यूं तो देशभर में कई महान साहित्यकारों की विरासत खतरे में है. लेकिन इनमें से कई ऐसे भी हैं, जिनके गांव-घर में ही उनके विचारों की सार्थकता सवालों के घेरे में है. ऐसा ही कुछ दिनकर के साथ भी हो रहा है. जिस रामधारी सिंह दिनकर ने समाज और सियासत के हित में अपना कलम चलाकर सुषुप्त सामाजिक चेतना को झकझोरने का काम किया था, उसी दिनकर के अपने लोग आज उनके विचारों की तिलांजलि दे रहे हैं. दिनकर के नाम पर दिए जाने वाले सम्मान की पारदर्शिता और सार्थकता आज सवालों के घेरे में है.

दरअसल, बेगूसराय के ख्यातिप्राप्त विद्वतजन, समाजसेवी एवं साहित्यकारों ने जिलाधिकारी के सहयोग से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की स्मृति को अक्षुण्ण रखने के उद्देश्य से दिनकर सम्मान समारोह समिति का गठन किया था. समिति के गठन के लिए तत्कालीन जिला पदाधिकारी रामेश्वनर सिंह ने 1992 में पहल की. लेकिन इसी बीच उनका स्थानान्तरण हो गया. नव पदस्थापित जिला पदाधिकारी प्रफुल्ल रंजन सिन्हा ने इस कार्य को आगे बढ़ाया. ख्यातिप्राप्त गांधीवादी चिंतक व समाजसेवी स्वर्गीय बैजनाथ चौधरी की अध्यक्षता में नामचीन साहित्यकार डॉ. आनन्द नारायण शर्मा, हिन्दी, उर्दू एवं मैथिली के विद्वान स्वर्गीय फजलुर्ररहमान हाशमी, स्वर्गीय अखिलेश्वशर कुंवर, स्वर्गीय जनार्दन प्रसाद सिंह आदि ने दिनकर सम्मान समारोह समिति की स्थापना की. समिति द्वारा निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष दिनकर जयंती (23 सितम्बर) के अवसर पर एक राष्ट्रीय फलक के एवं एक बेगूसराय जनपद के चयनित साहित्यकारों को क्रमश: दिनकर राष्ट्रीय सम्मान एवं दिनकर जनपदीय सम्मान पुरस्कार से नवाजा जाएगा. लेकिन वर्तमान में अपने ही जनपद में राष्ट्रकवि दिनकर उपेक्षित हैं और उनके नाम पर दिए जाने वाले ये सम्म्मान सवालों के घेरे में हैं. दिनकर की 109 वीं जयंती के अवसर पर इस वर्ष भी 23 सितम्बर को कार्यक्रम का आयोजन हुआ. लेकिन असलियत में यह फॉर्मलिटी से ज्यादा नहीं था.

जनपद में कार्यक्रम द्वारा दिनकर को श्रद्धांजलि दिए जाने के मामले में लोग आज भी जिला पदाधिकारी विमल कीर्ति सिंह एवं हरजोत कौर के कार्यालय को याद करते हैं. 1997 में समिति के पदेन अध्यक्ष जिला पदाधिकारी विमल कीर्ति सिंह के प्रयासों से ही राष्ट्रीय उच्चपथ 31 एवं 28 के मिलन स्थल जीरो माइल पर राष्ट्रकवि की आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई और जीरो माइल को दिनकर चौक का नाम दिया गया. उन्होंने ही जन सहयोग से एक स्मारिका प्रकाशित कराई और उसमें विज्ञापनदाताओं के सहयोग से प्राप्त हुई एक बड़ी राशि को बैंक में एफडी कराया गया. उसी राशि के सूद से समारेाह का आयोजन होता रहा है. उनके बाद वर्ष 2000 में समिति के पदेन अध्यक्ष जिला पदाधिकारी हरजोत कौर ने दिनकर के नाम पर दिए जाने वाले उक्त दोनों सम्मानों की देय राशि में इजाफा किया. साथ ही पुरस्कार प्रदान करने के लिए एक चयन प्रक्रिया स्थापित की. जिसके तहत अखबार में विज्ञापन देकर रचना एवं आवेदन (बायोडाटा) आमंत्रित किया गया. इस पहल की काफी सराहना हुई. लेकिन हरजोत कौर के स्थानान्तरण के बाद यह प्रक्रिया बन्द कर दी गई. फलत: चयन की पारदर्शिता पर प्रश्नर चिन्ह लगने लगा. वर्ष 2012 में समिति के पदेन अध्यक्ष जिला पदाधिकारी मनोज कुमार ने समिति के सामने यक्षप्रश्नर खड़ा कर इसके निबंधन, नियमावली और सरकार से प्राप्त होने वाली राशि आदि के संबंध में जानकारी मांगी. समिति के पदाधिकारी यह जानकारी उपलब्ध कराने में असमर्थ रहे, जिसके बाद जिला पदाधिकारी ने समिति के अध्यक्ष पद से अपने को अलग कर लिया. जिला पदाधिकारी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद समिति स्वछन्द हो गई और बिना पारदर्शिता और मापदंड अपनाए पुरस्कार के लिए साहित्यकारों का चयन होने लगा. बुद्धिजीवियों ने चयनित साहित्यकारों पर नहीं वरन् चयन प्रक्रिया पर प्रश्नि उठाना शुरू कर दिया.

इन सब का परिणाम ये हुआ कि आम लोग भी इससे अलग होने लगे. यह इससे समझा जा सकता है कि इस साल 23 सितम्बर को दिनकर भवन में आयोजित सम्मान समारोह में मात्र 67 व्यक्ति ही उपस्थित थे. बुद्धिजीवियों की इस नगण्य उपस्थिति पर राष्ट्रीय सम्मान पुरस्कार प्राप्त आलोक धन्वा की टिप्पणी ने माहौल को और हास्यास्पद बना दिया. दूसरी ओर, दिनकर भवन के जीर्णोद्धार के बाद इसे दिनकर कला भवन का नाम मिला. कई बुद्धिजीवियों का यह भी कहना है कि ‘दिनकर भवन’ में दिनकर को समर्पित नाम लगता था, लेकिन अब इसका नाम ‘दिनकर कला भवन’ होने से इसकी व्यापकता सिमट कर सिर्फ कला पर आ गई है, जिससे राष्ट्रकवि के नाम की व्यापकता का अवमूल्यन हुआ है.
राष्ट्रकवि की छवि का अवमूल्यन करने में बिहार सरकार एवं स्थानीय सांसद की भी अहम भूमिका रही है. दिनकर के गांव सिमरिया की घोर अपेक्षा जारी है. इस गांव को आदर्श ग्राम घोषित किया गया है, साथ ही इसे राष्ट्रपति से निर्मल ग्राम का पुरस्कार भी लिा है. और तो और इसे स्थानीय सांसद डॉ. भोला सिंह ने गोद भी लिया है, लेकिन इन सब के बावजूद यहां सड़क, नाला, पेयजल, जल निकासी, बिजली, स्वास्थ्य, सिंचाई, शिक्षा आदि की स्थिति अत्यन्त जर्जर है. यहां किसी भी तरह से निर्मलग्राम या आदर्श ग्राम की झलक देखने को नहीं मिलती है. सांसद ने तो अपने इस गोद लिए गांव के विकास के लिए एक भी पैसा खर्च नहीं किया है.

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