इस तस्वीर को देख कर दुख हो रहा है। बदहवास सा दिख रहा ये किशोर, कन्हैया गुप्ता का बेटा है। कन्हैया गुप्ता से मेरा पहला परिचय तब हुआ था जब मैं दैनिक जागरण के लिए बेतिया में काम कर रहा था। बाद के दिनों में कन्हैया गुप्ता ने भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करना शुरू कर दिया। हाल ही में वो पार्टी की बेतिया नगर इकाई का अध्यक्ष बनाए गए थे। पार्टी नेताओं की डिजिटल रैली की तैयारियों और दरवाजे-दरवाजे सरकार का रिपोर्ट कार्ड पहुंचाने के क्रम में वो कोराना संक्रमण का शिकार हो गए।
अस्पताल गए तो उन्हें भरोसा था कि सूबे में उनकी पार्टी की सरकार है और उनके अपने सांसद डॉ संजय जायसवाल फिलहाल पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं तो उनको बेहतर इलाज मिल ही जाएगा। अस्पताल में उनका ये भ्रम टूट गया। वो लगातार अपने नेता और स्थानीय सांसद से गुहार लगाते रहे लेकिन उनको मदद नहीं मिली। बेतिया मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन के अभाव में उनकी मौत हो गई।
अब कई लोग सोशल मीडिया पर गुस्सा और हैरानी जता रहे हैं। लिख रहे हैं कि चुनाव में जिस संजय जायसवाल के लिए कन्हैया गुप्ता रात-दिन एक कर देते थे उसी कन्हैया गुप्ता के इलाज में संजय जायसवाल ने कोई मदद नहीं की! एक अदद ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम नहीं करवा सके सांसद जी! इतना ही नहीं अपनी पार्टी के नगर अध्यक्ष की मौत के बाद उसके परिजनों का दुख बांटने भी नहीं आए स्थानीय सांसद!
मुझे इसमें हैरान करने वाली कोई बात नहीं दिखी। कार्यकर्ताओं की मौतों पर भला कब नेता दुखी हुए हैं जो अब होने लगें। कार्यकर्ता खुद ही कई किस्म के भ्रम पाले जी रहे होते हैं। और आज जो लोग कन्हैया गुप्ता की मौत के बाद सांसद संजय जायसवाल पर सवाल उठा रहे हैं वो लोग या तो खुद बड़े भ्रम का शिकार हैं या जानबूझकर भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
कौन नहीं जानता है कि बेतिया के एक बड़े राजनैतिक परिवार ने अपनी राजनैतिक ताकत के बल पर पिछले पैंतीस-चालीस सालों से बेतिया सदर अस्पताल को जानबूझकर बदहाल बनाए रखा ताकि, अपने परिवार की डॉक्टरी की दुकान में स्थानीय लोगों को वो आराम से लूट सके। इसी परिवार से जुड़े शख्स ने बेतिया मेडिकल कॉलेज के निर्माण में तरह-तरह की बाधाएं खड़ी की और बाद में भी अपनी राजनैतिक ताकत के दम पर अस्पताल में कई किस्म की मेडिकल सुविधाएं शुरू ही नहीं होने दी। वो अपने पारिवारिक डॉक्टरी की दुकान को थोड़ा भी प्रभावित होता नहीं देख सकता है। किससे ये सच छुपा है? अपने परिवार की डाक्टरी वाली दुकान में जनता को लूटने वाला ये आदमी आम आदमी में भ्रम बनाए रखने के लिए मेडिकल कॉलेज की बदहाली को ही मेडिकल कॉलेज की सुविधाएं बताता रहा।
आपमें से कौन ये बात नहीं जानता है। फिर भी आप वोट तो उसी को देते हैं न जिसने या तो उसकी पारिवारिक डॉक्टरी वाली दुकान में आओ या फिर मौत को गले लगाओ वाली शर्त अनिवार्य कर रखी है। तो मौत को तो खुद आपने ही चुना है न।
आपको जो चाहिए वो आपको मिल रहा है। आपने कौन सा बेहतर अस्पताल, अच्छे स्कूल, अच्छी सड़कों के लिए वोट किया था! जिस आदमी ने अपने पेट्रोल पंप पर चांदी काटने के लिए सालों तक आपके रेलवे ओवर ब्रिज को बनने नहीं दिया आपने उसी को न वोट दिया। तो फिर भुगतेगा कौन, आप ही न।
 क्या आपने खुद से कभी ये सवाल पूछा कि जिस आदमी को आप सालों से चुनते आ रहे हैं उस आदमी ने आपकी सालों पुरानी किसी समस्या का समाधान क्यों नहीं दिया।
एक अदद ऑक्सीजन सिलेंडर के बिना सिर्फ कन्हैया गुप्ता नहीं मरे हैं, ऐसे कई कन्हैया यहां सालों से रोज ऐसे ही मर रहे हैं। इन हजारों मौतों का गुनहगार सिर्फ वो नेता नहीं है जिसे आपने चुना है। आप भी उस गुनाह के हिस्सेदार हैं। ये जानते हुए कि ये आदमी किसी काम का नहीं है आप उसे चुनते रहे। चूंकि अलाना जरूरी है इसलिए फलाना मजबूरी है के जुमले दोहराते रहे आप। ना तो आलाना कभी आपके काम आए और ना ही फलाना। और एक बात जान लीजिए एक मजबूर वोटर कभी भी एक मजबूत प्रतिनिधि नहीं चुन सकता।
कन्हैया गुप्ता की मौत के बाद अगर आपकी आंख खुल गई हो तो एक नजर रोजगार के लिए दिल्ली-मुंबई में ग़म और गालियां खाती चंपारण के नवजवानों की टोलियों को देख लीजिए। बेतिया के हॉस्पिटल रोड पर आंखें खोल कर घूम लीजिए और मामूली दवाइयों के अभाव में मां की गोदियों में मर रहे बच्चों का चेहरा निहार लीजिए। देख सकिए तो बाढ़ में डूबते-उतराते लोगों का पेट देख आइए। और गिन सकिए तो सिर्फ बेतिया के छावनी चौक पर जाम की वजह से सड़क हादसों में हुई मौतों को गिन लीजिए। अगर आपने ये कर लिया तो फिर आप खुद का और परिवार का बड़ा भला कर लेंगे। आप भ्रमजाल से बाहर निकल जाएंगे। और हां, अगर आप ये सब नहीं कर सकते तो फिर कन्हैया गुप्ता की मौत पर दुख और गुस्सा जताने का ढोंग भी मत कीजिए। बस इंतजार कीजिए कि आपकी बारी कब आती है और आप कब कन्हैया गुप्ता की गति को पाते हैं।
असित नाथ तिवारी (वरिष्ठ पत्रकार)
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