शीर्ष अफसर के आदेश की भी यूपी में ऐसी-तैसी, भ्रष्टाचार की जांच ठेंगे पर आरोपी ने धमकाया तो क्लीन चिट दे दी : मुख्यमंत्री के ऊर्जा विभाग में अराजकता का यह हाल

darkness-of-ghotalaउत्तर प्रदेश सरकार में भारी अराजकता है. कोई किसी की नहीं सुनता. विभाग का शीर्ष अफसर कुछ आदेश करता है तो उसके ही मातहत अफसर कुछ और तानाबाना बुन देते हैं. करोड़ों के भ्रष्टाचार के मामलों की जांच ठंडे बस्ते में इसलिए चली जाती है क्योंकि भ्रष्टाचार का आरोपी जांच करने वाले अधिकारी को खुलेआम धमकाता है और जांच अधिकारी डर के मारे बिना जांच किए ही क्लीन चिट जारी कर देता है. ऐसी अंधेरगर्दी की कुछ विचित्र बानगियां देखिए.

संजय अग्रवाल उत्तर प्रदेश के ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव हैं. संजय अग्रवाल उस विभाग के प्रमुख हैं, जिसके मंत्री खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं. ऊर्जा विभाग का प्रमुख सचिव होने के नाते संजय अग्रवाल बिजली महकमे के आठों निगमों के चेयरमैन भी हैं. अब समाजवादी पार्टी की सरकार में व्याप्त प्रशासनिक अराजकता में संजय अग्रवाल जैसे शीर्ष अधिकारियों की सुनता कौन है! प्रमुख सचिव ने भ्रष्टाचार के दो गंभीर मामलों में उच्चस्तरीय जांच का आदेश दिया.

यूपी पावर ट्रांंसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड के निदेशक प्रमोद गोपाल राव खंडालकर को इस मामले की जांच करने को कहा गया. इसमें एक मामला जालौन जिले के कालपी और कोंच में 139 किलोवाट के दो विद्युत उपकेंद्रों और झांसी के दुनारा में 220 किलोवाट के एक विद्युत उपकेंद्र की स्थापना में करोड़ों के भ्रष्टाचार से सम्बन्धित था. इसमें यूपी पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड में झांसी व आगरा में तैनात तत्कालीन अधिशासी अभियंता आरके सिंह मुख्य आरोपी हैं. भ्रष्टाचार के आरोपी आरके सिंह उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के अध्यक्ष भी हैं, इस नाते सिंह की महकमे में खूब हनक है. दूसरा प्रकरण यूपी जल विद्युत निगम लिमिटेड के अधिशासी अभियंता सुरेश चंद्र बुनकर के भ्रष्टाचार के तीन दर्जन मामलों की जांच से सम्बन्धित हैं.

कालपी, कोंच और दुनारा में विद्युत उपकेंद्र के निर्माण के क्रम में भीषण भ्रष्टाचार किए जाने की शासन को शिकायत मिली थी. विभागीय अराजकता का हाल यह पाया गया कि अधिशासी अभियंता आरके सिंह ने विद्युत उपकेंद्रों के निर्माण की डिजाइन खुद ही तैयार कर ली और उसे शीर्ष अधिकारियों से पास कराए बगैर लागू भी कर दिया. जबकि बाद में उस डिजाइन में गंभीर तकनीकी त्रुटियां पाई गईं. उसके एक ही उदाहरण से आपको भयावह स्थिति का अंदाजा मिल जाएगा. आरके सिंह द्वारा बनाई गई डिजाइन पर कालपी विद्युत उपकेंद्र के निर्माण के लिए बने पाइल फाउंडेशन (नींव निर्माण) की गहराई सात मीटर पाई गई जबकि कोंच के विद्युत उपकेंद्र के निर्माण के लिए पाइल फाउंडेशन (नींव निर्माण) की गहराई महज साढ़े तीन मीटर पाई गई.

ऐसी अराजक अनियमितताओं के कई उदाहरण सामने आए और ऐसे अनापशनाप फैसलों पर भुगतान भी जारी होता रहा. ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय अग्रवाल के आदेश पर 18 नवम्बर 2014 को जांच शुरू हुई. यूपी पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड के निदेशक प्रमोद गोपाल राव खंडालकर ने जांच के क्रम में पाइल फाउंडेशन की गहराई की सटीक तकनीकि पड़ताल के लिए दिल्ली के विशेषज्ञ मनोज बर्मन को दो अप्रैल 2016 को बुक भी कर लिया. लेकिन नींव निर्माण की गहराई की जांच आखिरकार नहीं ही हो पाई. इस बीच ऐसा कुछ हो गया कि 12 अप्रैल 2016 को आरोपी आरके सिंह का पक्ष लेकर बिना जांच किए ही उन्हें क्लीन चिट दे दी गई. ऊर्जा महकमे के अधिकारी कहते मिलेंगे कि जांच अधिकारी खंडालकर को खुलेआम धमकियां दी गईं जिससे जांच रुक गई और जबरन क्लीन चिट देनी पड़ी. अब उन्हीं विभूति को ऊर्जा महकमे की किसी शाखा में निदेशक बनाने की भी तैयारी चल रही है.

