ब्लैक वाटर अमेरिकी सेना का एक निजी संगठन है. यह लालची फर्म पूरी तरह अराजकता और अपराध की प्रतीक बन चुकी है. कंपनी के संचालक न जाने कितने इराकी और अ़फग़ानी नागरिकों को मौत के घाट उतार चुके हैं. इसके पूर्व कर्मचारी आरोप लगाते हैं कि ब्लैक वाटर का मालिक एरिक प्रिंस स्वयं को ईसाई धर्मयोद्धा मानता है, जिसका मक़सद दुनिया के ऩक्शे से मुसलमानों और इस्लामिक आस्था को मिटाना है. प्रिंस की कंपनी इराकियों को बर्बाद करने के लिए प्रोत्साहित करती है और अपने कर्मचारियों को इसके लिए पुरस्कृत भी करती है. ब्लैक वाटर के पांच कर्मचारियों को अमेरिका के संघीय न्यायालय के सामने ट्रायल के लिए पेश होना है. इन पर आरोप है कि इन्होंने 14 इराकियों की जघन्य हत्या की है, जबकि ब्लैक वाटर का छठा कर्मचारी पहले ही दोषी करार दिया जा चुका है. यह कंपनी अवैध हथियारों की तस्करी और कर चोरी के आरोपों का सामना कर रही है और इस पर युद्ध अपराधों के लिए मुक़दमा भी चल रहा है.
इससे यह निजी आर्मी आगबबूला है. अब तक इन सभी कार्रवाइयों के बावजूद इसके ख़िला़फ कोई फैसला नहीं लिया गया है. एक अख़बार में छपी विस्फोटक रिपोर्ट से कुछ बदलाव आ सकता है. अख़बार का यह आरोप है कि 2007 में 17 इराकियों के कुख्यात निसौर स्न्वायर नरसंहार के बाद ब्लैक वाटर के शीर्ष अधिकारियों ने लगभग एक मिलियन डॉलर के गुप्त भुगतान की व्यवस्था की, ताकि बगदाद की नाज़ुक हालत के बावजूद वे इराक में ही बने रहें. इराकियों ने घोषणा की कि कंपनी अब इराक में काम नहीं करेगी, इसके बावजूद ब्लैक वाटर दो साल तक इराक में जमी रही. इस सच्चाई ने इराकियों को स़िर्फ चौंकाया ही नहीं, बल्कि उनमें गुस्से की लहर दौड़ गई. दरअसल, ब्लैक वाटर आज भी 200 मिलियन डॉलर के अनुबंध पर इराक में बनी हुई है. इस अनुबंध को ओबामा प्रशासन द्वारा हाल ही में बढ़ाया गया. नई रिपोर्ट यदि सही है तो इससे ओबामा प्रशासन को यह स्पष्टीकरण देना होगा कि इतने लंबे समय तक यह कंपनी इराक में क्या कर रही है? प्रिंस और दूसरे लोगों के ख़िला़फ क्या क़ानूनी कार्रवाई हो सकती है, यह भी एक अहम मसला बन सकता है. प्रिंस पर आरोप है कि रिश्वत़खोरी योजना में वह भी शामिल था और उसके कनिष्ठ एवं कंपनी के प्रेसिडेंट गैरी जैक्सन ने जॉर्डन में ब्लैक वाटर के हब में रक़म स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था. उक्त सारी ख़बरें एक अख़बार में छपी हैं. इस तरह के क़दम अमेरिकी क़ानून में अवैध हैं. रिश्वत के लेनदेन के आरोप के समय एफबीआई की टीम बगदाद में एक आपराधिक घटना की जांच कर रही थी और इस जांच में नतीजे पर पहुंचने के लिए एफबीआई इराकी अधिकारियों, ख़ासकर इराकी गृह मंत्रालय पर निर्भर थी.
ब्लैक वाटर ने इस रिपोर्ट की तीव्र आलोचना करते हुए कहा कि यह पूरी तरह निराधार है. ब्लैक वाटर के पूर्व अधिकारी एवं सीआईए विशेषज्ञ को़फर ब्लैक ने उस अख़बार के आरोप को यह कहकर ख़ारिज़ कर दिया कि उसने रिश्वत के मसले पर प्रिंस की मुख़ालफत की थी. जैक्सन ने अख़बार को बताया कि आप कुछ भी लिखें, मुझे कुछ भी फर्क़ नहीं पड़ता. यह एक अविश्वसनीय तथ्य है कि ब्लैक वाटर के ख़िला़फ नरसंहार और दूसरे अपराधों के जितने आरोप लगे और इराकी राजनेताओं ने जितना विरोध किया, यह कंपनी उतने ही अधिक समय तक इस देश में बनी रही.
