jharkhand-politicsराज्यसभा चुनाव में झारखंड में फिर इस बार वही हुआ, जिसकी आशंका थी. इस बार चुनाव में फिर क्रॉस वोटिंग हुई और विपक्षी दलों के साझा प्रत्याशियों की हार हो गई, जबकि विपक्ष के पास जीत का आंकड़ा था. झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो के पुत्र वसंत सोरेन की जीत पक्की मानकर विपक्षी नेता आश्वस्त थे. लेकिन भाजपा ने अपने दूसरे प्रत्याशी की जीत के लिए ऐसी रणनीति बनायी कि विपक्ष के सभी पत्ते धराशाई हो गए.भारतीय जनता पार्टी के दोनों प्रत्याशियों ने जीत दर्ज कर यह साबित कर दिया कि सत्ता और पैसे में काफी ताकत है.

भारतीय जनता पार्टी भले अनुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार की बात करे, लेकिन राज्यसभा चुनाव ने इसे फिर झूठा साबित कर दिया. भाजपा ने राज्यसभा की दोनों सीटें जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. प्रशासन और सत्ता के अलावा पैसे का भी भारी खेल हुआ. सूत्रों की मानें तो पार्टी के रणनीतिकारों ने रांची से 30 किलोमीटर दूर पतरातू की हरी वादियों में ऐसे विधायकों से सम्पर्क किया, जिन्हें रिझाया जा सकता था. पलामूू प्रमंडल के दो विधायकों पर डोरा डाला गया. हरी घास के लालच में कई विधायक आ गये और भाजपा ने अपनी जीत के लिए जादुई आंकड़ा छू लिया. भाजपा ने सत्ता का प्रभाव दिखाते हुए उन विधायकों को हड़काया जिन पर कुछ मामलों में वारंट जारी था. भाजपा ने झामुमो के एक विधायक चमरा लिंडा को भी अस्पताल के एक कमरे में बंद करा दिया और चिकित्सकों से यह लिखवा दिया कि उनकी तबियत ज्यादा खराब है इसलिए उन्हें मतदान के लिए नहीं ले जाया जा सकता है. जब झामुमो के नेताओं ने एम्बुलेंस से लानेे की कोशिश की तो पुलिस ने एक मामले में गिरफ्तार कर उन्हें अस्पताल में ही घेरे रखा. इस मामले में न्यायालय ने भी संज्ञान लेते हुए पुलिस को कड़ी फटकार लगायी और कहा कि झामुमो विधायक चमरा लिंडा को गिरफ्तार करने के 24 घंटे बाद भी उन्हें अदालत में पेश क्यों नहीं किया गया. भाजपा के रणनीतिकारों ने पांकी से कांग्रेस विधायक देवेन्द्र सिंह बिट्‌टू को भी नहीं निकलने दिया और मतदान में जाने से रोक दिया. वैसे इस मामले में देवेन्द्र सिंह का कहना है कि उन्होंने गिरफ्तार होने के डर से मतदान में भाग नहीं लिया और इस मामलेे में पार्टी के आला नेताओं को भी सूचना दे दी थी. लेकिन सूत्रों की मानें तो भाजपा के रणनीतिकारों ने उन्हें भय के साथ ही सब कुछ दे दिया जो वे चाहते थे. इसके साथ ही पलामू प्रमंडल के एक अन्य विधायक को भी भाजपा अपने साथ करने में सफल रही. इस चुनाव में दो विधायक अनुपस्थित रहे जबकि दो ने क्रॉस वोटिंग कर भाजपा के दूसरे करोड़पति उम्मीदवार को राज्यसभा भेज दिया.

दरअसल राज्यसभा चुनाव के एक दिन पहले दस जून को जगन्नाथपुर थाने की पुलिस ने 2013 के एक मामले में आवेदन देकर झामुमो विधायक चमरा लिंडा के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट हासिल कर लिया था. चमरा लिंडा रांची केआर्किड अस्पताल में इलाज करा रहे थे. 10 जून को रात जगन्नाथपुर थाने के इंस्पेक्टर पुलिस बल के साथ आर्किड अस्पताल पहुंचे और लिंडा को गिरफ्तार करने की कोशिश की. डॉक्टरों ने बताया कि उनकी तबियत खराब है और वे गिरफ्तार करने के लायक नहीं हैं. इसके बाद उनके कमरे के बाहर और अस्पताल में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया. मतदान के दिन 11 जून की सुबह पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया पर उन्हें कोर्ट में अगले दिन पेश किया गया. कोर्ट ने इस मामले में पुलिस को जमकर फटकार लगाई और पुलिस से पूछा कि आखिर 24 घंटे के अंदर उन्हें न्यायालय में पेश क्यों नहीं किया गया.

