नौकरशाही का राजनीतिकरण कोई नई बात नहीं है. सभी चुनावों के पहले ऐसा देखा जाता है. उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने अपने सचिवालय के दो आईएएस अधिकारियों नवनीत सहगल एवं डी एस मिश्रा की सराहना सरकार के विकासात्मक कार्यों में उनकी भूमिका के लिए की. इसके बाद जो प्रतिक्रिया हुई, वह कोई अप्रत्याशित नहीं थी. यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि चुनाव के समय बाबुओं का संबंध किसी न किसी राजनीतिक दल के साथ होता है. एक सेवानिवृत्त अधिकारी का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. मुलायम सिंह यादव के समय भी इससे अच्छी स्थिति नहीं थी. 2007 के विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव एन सी वाजपेयी, डीजीपी बुआ सिंह और कुछ आईपीएस अधिकारियों को चुनाव कार्य से अलग कर दिया था, क्योंकि इन लोगों ने मुलायम सिंह यादव एवं उनके बेटे अखिलेश यादव की प्रशंसा की थी. चुनाव के समय अधिकारियों को अपने पक्ष में करने का यह पुराना रिवाज है. मायावती भी वही कर रही हैं, जो पहले से होता रहा है, लेकिन इससे बाबुओं को परेशानी होती है. उन्हें इसका ख़ामियाजा चुनाव के बाद भुगतना पड़ता है.

प्रसार भारती में सुधार नहीं

बी एस लाली को प्रसार भारती के सीईओ पद से हटाने और उनकी जगह पर राजीव टाकरु को नया कार्यवाहक सीईओ बनाए जाने के बाद ऐसा लग रहा था कि इस संस्था में सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा होता नहीं दिखाई दे रहा है. सूत्रों का कहना है कि प्रसार भारती के कर्मचारी टाकरु के रवैये, ख़ासकर कुछ बड़े अधिकारियों के स्थानांतरण के फैसले से ख़ुश नहीं हैं. प्रसार भारती के कार्यवाहक सीईओ की दूरदर्शन के नवनियुक्त महानिदेशक त्रिपुरारी शरण सहित कई अधिकारियों के साथ अनबन चलती दिखाई दे रही है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि आख़िरकार प्रसार भारती हमेशा ग़लत कारणों से ही चर्चा में क्यों रहती है. क्यों नहीं यह कोई ऐसा काम करती है, जिसके कारण इसकी सराहना की जाए. ऐसा लगता है कि सरकार प्रसार भारती को गंभीरता से नहीं ले रही है.

विनोद राय की परेशानी बढ़ी

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय की  परेशानी बढ़ गई है. भारतीय औद्योगिक वित्त निगम के सीईओ अतुल राय द्वारा विशेषाधिकार उल्लंघन की जांच कर रही संसद की विशेषाधिकार समिति ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है. पैनल का कहना है कि अतुल राय की नियुति सही तरीक़े से नहीं की गई है. ग़ौरतलब है कि अतुल राय की नियुक्ति के समय विनोद राय वित्तीय सेवाओं के सचिव थे, इसलिए संसदीय विशेषाधिकार समिति की मांग है कि विनोद राय की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए. अतुल राय पर वित्तीय अनियमितता एवं भ्रष्टाचार का आरोप है. सुप्रीम कोर्ट में उन्हें हटाए जाने के लिए मामला दर्ज किया गया है, जिस पर सुनवाई की जा रही है. अगर सीबीआई इसकी जांच करती है तो विनोद राय के लिए परेशानी बढ़ जाएगी. विनोद राय ने 2-जी मामले में हुए नुक़सान के जो आंकड़े पेश किए थे, उनसे सरकार की परेशानी बढ़ गई है. अब उन पर किसी दूसरे मामले में सीबीआई जांच की मांग करने का क्या मतलब हो सकता है, यह तो बाद में ही पता चलेगा.

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