यह स़िर्फ मार्च 2009 तक की ही बात नहीं है, क्योंकि इराकी सरकार ने यह घोषणा की थी कि वह ब्लैक वाटर के ऑपरेशन के लाइसेंस को आगे नहीं बढ़ाएगी. मई में ब्लैक वाटर की जगह यह काम उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी ट्रिपल कैनोपी को दे दिया गया, लेकिन ब्लैक वाटर फिर भी इराक में बनी रही. कंपनी अमेरिकी सरकार के साथ कहीं और अपने बिज़नेस में लगी रही. आज ब्लैक वाटर अ़फग़ानिस्तान में विदेश विभाग, सीआईए और रक्षा विभाग के लिए काम कर रही है. वहां यह अमेरिकी अधिकारियों की रक्षा करती है और कांग्रेसी प्रतिनिधिमंडल को दिशा-निर्देश भी देती है.

पाकिस्तान में ब्लैक वाटर के प्रति लोगों की चिंता इस बात को लेकर बढ़ी है कि इसके ज़रिए अमेरिका उनके देश के मामले में हस्तक्षेप कर रहा है. अ़फवाहों का बाज़ार गर्म है कि ब्लैक वाटर के निशाने पर अब पाकिस्तानी हैं और इस मक़सद को पूरा करने के लिए उसे का़फी अधिक कमीशन दिया गया है. यह सारा मामला उस रिपोर्ट को लेकर शुरू हुआ, जिसके आधार पर ब्लैक वाटर (यह ज़ी के नाम से भी जानी जाती है) अमेरिका द्वारा आतंकवाद के ख़िला़फ चल रहे युद्ध को पाकिस्तान में अंजाम देता आ रहा है.

जिमी स्कैहिल ने अपनी हालिया किताब ब्लैक वाटर में दुनिया कीसबसे ताक़तवर कंपनी के उदय और पाकिस्तान में इसकी मौजूदगी का ज़िक्र किया है. वह इस ख़तरनाक कंपनी की कुख्यात पृष्ठभूमि के बारे में तो बात करते ही हैं, साथ ही अ़फग़ानिस्तान, इराक और पाकिस्तान में 2002 से ही इसकी मौजूदगी की भी चर्चा करते हैं. ब्लैक वाटर इन इलाक़ों में ड्रोन हमले में भी अहम किरदार निभा रही है.
यह आरोप ब्लैक वाटर को ईसाइयों के संगठन अल-क़ायदा के तौर पर चित्रित कर रहा है. यदि पाकिस्तान में ऐसे संगठनों की मौजूदगी से उत्तेजना फैलती है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है. अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक़, ब्लैक वाटर सीआईए के आतंक विरोधी अभियान में पाकिस्तान में सक्रिय तौर पर शामिल रही है. यह मुख्य तौर पर अपने गुप्त ठिकाने से पूरे देश में काम करती है. इसी तरह ब्लैक वाटर ड्रोन हमले में भी सेना की मदद कर रही है. ब्लैक वाटर के कॉन्ट्रैक्टर ने हेल़फायर मिसाइल और 500 पाउंड लेज़र बम से एयरक्राफ्ट को लैस किया, जिसका इस्तेमाल सीआईए अधिकारियों द्वारा किया गया.
सीआईए द्वारा ब्लैक वाटर का इस्तेमाल ड्रोन हमले में करना एक चौंकाने वाली ख़बर है. दहशत भरी इस ख़बर के अलावा न्यूज़ रिपोर्ट किसी भी आंतरिक ख़बर को उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं हो पाई है. आख़िरकार, पाकिस्तान में हो रहे ड्रोन हमले से संबंधित ख़बर कुछ दिन पहले ही सामने आई है. पाकिस्तान में ब्लैक वाटर का मिशन चाहे जिस हद तक हो, लेकिन पाक सरकार लंबे समय से इस बात को नकार रही है. संभवत: किन्हीं अटकलों के कारण ड्रोन हमले को लेकर पाकिस्तान सरकार और सीआईए के बीच समझौतों को कई बार ख़ारिज़ कर दिया गया है. पाकिस्तानी अधिकारियों ने न स़िर्फ आपसी समझौते किया, बल्कि जब तक हमला जारी रहा, उन्होंने हमले की आलोचना करना भी बंद कर दिया. इस वजह से न स़िर्फ अमेरिका विरोधी आवाज़ें उठीं, बल्कि इसने पाकिस्तान की एकता और संप्रभुता पर भी सवाल उठा दिया है. इसने पाकिस्तान सरकार और सेना द्वारा निर्णय लेने की क्षमता पर भी सवाल उठाना शुरू कर दिया है. दरअसल, हक़ीक़त यह है कि यदि पाकिस्तान सरकार अमेरिका से अपने समझौते को लगातार नकार रही है तो भी पाकिस्तानी अवाम इसे आसानी से मानने वाली नहीं है. डॉ. शीरन माज़री और हामिद मीर जैसे कुछ मीडियाकर्मियों ने लगातार इस मसले को उठाया है. अपने कार्यक्रमों के ज़रिए वे लोगों में जागरूकता लाने की कोशिश कर रहे हैं. इस तरह वे इन मामले में अपनी भूमिका बख़ूबी निभा रहे हैं.
