साल 2020 दुनिया के लिए कई तरह की खबरें लेकर आया लेकिन सबसे बड़ी खबर बनी कोरोना वायरस की खबर. जिसने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी लेकिन अभी यह सिर्फ साल के शुरुआती 3 महीने की बात है, अभी एक और खबर पर पूरी दुनिया की नजर है जो इस साल पूरे विश्व के लिए अहमियत रखती है वो है अमेरिका में होने वाला राष्ट्रपति चुनाव.
दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका और उस पर राज करने वाला व्यक्ति सबसे ताकतवर माना जाता है. ऐसे में अमेरिका का राष्ट्रपति कौन बनता है दुनिया इस पर कड़ी निगाह रखती है. वहां अभी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने वाली है और 3 नवंबर को अमेरिका की जनता अपने नए नेता के लिए मतदान डालेगी.
भारत की तरह ही अमेरिका भी एक लोकतांत्रिक देश है ऐसे में वोटिंग बहुत अहम है. लेकिन भारत से इतर वहां की प्रक्रिया थोड़ी कठिन और लंबी है. ऐसे में अमेरिका में चुनाव किस तरह होते हैं, वहां की प्रणाली क्या है और एक अमेरिकी व्यक्ति अपने राष्ट्रपति को किस तरह चुनता है यहां आसान भाषा में समझें.
कौन बन सकता है अमेरिका का राष्ट्रपति?
अमेरिकी संविधान के आर्टिकल 2 के सेक्शन 1 में वहां के राष्ट्रपति चुनाव की जानकारी विस्तृत रूप से दी गई है. इसमें तीन प्रमुख बातों का ध्यान दिया गया है जिसके तहत अमेरिकी चुनाव की नींव पड़ती है अगर कोई व्यक्ति अमेरिका का राष्ट्रपति बनना चाहता है तो तीन शर्तों को पूरा करना जरूरी है.

1. चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति पैदाइशी अमेरिकी होना चाहिए.
2. उसकी उम्र कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए.
3. चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति कम से कम 14 बरस तक अमेरिका में रहा होना चाहिए.

अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया
कैसे शुरू होती है चुनावी प्रक्रिया?
अमेरिका में दो पार्टी का सिस्टम है पहली रिपब्लिकन और दूसरी डेमोक्रेट्स. दोनों पार्टियों को अपनी-अपनी तरफ से किसी एक व्यक्ति को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना होता है जिसे जनता वोट देती है. लेकिन इस उम्मीदवार को चुनने से पहले भी एक लंबी प्रक्रिया है क्योंकि राष्ट्रपति तो हर कोई बनना चाहता है लेकिन कोई उम्मीदवार कैसे बनेगा इसका चयन भी जनता या पार्टी के समर्थक करते हैं.
प्राइमरी और कॉकसस
पार्टी का उम्मीदवार तय करने के लिए दो तरह से चुनाव किए जाते हैं पहला प्राइमरी और दूसरा कॉकसस. इसमें पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए खड़ा हो सकता है, उसे सिर्फ अपने समर्थकों का साथ चाहिए होता है.
– अगर प्राइमरी चुनाव के बात करें तो यह राज्य सरकारों के अंतर्गत कराए जाते हैं जोकि खुले और बंद रूप से भी कराए जा सकते हैं. यानी अगर राज्य सरकार चुनती है कि खुले रूप से चुनाव करेगी तो उसमें पार्टी के समर्थक के साथ-साथ आम जनता भी मतदान कर सकती है. वहीं अगर बंद रूप से मतदान होता है तो सिर्फ पार्टी से जुड़े समर्थक ही उम्मीदवार के लिए वोटिंग करते हैं.
– अब अगर बात कॉकसस सिस्टम की करें तो यह चुनाव पार्टी की तरफ से ही कराए जाते हैं इसमें पार्टी के समर्थक एक जगह इकट्ठे होते हैं और अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा करते हैं. राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए खड़े हो रहे व्यक्ति की बात सुनते हैं उसके बाद उसी सभा में हाथ खड़े कर एक उम्मीदवार को समर्थन दे दिया जाता है हालांकि ऐसा बहुत ही कम राज्यों में होता है.
(अमेरिकी चुनावी सिस्टम में एक पेच ये भी है कि वहां पर एक वोटर को चुनाव से पहले कुछ समय के लिए एक पार्टी के लिए रजिस्टर करना पड़ता है तभी वह इस तरह के प्राइमरी या कॉकसस चुनावों में हिस्सा ले सकता है)

