anil-kumar-sinhaअनिल सिन्हा अंतत: केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के नए निदेशक के रूप में नियुक्त हो गए. अपने दो पूर्ववर्तियों रंजीत सिन्हा और एपी सिंह की तरह वे भी बिहार कैडर से है. उनका दावा है कि वे पृष्ठभूमि में बने रहना पसन्द करते हैं, लेकिन अपनी नई भूमिका में ऐसा होने की कम संभावना है. उन्होंने ऐसे समय में पद संभाला है जब एजेंसी की साख बुरी तरह से प्रभावित है. इस पर हर तरफ से, खास कर सुप्रीम कोर्ट की ओर से, काफी बुरा-भला सुनना पड़ा है. पिछले दो सीबीआई प्रमुख विवादों में छाए रहे. सिन्हा ने हाल ही में कहा कि वे अपने कार्यों में विश्‍वास रखते हैं न कि बोलने में. उनके भविष्य के कार्यों की बारीकी से छानबीन की जाएगी. क्या सीबीआई पिंजरे में बन्द तोता रहेगा या फिर से यह अपनी साख वापस लौटा पाएगा, यह सब सिन्हा के कार्यों पर निर्भर करता है. बहरहाल, इसमें कोई संदेह  नहीं है कि एजेंसी में विशेष निदेशक के रूप में किया गया उनका काम उपयोगी था.
 
सेठ को मिला तीसरा सेवा विस्तार
कैबिनेट सचिव अजीत सेठ पहले ऐसे वरिष्ठ बाबू हैं, जिन्हें मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के जाने के बाद अपने साथ जोड़े रखा. सेठ को अब तीसरी बार छह महीने के लिए सेवा विस्तार मिला है. जाहिर है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेठ पर बहुत भरोसा कर रहे हैं. कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के घोषणा के बाद अटकलों पर भी विराम लग गया है कि अब मोदी किसे नया कैबिनेट सचिव बनाएंगे. इसके साथ ही इस पद के लिए उम्मीद लगाए कुछ दावेदारा के सपने भी टूट गए. इस तरह कैबिनेट सचिव पद के लिए यह आदर्श भी बन गए हैं. जब एक कबिनेट सचिव को तीन-चार साल का कार्यकाल मिल गया हो जबकि कागज पर यह महज दो साल का ही होता है. पूर्व कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी को तीन साल का कार्यकाल मिला था और उनके उत्तराधिकारी के एम चंद्रशेखर को चार साल का असामान्य रूप से लंबा कार्यकाल मिला था. इस सब के बाद भी बाबुओं की आगे बढ़ने की कोशिशें जारी हैं जिनके नाम पर इस पद के लिए विचार किया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब जो भविष्य में रुचि रखने वाले हैं अब नए फ्रंट रनर बन गए हैं.
 
बजट मैन
सब की निगाहें अभी हंसमुख अढ़िया पर टिकी हुई है जो वित्तीय सेवा सचिव हैं और अगले साल के केंद्रीय बजट की तैयारी के प्रभारी है. पिछले महीने 1981 बैच के आईएएस अधिकारी को गुजरात से लाया गया जहां वे अतिरिक्त मुख्य सचिव, वित्त थे. उन्होंने जी.एस. संधू की जगह ली है. लेकिन पर्यवेक्षकों का मानना है कि अढ़िया अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर मोदी सरकार की सेवा करने के लिए सबसे अधिक सक्षम है.
अढ़िया के बारे में कहा जाता है कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री के मोदी के प्रधान सचिव के रूप में काम कर रहे थे. तब बॉस तक उनकी सीधी पहुंच थी. जिन पर्यवेक्षकों ने गुजरात के बाबुओं पर नजर रखी है, उनका मानना है कि अढ़िया सिविल सेवा के सबसे सक्षम अधिकारियों में से हैं. वे कड़ी मेहनत करने वाले एक अधिकारी हैं. वे सिर्फ अपने काम में विश्‍वास रखते हैं और अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं. दिलचस्प रूप से वे शायद अकेले बाबू हैं जिनका अपना वेबसाइट है. योग अध्ययन में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त अढ़िया अध्यात्म पर नियमित रूप से कॉलम लिखते हैं और दो पुस्तकों के लेखक भी हैं, लेकिन उनका सबसे अच्छा पल अभी भी आने वाला है.

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