ऐसा ही हश्र अधिशासी अभियंता सुरेश चंद्र बुनकर के भ्रष्टाचार के 36 मामलों की जांच का भी हुआ. जल विद्युत निगम और विद्युत उत्पादन निगम के साझे चीफ इंजीनियर एसके गोयल को बुनकर के भ्रष्टाचार का तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत करना था, लेकिन उन्होंने इस निर्देश का पालन नहीं किया. गोयल से इस बारे में कोई पूछताछ भी नहीं की गई और खंडालकर ने बुनकर के भ्रष्टाचार की जांच को भी खड्‌डे में डाल दिया. बुनकर वही हैं जो विद्युत उत्पादन केंद्र माताटीला (ललितपुर) में आठ लाख 40 हजार पेड़ लगाने के घोटाले में नाम कमा चुके हैं. लाखों पेड़ कागज पर ही लगा दिए गए और सारे पेड़ कागज पर ही सूख भी गए. घोटाले की जांच भी सूख ही गई.

लब्बोलुबाव यह है कि उत्तर प्रदेश का ऊर्जा महकमा भ्रष्टाचार का केंद्र है. ऊर्जा महकमे के व्हिसिल ब्लोअर नंदलाल जायसवाल कहते हैं कि अरबों रुपये के घोटालों की जांच की जब ऐसी-तैसी कर दी जाती है तो करोड़ों रुपये के घोटालों की औकात ही क्या है. अनपरा-उन्नाव विद्युत पारेषण लाइन के विद्युत टावरों की पेंटिंग में हुए 50 अरब रुपये के घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश के बावजूद उस पर ग्रहण लगा दिया गया. अनपरा बिजलीघर से उत्पादित होने वाली बिजली को उन्नाव पारेषण उपकेन्द्र तक पहुंचाने के लिए बनाए गए टावरों की पाइलिंग और पेंटिंग में अरबों का घोटाला किया गया था. जायसवाल कहते हैं कि ऊर्जा क्षेत्र में घोटाले चरम पर हैं और बिजली की चोरी भी बेपनाह हो रही है, लेकिन राज्य सरकार इसे रोकने में अक्षम साबित हो रही है, क्योंकि सरकार से जुड़े नेता और नौकरशाह घोटालों में शामिल हैं.

घोटालों के कारण ही प्रदेश की बिजली व्यवस्था ठीक नहीं हो पा रही है. यूपी पावर कॉरपोरेशन व इससे जुड़े दूसरे निगमों में बीते वर्षों में खरबों रुपये के बड़े-बड़े घोटाले हुए. घोटालों की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार व सीबीआई से जांच कराने की मांग हुई, पर कुछ नहीं हुआ. अखिलेश सरकार के आने के पहले मायावती सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन में पांच हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था. उसके पहले मुलायम सिंह सरकार के दौरान राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में 1,600 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था. विद्युत नियामक आयोग की शह पर जेपी समूह समेत निजी बिजली घरानों को लाभ पहुंचाने में 30 हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला किया गया. इसी तरह राज्य जल विद्युत निगम में 750 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया. उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के मध्यांचल विद्युत वितरण निगम द्वारा तेलंगाना की वैरिगेट प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड नामक फर्जी कंपनी को ठेका देकर हजारों करोड़ का घोटाला किया गया.

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हिमाचल प्रदेश के खोदरी में जल विद्युत गृह बनवाने और उसका मालिकाना हक़ छोड़ने में कम से कम छह हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला हुआ. लेकिन इनमें से किसी भी मामले में सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. अगर निष्पक्ष जांच हुई होती तो उत्तर प्रदेश के ऊर्जा सेक्टर का घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला साबित हुआ होता. जिसमें आई नेता, नौकरशाह, इंजीनियर, जज, सरकारी वकील एवं सीबीके अधिकारी सब लिप्त पाए जाते. घोटाले की जांच कराने के बजाय अदालत घोटाला उजागर करने वाले व्हिसिल ब्लोअर नंदलाल जायसवाल के खिला़फ ही अदालत की अवमानना का मामला चला रही है. जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट की डबल बेंच ने यह फैसला दे रखा है कि पांच हज़ार करोड़ के घोटाले की जांच के बाद ही अवमानना मामले पर सुनवाई की जाएगी. लेकिन, उस आदेश को ताक पर रखकर कार्यवाही चलाई जा रही है. घोटाला और उसकी लीपापोती करने में वे सारी राजनीतिक पार्टियां शामिल हैं जो प्रदेश की सत्ता में रही हैं.