क्या है प्राइमरी और कॉकसस का खेल?
रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स, दोनों पार्टियों की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के लिए एक संख्या की जरूरत होती है वह संख्या जो प्राइमरी और कॉकसस के चुनावों में जरूरी होती है. उदाहरण के तौर पर अगर एक पार्टी की तरफ से 10 लोग राष्ट्रपति पद की रेस में है तो उन्हें हर राज्य में होने वाले प्राइमरी या कॉकसस चुनाव में सबसे अधिक डेलिगेट्स का समर्थन हासिल करना होगा, अंत में इन्हीं डेलिगेट्स की संख्या के आधार पर नेशनल कन्वेंशन की ओर बढ़ा जाता है.
2020 में डेमोक्रेट्स के कुल डेलिगेट्स की संख्या 3979 है और जीतने के लिए 1991 की जरूरत है, जबकि रिपब्लिकन के कुल डेलिगेट्स की संख्या 2550 है और उम्मीदवार बनने के लिए 1276 की जरूरत है.
नेशनल कन्वेंशन और उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार
एक बार जब प्राइमरी इलेक्शन खत्म हो जाता है तो यह तस्वीर साफ हो जाती है कि दोनों पार्टियों की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन बनेगा. लेकिन इसका आधिकारिक ऐलान नेशनल कन्वेंशन में होता है, डेमोक्रेट्स का नेशनल कन्वेंशन हमेशा जुलाई में होता है और रिपब्लिकन पार्टी का अगस्त के महीने में.
यहां पर पार्टी की सर्वोच्च टीम उम्मीदवार का ऐलान करती है, फिर राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार अपने समर्थकों के सामने एक भाषण देते हुए उम्मीदवारी को स्वीकार करता है और इसके साथ अपनी मर्जी से चुने हुए उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का ऐलान करता है. और यहां से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की असली प्रक्रिया शुरू होती है जब पार्टी की ओर से चुना गया राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार पूरे देश में प्रचार करने के लिए निकलता है.
राष्ट्रपति चुनाव और इलेक्टर
अमेरिकी जनता हमेशा नवंबर के पहले सप्ताह में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान करती है लेकिन यह मतदान सीधे उम्मीदवार के लिए नहीं किया जाता है. अमेरिकी जनता सबसे पहले स्थानीय तौर पर एक इलेक्टर का चुनाव करती है यह अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का प्रतिनिधि होता है.
इसके समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है जिसमें कुल 538 सदस्य होते हैं जो अलग-अलग राज्यों से आते हैं. जनता सीधे तौर पर इन्हीं सदस्यों को चुनती है जो आगे जाकर राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं. जब अमेरिकी जनता एक बार अपने इलेक्टर को वोट दे देती है तो उसका राष्ट्रपति पद के चुनाव में कोई हाथ नहीं रहता है. सिर्फ यह इलेक्टर पर निर्भर करता है कि वह किसी राष्ट्रपति बनाना चाहता है.
राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 से अधिक इलेक्टर्स के समर्थन की जरूरत होती है. जिसके पास 270 से अधिक का आंकड़ा होता है वह व्यक्ति 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेता है.

किस राज्य के पास कितनी ताकत?
अमेरिका भी भारत की तरह कई राज्यों का एक देश है. हर राज्य के पास सीटों की अपनी एक ताकत है जो प्राइमरी और बाद में फाइनल चुनाव में अपना किरदार निभाती है. कुछ राज्य ऐसे हैं जो अकेले दम पर पूरा चुनाव ही बदल सकते हैं जैसे कि भारत में उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव के लिहाज से सबसे अहम राज्य है.
प्राइमरी चुनाव के हिसाब से अमेरिका में सबसे ताकतवर राज्य कैलिफोर्निया है जिसके पास 415 डेलीगेट्स है, इसके बाद टेक्सस 228 और फिर नॉर्थ कैरोलिना 110 के आंकड़े के साथ आता है.
हालांकि राष्ट्रपति चुनाव के लिए हिसाब थोड़ा अलग भी हो सकता है क्योंकि तब डेलिगेट्स नहीं इलेक्टर तवज्जो रखते हैं लेकिन उनकी संख्या भी राज्यों के साइज के आधार पर ही होती है ऐसे में किसी उम्मीदवार का राज्य राज्य जीत हासिल करना भी काफी अहम माना जाता है.
टीवी डिबेट बनाती हैं माहौल!
अमेरिकी चुनाव का एक सबसे बड़ा हिस्सा है टीवी डिबेट्स. चुनाव प्रचार के दौरान भले ही सभी उम्मीदवार अलग-अलग इलाके में जाकर रैलियां करते हो लेकिन टीवी डिबेट्स ही वह असली मुद्दा है जिनके आधार पर अधिकतर वोटर प्रभावित होते हैं. यह डिबेट्स भी दो तरह की होती हैं पहली प्राइमरी लेवल की डिबेट जो पार्टी के कैंडिडेट के बीच में होती है और दूसरी प्रेसिडेंशियल डिबेट जो दोनों पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के बीच में होती है.

यह सभी डिबेट्स किसी ना किसी अमेरिकी न्यूज़ चैनल के जरिए आयोजित की जाती हैं. हर डिबेट का एक अलग मुद्दा होता है जो कई चरणों तक चलता है. प्राइमरी चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार 1-1 मसले पर अपनी बात रखते हैं और जनता को लुभाने की कोशिश करते हैं. इसी तरह राष्ट्रपति चुनाव के डिबेट्स में दोनों पार्टी के उम्मीदवार अलग-अलग न्यूज़ चैनल पर जाकर डिबेट में हिस्सा लेते हैं.

2020 के चुनाव में किनपर होगी नज़र?
इस साल होने वाले अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया जारी है और हर किसी की नजर है डोनाल्ड ट्रंप पर, क्या कोई ट्रंप को इस चुनाव में टक्कर दे पाएगा. अभी तक प्राइमरी चुनाव चल रहे हैं ऐसे में यह तय नहीं हुआ है कि डेमोक्रेट्स की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन होगा लेकिन रेस जारी है.
इस बार दोनों ओर से कौन-कौन टॉप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की रेस में हैं, एक नजर डालते हैं-
डेमोक्रेट्स
1. जो बिडेन
2. बर्नी सैंडर्स
3. एलिजाबेथ वारेन
4. पीट बुटेगेग
रिपब्लिकन
1. डोनाल्ड ट्रंप
2. बिल वेल्ड
3. जो वाल्श
4. रॉकी दे ला फ्यूंते

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