अ़फवाहों का बाज़ार गर्म है कि आर्मी हेड क्वार्टर, पेशावर और हाल में रावलपिंडी मस्जिद में इसी संगठन ने हमले करवाए हैं. ब्लैक वाटर लोगों में तो तनाव फैला ही रही है, साथ ही यह कई प्रोविंस में भी सौहार्द्र बिगाड़ने का काम कर रही है. यही वह संगठन है, जिसने इराक में शिया और सुन्नी के बीच मतभेद पैदा किया. ईरान में जनदुल्लाह (पीपुल्स रेसिसटेंट मूवमेंट ऑ़फ ईरान) को भी इसी से मदद मिल रही है. अमेरिकी सरकार हर मुमकिन तरह से कुख्यात ब्लैक वाटर की मदद कर रही है. अमेरिकी सरकार की इस दोहरी नीति से मैं हैरान हूं. एक तऱफ अमेरिकी यह साबित कर रहे हैं कि वे पाकिस्तानी लोकतंत्र के साथ हैं, जबकि दूसरी ओर वे ही इसकी क़ब्र भी खोद रहे हैं. एक तऱफ वे पाकिस्तान की संप्रभुता और सम्मान की बात करते हैं, लोगों की इच्छाओं की बात करते हैं, लेकिन दूसरी ओर वे हर मुमकिन तरीक़े से पाकिस्तान की उसी संप्रभुता और सम्मान का चीरहरण करते हैं. पाकिस्तान सरकार के इस रवैये पर मेरा सख़्त एतराज़ है. अफवाह तो यह भी है कि सरकार भी उनसे मिली हुई है. सरकार अमेरिकी दूतावास के तौर पर इस्लामाबाद में दुश्मनों को पनाह दे रही है. यह महज़ एक दूतावास नहीं है, बल्कि वास्तव में पाकिस्तानियों की हत्या की योजना बनाने वाली जगह है.
यहां मैं आपको एक घटना बताना चाहती हूं, जिससे सरकार के निर्णय लेने की क्षमता का पता चलता है. मूसा हसन ईरानी हैं और वह शैराज़ में रहते हैं. वह एक व्यापारी थे और उन्होंने कुछ मशीनरी अमेरिका से ख़रीदी. वह बिज़नेस के सिलसिले में अमेरिका गए. वह जॉन एफ कैनेडी एयरपोर्ट पर तीन बजे सुबह उतरे. एयरपोर्ट अधिकारियों ने उन्हें रोका और उनकी जांच-पड़ताल करनी शुरू कर दी. अमेरिकी अधिकारी घंटों उनसे पूछताछ करते रहे और जब तक मूसा बेहोश होकर अस्पताल में भर्ती नहीं हो गए, उनसे पूछताछ चलती रही. उन्होंने 18 हज़ार डॉलर अस्पताल के बिल के तौर पर चुकाया. वह वापस ईरान लौट आए और यहां उन्होंने ऐसे भेदभावपूर्ण रवैये के लिए कोर्ट में एक याचिका दाख़िल की और मांग की कि अमेरिकी लोगों के साथ भी वही बर्ताव होना चाहिए, जैसा मुस्लिमों के साथ अमेरिका में होता है. उन्होंने कहा कि क्यों एक मुसलमान को फिंगर प्रिंट और दूसरी आधारहीन जानकारियां देने की ज़रूरत पड़ती है. साथ ही इसकी वजह से अपमान भी झेलना पड़ता है. अमेरिकी जब ईरान आते हैं तो उन्हें भी फिंगर प्रिंट और वैसी तमाम जानकारियां देनी चाहिए.
19 नवंबर 2006 को अमेरिकियों के लिए ईरान में यह एक क़ानून भी बन गया. सभी अमेरिकी जब ईरान में प्रवेश करते हैं तो फिंगर प्रिंट देना उनके लिए अनिवार्य हो जाता है. यही वह साहस और शक्ति है, जो निर्णय लेने के लिए होनी चाहिए. कुछ हिम्मत की ज़रूरत पाकिस्तान को भी है. पाकिस्तान सरकार को पाकिस्तानी लोगों की संप्रभुता और स्वाभिमान की रक्षा करनी चाहिए. उन्हें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि वे सरकार में हमारी सेवा के लिए हैं, न कि हम पर शासन करने के लिए. अमेरिका को भी हमारे मामले में दख़ल देना बंद करना चाहिए और उन्हें अपने काम से ही मतलब होना चाहिए.

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