देकर अपनी राजनीतक जगह मजबूत करने के लिए जान बुझकर गुजरातमे दंगे रोकने की जगह दंगोकी आग पर अपनी राजनैतिक (अनैतिक) रोटिया सेकने वाले उस समय के मुख्यमंत्री जो आज देश के सर्वोच्च पद प्रधान-मंत्री पद पर बैठे हैं और अगर हमारा सर्वोच्च न्यायालय उनके इशरोपर काम करने लगा और वह सर्वोच्च न्यायालय अब अपनी प्रतिष्ठा की बात सुन कर हैरानी होती है ! क्योकी चार जजोकी एतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस उसका सबसे बड़ा प्रमाण है ! किस तरह से हमारे ऊपर दबाव है यह उन्होनें कहा था और उस समय वर्तमान राज्य सभा के मनोनीत सद्स्य और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई भी उपस्थित थे और उन्होनें कोई अलग बात करनेकी मुझे कोई जानकारी नहीं है !

मुख्य धारा के मीडिया के दर्जनो स्वाभिमानी पत्रकारोंने खुले आम कहा कि थोडी-सी भी सरकार की आलोचना की बात सुन कर तुरंत पी एम ऑफिस से फोन आ जाता है !
हमारे देश के जनतांत्रिक व्यव्स्था के चार खम्बो मे से दो प्रमुख खंबे मिडिया और न्यायपालिका अगर इस तरह सरकार के दबाव मे काम करने लगे तो आप लोगोसे सम्मान की उम्मिद करना बडा ही अजीबोगरीब फैसला लगता है !
सम्मान जोर जबरदस्ती के मांगने से नहीं मिलता है वह तो अपने खुद के निस्पक्ष,निस्पृह व्यव्हार से मिलता है ! जिसकी ताजी मिसाल महाराष्ट्र के औरंगाबाद के हाय कोर्ट का तब्लिगी जमात को लेकर जो फैसला सुनाया उससे अपने आप कोर्ट के प्रती सम्मान बढ गया है ! क्योंकि जिस तरह से दिल्ली पुलिस ने जान बुझकर उस मामलें को तूल दिया था उससे साफ दिखाई दे रहा था कि इस मामले पर राजनीति की जा रही है !

यह बात उस सेना का नेतृत्व करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल झमिरुद्दींन शाह ने अपनी सरकारी मुसलमान नामकी किताब के पन्ना नम्बर 116,117 पर विस्तारसे लिखी है और उनके कुछ यूँटूब के इंटरवू में भी उप्लब्ध हैं ! यह बात कितनी संगिन है की एक मुख्यमंत्री पद पर आसीन होते हुए यह शपथ लेते हैं कि मैं भारत के संविधान के अनुसार काम करते हुए गुजरातमे रहनेवाले हर नागरिक की जान माल की रक्षा करूंगा और कितने लोग मारे गए कितना माल जलाया गया है और मुख्यमंत्री ने अपने अधिकार का कौनसा प्रयोग किया ? यह पूर्व न्यायाधीश कृष्णा अय्यर,पी बी सावंत,सुरेश होस्बेट और अन्य लोगों की क्राईम अगेन्स्ट हुमानीटी नामकी रिपोर्ट के अनुसार मैंने खुद उस रिपोर्ट को देखकर लगता नहीं कि वर्तमान प्रधानमंत्रीजीने गुजरातके अपने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए शपथ का पालन किया हो !
इसलिए वर्तमान सर्वोच्च न्यायालय के आप सभी न्यायधीश महाशयो को मेरा विनम्र निवेदन है कि आप अपने निर्णय सरकारी वकीलो की दलिलो के आधार पर ना देते हुए सब बातों की जाच खोज लेनेके बाद ही निर्णय ले ! अन्यथा सैफद्दींन सोझ जिकी केसमे सरकारी वकील की बात सुन कर दिया हुआ निर्णय झूठा साबित होनेकी नौबत नहीं आती !
और इसलिये मुझे नहीं मालूम कि हमारे देश के कानून में इस धंग्से न्यायालय को गलत जानकारी देने वाले सरकारी वकील की सनद रद्द करने की मांग कर रहा हूँ !
मुझे नहीं मालूम है कि मैं हमारे न्यायालय की अवमानना कर रहा हूँ ! लेकिन मेरा उद्देश्य हमारे न्याय व्यवस्था पर से लोगों का विश्वास ना उठे इसीलिए मैंने यह सवाल उठाये हैं !

आपका

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