झारखंड में राज्यसभा की दो सीटों के लिए मतदान होना था इसके लिए तीन प्रत्याशी मैदान में थे. जाहिर है किसी एक को हारना था. भाजपा के दो प्रत्याशी थे और दोनों ने जीत हासिल की, झामुमो एक सीट पर लड़ा था और हार गया. केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की जीत को लेकर किसी को संशय नहीं था. भाजपा के पास आजसू को लेकर 47 मत थे इसलिए नकवी की आसान जीत तय थी, वे जीते भी पर भाजपा के दूसरे प्रत्याशी महेश पोद्दार के पास जीत का आंकड़ा नहीं था, लेकिन वे जीत गये. इधर विपक्ष के पास 30 मत थे और उन्हें जीत के लिए सिर्फ 28 मत चाहिए था दो मत विपक्ष के पास अधिक था इसलिए विपक्ष अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त था. चुनाव के ठीक एक दिन पहले नजारा बदल गया और मतदान होते-होते सारा समीकरण बिगड़ गया. किसी ने क्रॉस वोटिंग की तो कोई गायब रहा और भाजपा ने दोनों सीट पर अपनी जीत दर्ज कर ली. जाहिर है 30 विधायकों के समर्थन वाला प्रत्याशी हार जाये तो इसका साफ-साफ अर्थ है कि किसी ने पार्टी को गच्चा देकर दूसरे को समर्थन दिया. आरोप लग रहा है कि इसके पीछे कोई न कोई खेल हुआ है. अगर पुलिस ने किसी को रोका, तंग किया और विधानसभा तक नहीं पहुंचने दिया तो यह लोकतंत्र का मजाक है. जिस विधायक ने क्रॉस वोटिंग की, वे यह कह रहे हैं कि अन्तर्रात्मा की आवाज पर उन्होंने वोटिंग की, तो यह नैतिकता का खुला मजाक है. हर कोई जानता है कि झारखंड राज्यसभा चुनाव हॉर्स ट्रेडिंग के लिए कितना बदनाम रहा है.

भाजपा पर सवालिया निशान उठना लाजिमी है. पार्टी ने  धन बल और सत्ता का खुलकर दुरुपयोग किया. चमरा लिंडा के खिलाफ जब पुराने मामले थे तो ऐन वक्त पर मतदान के एक दिन पहले क्यों गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ? ऐसे समय पर पुलिसिया कार्रवाई होने से तो गलत संदेश जायेगा ही. चमरा लिंडा भी संदेह के घेरे में हैं. सवाल उठ रहा है कि चमरा लिंडा ने वोट देने के लिए निकलने का प्रयास क्यों नहीं किया? अगर वे वोट देते तो विपक्ष का प्रत्याशी नहीं हारता.

इस चुनाव में दूसरे विधायक जो सबसे चर्चा में हैं, वे हैं पांकी से कांग्रेस के विधायक देवेन्द्र सिंह बिट्‌टू. चर्चा है कि उनके खिलाफ भी एक मुकदमा दायर है और पुलिस ने उन्हें धमकाया भी था. वे इस डर से गायब हो गये और मतदान करने नहीं आये. वैसे वे कहते हैं कि इस बात की सूचना उन्होंने अपने वरीय नेताओं को दे दी थी, पर सवाल उन पर भी यह उठ रहा है कि आखिर वे गायब क्यों हो गये? ठीक एक दिन पहले जब रांची में थे और दिन भर मीटिंग में पार्टी नेताओं के साथ रहे तो अचानक मतदान के दिन कहां गायब हो गये और अपने मोबाइल को स्वीच ऑफ क्यों कर दिया? क्या वे पुलिस की डर से गायब रहे या वे इसकी आड़ में अप्रत्यक्ष ढंग से भाजपा को मदद कर रहे थे? सूत्रों की मानें तो वे 11 जून को मतदान के दिन रांची में ही थे और भाजपा के रणनीतिकारों के सम्पर्क में थे.

अब दो विधायक जिन्होंने क्रॉस वोटिंग की उसका तो पता चलना मुश्किल है, पर यह तो सच है कि किसी ने गद्दारी की है. दो विधायकों ने विपक्ष की जगह भाजपा को वोट दे दिया ये दोनों किसी भी दल के हो सकते हैं, पर विपक्षी इसका ठीकरा झारखंड विकास मोर्चा के प्रकाश राम और मासस के एकमात्र विधायक अरूप चटर्जी पर फा़ेड रहे हैं पर दोनों ने इससे इंकार किया है. वे कहते हैं कि उन्होंने अपने पोलिंग एजेंट को दिखाकर वोट किया है. इधर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत ने कहा कि पार्टी के दो विधायकों ने पार्टी आलाकमान के फैसले के विरुद्ध काम किया है. उन्होंने कहा कि पार्टी पांकी के विधायक देवेन्द्र सिंह बिट्‌टू के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगी और पार्टी से उन्हें निष्कासित किया जायेगा. प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि इस संबंध में आलाकमान को पूरी रिपोर्ट भेज दी गई है कि पांकी विधायक ने पार्टी व्हिप के खिलाफ मतदान किया है.

वहीं भाजपा के रणनीतिकार हॉर्स ट्रेडिंग से इंकार करते हुए कहते हैं कि उन्हें निर्दलियों का साथ मिला. विपक्षी दल हार स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें यह देखना चाहिए कि उनके सहयोगी दलों ने ही उन्हें छला है. जो भी हो झारखंड अपनी बदनामी से उबर नहीं पा रहा है. उम्मीद थी कि पिछले राज्यसभा चुनाव में पूरे देश में यहां के माननीयों का जो छीछालेदार हुआ था, उससे सबक लेकर इस बार वे अपनी नैतिकता का परिचय देंगे.

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