cyber crimeआज हम एक दौर में प्रवेश कर चुके हैं, जहां मोबाइल और इंटरनेट के बिना एक क़दम भी चलना नामुमकिन हो गया है. संचार क्रांति ने दुनिया को एक गांव में बदल दिया है. आज भारत में बैठकर कोई छात्र दुनिया के किसी भी विश्वविद्यालय के क्लास रूम में वर्चुअली दाखिल हो सकता है. अब पैसे का लेनदेन भी आसान हो गया है. गूगल मैप के सहारे आप बिना रास्ता पूछे कहीं भी जा सकते हैं. भारत का कोई मरीज़ अमेरिकी डॉक्टर से सलाह ले सकता है. इन्टरनेट ने आम जीवन में बहुत सारी आसानियां पैदा कर दी हैं. लेकिन जैसे-जैसे इसका फैलाव बढ़ा है, वैसे-वैसे इसका डरावना चेहरा साइबर क्राइम के रूप में हमारे सामने आता जा रहा है.

साइबर क्राइम के बढ़ते हुए मामले

आज हम इन्टरनेट पर पुरी दुनिया को देख रहे हैं, लेकिन यह तस्वीर का केवल एक रुख है. जब हम इन्टरनेट सर्फ कर रहे होते हैं, तो इस बात की सम्भावना काफी प्रबल रहती है कि हम दूसरों की नज़रों में हों और कभी भी उनकी बदनीयती का शिकार हो जाएं. भारत सरकार की संस्था इंडिया कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (सर्ट-इन) की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले विर्ष जनवरी से जून तक भारत में साइबर क्राइम के कुल 27,482 मामले सामने आए, यानी उस दौरान भारत में हर दस मिनट में साइबर क्राइम का एक मामला दर्ज किया जा रहा था. गौरतलब है कि वर्ष 2016 में हर 12 मिनट में साइबर क्राइम का एक मामला दर्ज किया जा रहा था.

दरअसल साइबर क्राइम के मामलों में हर वर्ष इजाफा हो रहा है. सर्ट-इन के मुताबिक भारत में साढ़े तीन वर्ष में साइबर क्राइम के कुल 1.71 लाख मामले दर्ज किये गए थे. सर्ट-इन ने यह अनुमान ज़ाहिर किया था कि वर्ष 2017 में भारत में साइबर क्राइम के कुल 50,000 तक मामले दर्ज किये जा सकते हैं. साइबर क्राइम के मामलों में फिशिंग, स्कैनिंग या जांच, साइट में दखलंदाजी, डीफसमेंट, वायरस, रेनसैमवेयर और सर्विस देने से इंकार जैसे मामले शामिल हैं. जैसा कि आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में ऑनलाइन सर्फर्स  की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ रही है. ऐसे में एक ऐसी प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है कि जो साइबर क्राइम को पहचान कर उसकी रोक थाम कर सके.

साइबर पुलिस का गठन

मोदी सरकार भारत के हर नागरिक से यह अपेक्षा करती है कि वो इन्टरनेट इस्तेमाल करे. भले ही उनकी एक बड़ी संख्या अपना नाम तक लिखना नहीं जानती हो. सरकार जोर दे रही है कि लोग इन्टरनेट अपनाएं और मोबाइल बैंकिंग, इन्टरनेट बैंकिंग से पैसों का लेन-देन करें, इन्टरनेट के जरिए सरकार तक पहुंच हासिल करें, लेकिन उक्त आंकड़े बताते हैं कि जब पढ़े लिखे और कंप्यूटर के विशेषज्ञ साइबर क्राइम के शिकार हो जाते हैं तो अनपढ़ लोगों का क्या होगा, इसका अंदाज़ा लगाना कोई मुश्किल नहीं है. बहरहाल, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार इन्टरनेट सुरक्षा को लेकर अब नींद से जागी है. पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की कि इंटरनेट पर अपराधों की निगरानी के लिए गृह मंत्रालय के तहत एक साइबर पुलिस फोर्स का गठन किया जाएगा.