इसमें बहुजन समाज पार्टी सरकार और समाजवादी पार्टी सरकार की बराबर की मिलीभगत है. बसपा और सपा, दोनों ही जब-जब सत्ता में आती हैं, एक-दूसरे के घोटाले दबाने का काम करती हैं. विरोध-प्रतिरोध सब दिखावा है. बसपा सरकार के समय 30 हज़ार करोड़ रुपये का बिजली घोटाला हुआ था. उक्त घोटाले के दस्तावेजी प्रमाण लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा को दिए गए थे. लोकायुक्त ने उसे संज्ञान में भी लिया, लेकिन सत्ता के प्रभाव में कार्यवाही आगे नहीं बढ़ पाई. उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन ने पांच निजी पावर ट्रेडिंग कंपनियों के साथ द्विपक्षीय समझौता किया था. पावर कॉरपोरेशन ने उक्त कंपनियों से महंगी दर पर पांच हज़ार करोड़ यूनिट बिजली खरीदने का समझौता किया था. उस करार की शर्त थी कि सस्ती बिजली मिलने पर भी पावर कॉरपोरेशन कहीं और से बिजली नहीं खरीदेगा. इस खरीद से उत्तर प्रदेश को भीषण नुक़सान हुआ. इस तरह की विचित्र खरीद सपा सरकार में भी जारी है. बसपा सरकार से पहले सपा के शासनकाल में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में 1,600 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था. उस समय भी केवल जांच ही चली, नतीजा कुछ नहीं निकला.

सत्ता पर काबिज होने के बाद समाजवादी पार्टी सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि मायावती सरकार 25 हज़ार करोड़ रुपये का घाटा छोड़कर गई है. लेकिन, उन्होंने इस घाटे की वजह जानने या उसकी औपचारिक जांच कराने की ज़रूरत नहीं समझी. यहां तक कि राज्य विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष राजेश अवस्थी को हाईकोर्ट के आदेश से बर्खास्त होना पड़ा, फिर भी सरकार ने घोटाले को लेकर कोई क़ानूनी कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई. इसी तरह उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम में भी 750 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ, लेकिन उसमें लिप्त तत्कालीन सीएमडी आईएएस आलोक टंडन समेत अन्य अधिकारियों एवं अभियंताओं का कुछ नहीं बिगड़ा. सपा के मौजूदा शासनकाल में बिजली के बिलों में फर्जीवाड़ा करके हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला किए जाने का मामला भी सामने आया. घोटाले दर घोटाले जारी हैं. नेता दलीय सीमाएं लांघकर कमा रहे हैं और कमवा रहे हैं.

घोटालों में जब सरकार ही शामिल हो!

घोटालों में जब सरकार ही शामिल हो तो कोई क्या कर लेगा? सरकार चाहे मायावती की रही हो या उसके बाद अखिलेश यादव की, किसी को घोटाला रोकने की नहीं बल्कि घोटालेबाजों को फायदा पहुंचाकर अपना हित साधने में अधिक रुचि रही है. तभी तो अखिलेश सरकार ने ऐसी कंपनी को लघु जल विद्युत परियोजनाओं का ठेका दे दिया जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं था. चौथी दुनिया ने बीते दिनों यह खुलासा किया था कि लघु जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके  लेने वाली कंपनी ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड के दो निदेशक उत्तर प्रदेश में खनन के गोरखधंधे से जुड़े हैं. कंपनी के दो निदेशकों में से एक बुंदेलखंड में खनन माफियाराज चलाने वाले बाबू सिंह कुशवाहा से जुड़ा है, तो दूसरा समाजवादी पार्टी का नेता है और सपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुका है.

इन ताकतवर लोगों की कंपनी को ठेका पहले दे दिया गया, कंपनी बाद में अस्तित्व में आई. ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड के निदेशक दिलीप कुमार सिंह और सीरज ध्वज सिंह बांदा-बुंदेलखंड के खनन माफिया हैं. बाबू सिंह कुशवाहा का खनन साम्राज्य यही लोग चलाते हैं. सत्ता चाहे बसपा की हो या सपा की, चलती इन्हीं लोगों की है. बाबू सिंह कुशवाहा के खास सीरज ध्वज सिंह समाजवादी पार्टी के नेता हैं और सपा के टिकट पर वह बांदा से 2007 का विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. इस खबर का खुलासा होने के बावजूद सपा सरकार की खाल पर कोई सुगबुगाहट नहीं हुई.  प

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