कोविड 19 भारतीय महिलाओं के लिए 2.7 गुना खतरनाक: डॉ. संतोष भारतीकोविड 19 का प्रकोप जारी है। यह महामारी लगातार ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को अपने चपेट में लेती जा रही है। पुरुष और महिलायें इन दोनों पर ही इसके भयंकर प्रभाव नजर आने लगे हैं। एक तरफ मृत्यु दर के मामले में जहां पुरुषों की तादाद बढ़ी है तो वहीं आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर इससे महिलायें भी उतनी ही त्रस्त नजर आ रही हैं। इन सबके बीच संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के हवाले से समझे तो कोरोना वायरस की मार लड़कियों और महिलाओं पर कुछ ज़्यादा ही पड़ी है। रिपोर्ट का शीर्षक है- फ्रॉम इनसाइट्स टू एक्शन: जेंडर इक्वैलिटी इन द वेक ऑफ कोविड-19 (From Insights to Action: Gender Equality in the Wake of COVID-19) रिपोर्ट में यह बताया गया है कि समाज में जो महिलायें हाशिये पर हैं उनमें अन्य की तुलना में कोविड-19 संक्रमण का खतरा कहीं अधिक है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि श्वेत महिलाओं की तुलना में कोरोना वायरस से अश्वेत समुदाय की महिलाओं की संख्या 4.3 गुना, बांग्लादेश और पाकिस्तान की महिलाओं की 3.4 गुना और भारत की महिलाओं के संक्रमण की संभावना 2.7 गुना अधिक है।
इंस्टीट्यूट ऑफ करंट वर्ल्ड अफेयर्स के अनुसार, देश के स्वास्थ्य कर्मचारियों की कुल संख्या में से लगभग आधा हिस्सा महिलायें ही हैं जबकि नर्सिंग स्टाफ की बात करें तो इनका आंकड़ा 90 प्रतिशत तक पहुँच जाता है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में कोरोना के खिलाफ हो रही इस लड़ाई में महिलायें भी निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। यह बताता है कि राष्ट्र के निर्माण में उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है साथ ही यह भी समझा जा सकता है कि इन महिलाओं के कोरोना संक्रमित होने का खतरा कहीं ज़्यादा है, क्योंकि ये सीधे इस लड़ाई में फ्रंट लाइन कार्यकर्ता हैं। समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि  केंद्र  और राज्य सरकारों द्वारा संचालित सुविधाओं में 548 डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी इस महामारी से संक्रमित हुए हैं।
यह जानना भी हैरान करता है कि इस महामारी के प्रबंधन में भारतीय महिलाओं द्वारा सकारात्मक योगदान के बावजूद उन्हें कई स्तरों पर जूझना पड़ रहा है। एक तो भारतीय सामाजिक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था में पहले से ही स्त्री-पुरुष असमानता की एक गहरी खाई बनी हुई है इसके अलावा वर्तमान में भी वे रोजगार, मजदूरी और शिक्षा में लैंगिक भेदभाव झेल रही हैं। गौरतलब है कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के 2020 ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स के अनुसार, कोविड-19 के प्रकोप ने भारत में स्त्री-पुरुष के बीच सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को और भी व्यापक कर दिया है। बहरहाल, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि महिलाओं और पुरुषों के लिए समान अवसर के मापदंड पर  2018 में हम 108 वें स्थान पर थे तो अब 153 देशों में से 112 वें स्थान पर पहुँच गए हैं। वाकई एक त्रासदी यह भी है।

इन सबके बीच भारत में गहरी सामाजिक-आर्थिक असमानता के कारण कोविड -19 का प्रभाव काफी चिंताजनक है और इसके लिए सरकार को अनुदान राशि समेत कई तरह के ठोस उपाय करने की आवश्यकता है। हालांकि कुछ महिला स्वयं सहायता समूह स्त्रियों को मदद देने की दिशा में लगातार और अच्छा काम कर रही हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लेकिन अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। यदि सही और समय पर सुधारात्मक उपाय नहीं किए जाते हैं, तो भारतीय महिलाओं की पीड़ा कई गुना बढ़ जाएगी, जिससे उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा, स्वास्थ्य और वित्तीय कल्याण प्रभावित होंगे। दशकों से भारत सरकार महिलाओं को आगे बढ़ाने और लैंगिक समानता के उद्देश्य से जो काम कर रही है उस पर भी इसका उल्टा असर पड़ेगा और लाखों परिवारों पर इसके दूरगामी दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे!

(डॉ. संतोष भारती, असिस्टेंट प्रोफेसर, अंग्रेज़ी विभाग, दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय)

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