इस पुलिस फोर्स का गठन साइबर एंड इंफार्मेशन सिक्युरिटी (सीआईएस) डिविजन के अंतर्गत किया जाएगा. गौरतलब है कि सीआईएस डिविजन का गठन गृह मंत्रालय के तहत 10 नवम्बर 2017 को किया गया था. साइबर पुलिस फोर्स के गठन के अतिरिक्त सीआईएस की चार शाखाएं होंगी जिसमें मुख्य तौर पर सिक्युरिटी क्लीयरेंस, साइबर क्राइम प्रिवेंशन, साइबर सिक्युरिटी और इंफार्मेशन सिक्युरिटी विंग शामिल है. इसके आलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइबर क्राइम के मामलों से निपटने के लिए गृह मंत्रालय बुडापेस्ट कन्वेंशन ऑन साइबर क्राइम पर हस्ताक्षर करने पर विचार कर रहा है.

बच्चे बन रहे शिकार

इंटरनेट पर बच्चों से सम्बंधित अपराध और अश्लील वेबसाइट्‌स के बढ़ते विस्तार को देखते हुए सरकार चिंतित तो दिख रही है, लेकिन इनसे निपटने के लिए अभी तक कोई ठोस उपाय तलाश नहीं कर पाई है. दरअसल यह बच्चों के अभिभावकों की भी ज़िम्मेदारी है कि वे शुरू से ही अपने बच्चों को इन्टरनेट के लिए तैयार करें, नहीं तो कोई अनजान अपराधी उन्हें आसानी से शिकार बना सकता है. एंटी-वाइरस बनाने वाली कंपनी मैकेफे के एक सर्वे में 44 प्रतिशत बच्चों ने बताया कि वे ऐसे लोगों से मिल चुके हैं या मिलने वाले हैं, जिनसे उनकी पहली पहचान इंटरनेट पर हुई. उसी तरह 54 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि उन्होंने अपने बच्चों को ऐसी वेबसाइट्‌स सर्फ करते देखा है, जो अनुचित थीं. कुछ जानकारी के अभाव में और कुछ उत्सुकतावश बच्चे पोर्नोग्राफिक वेबसाइट्‌स के विजिटर बन जाते हैं. वे ऐसी सामग्रियां देखने लग जाते हैं जो पोर्नोग्राफी को सामाजिक मान्यता दिए जाने वाले देशों में भी प्रतिबंधित है. सरकार ने कुछ वेबसाइट्‌स ब्लॉक भी किया है, लेकिन उसका कोई खास नतीजा निकलता नहीं दिख रहा है. इन्टरनेट के जानकार मानते हैं कि पोर्न वेबसाइट्‌स पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाना   नामुमकिन है, लेकिन इन्हें फिल्टर ज़रूर किया जा सकता है.

मुफ्त वाई-फाई, मुफ्त ऐप हानिकारक हैं

मुफ्त वाई-फाई, फ्री मोबाइल ऐप, गूगल एकाउंट्स आदि उपभोक्ता से जुड़ी बहुत सारी निजी जानकारियां अपराधियों तक पहुंचा रहे हैं. आज मोबाइल और इन्टरनेट इस्तेमाल करने वाला हर व्यक्ति ऑनलाइन फ्रॉड का या तो शिकार बन चुका है या संभावी शिकार है. चौथी दुनिया के पिछले अंक के सम्पादकीय में इस खतरनाक गोरखधंधे पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है. ऐसे में चाहे जितना भी मज़बूत कानून बन जाए, पुलिस ़फोर्स गठित हो जाए, अंतरराष्ट्रीय कॉन्वेंशन्स पर हस्ताक्षर हो जाएं, साइबर क्राइम को रोक पाना एक टेढ़ी खीर नज़र आती है. दूसरी बात यह कि हर एक सेवा को ऑनलाइन किये जाने पर जोर देने से पहले सरकार को इस ज़मीनी हकीकत पर भी गौर करना चाहिए कि देश की एक बड़ी आबादी अभी अनपढ़ है, उनपर अनिवार्य ऑनलाइन सेवाएं थोपना ठीक नहीं है?

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here