bjpजैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जा रहा है, हर पार्टी का उल्टा दृष्टिकोण सामने आ रहा है. भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई. अभी तक जिन लोगों को यह वहम है कि भाजपा बहुत लोकप्रिय है और चुनाव जीतने जा रही है, तो कार्यकारिणी के भाषण के बाद सर्वविदित हो जाना चाहिए कि भाजपा खत्म होने के कगार पर आ गई है. पहली बार तो राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का चयन ही गलत था. अमित शाह भाजपा की फेहरिस्त में 826वे नंबर पर थे.

उनको मोदी जी ने अध्यक्ष बना दिया. पहले नंबर पर आने वाले 10-15 नेताओं को अध्यक्ष नहीं बनाया, लेकिन अमित शाह को बना दिया. क्यो बना दिया? अब घोषणा करते हैं कि अमित शाह के नेतृत्व में चुनाव होगा. चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नहीं होगा, क्यों? क्योंकि भाजपा को डर है कि अब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव हारने वाले हैं. इसलिए बलि का बकरा अमित शाह को बनाओ. अब अमित शाह का बयान सुनिए. वे कहते हैं, ‘कांग्रेस और भाजपा में यही फर्क है कि कांग्रेस में प्रधानमंत्री, पार्टी की सुनता है लेकिन हमारे यहां पार्टी प्रधानमंत्री को सुनती है.’ वाह, क्या नया नियम पालन कर रहे हैं आप. मंत्री पार्टी अप्वांइट करती है, मुख्यमंत्री हो या प्रधानमंत्री हो, पार्टी चुनती है. आपको पता है कि आप क्या बोल रहे हैं? आप तो कांग्रेस को क्रेडिट दे रहे हैं. कांग्रेस में प्रधानमंत्री पार्टी की सुनता है, यानि पार्टी सर्वोपरि है.

यह तो लोकतांत्रिक पद्धति है. एक तरफ आप कह रहे हैं कि हमारे यहां पार्टी, मोदी जी की सुनती है और एक तरफ आप कहते हैं कि चुनाव अमित शाह के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. मन तो बना लीजिए कि करना क्या है. आपको समझ ही नहीं आ रहा है कि क्या बोल रहे हैं, क्या कर रहे हैं? आपने निर्मला सीतारमण को रक्षा मंत्री बना दिया. वे रक्षा मंत्री हैं और बयान रोज पार्टी के लिए देती हैं. उधर राष्ट्रीय कार्यकारिणी चल रही थी और उसमें भी वे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही थीं. आप हैं कौन? रक्षा मंत्रालय आपसे संभल नहीं रहा है, राफेल डील का जवाब नहीं दे पा रही हैं आप.

पार्टी पर एक मेहरबानी कर सकती हैं आप. आप अपना मुंह बंद रखिए. लेकिन आप ऐसा नहीं किरेंगी. निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी जैसे लोग आपकी पार्टी को खत्म करके जाएंगे. कांग्रेस जीते या हारे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. भाजपा दोबारा सरकार बनाए या न बनाए, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. विश्लेषण ईमानदारी से होना चाहिए. आपलोग विश्लेषण में नमक मिला रहे हैं. अमित शाह झूठ के अलावा कुछ बोल ही नहीं सकते. उन्होंने कहा कि विपक्षी एकता एक बडा झूठ है. पॉलिटिकल शब्दावली समझ लीजिए. पॉलिटिक्स में ऐसा नहीं होता है.

यूनिटी चरमरा रही है,ये अलग बात है कि यूनिटी नहीं हो पाएगी. मायावती और अखिलेश मिलकर आपको फूलपुर, गोरखपुर में हरा दिए, जो गोरखपुर हिंदू गढ़ था, लेकिन आपको होश ही नहीं है. सच्चाई क्या है? चुनाव आयोग कहता है कि भाजपा नहीं चाहती है कि बैलेट पेपर पर चुनाव हो, जबकि सारी पार्टियां चाहती हैं कि बैलेट पेपर पर चुनाव हो. क्यों? अगर आप इतने लोकप्रिय हैं, जो कि आप हैं, तो आप बैलेट पेपर पर चुनाव क्यों नहीं कराते हैं. चुनाव परिणाम चार दिन बाद आए तो आए. पांच साल आपने राज किया, पांच दिन और करेंगे. मिथ्या से दूर हटिए. राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दिए गए भाषण पर मेरी राय है कि भाजपा और मोदी जी ने वाइंडिंग प्रोसेस (झोला समेटने का काम) शुरू कर दिया है. अमित शाह को बलि का बकरा बना दिया गया है. नरेंद्र मोदी को बचाओ, गाली देना तो भाजपा वालों का धर्म है.

भाजपा न्यू इंडिया की बात करती है. यह ट्‌वीटर की दुनिया है, सोशल मीडिया की दुनिया है. आज का दिन नौजवानों की दुनिया है. मुझे खुशी है इस बात की कि मोहन भागवत ने अमेरिका में हिंदू कॉन्फ्रेंस में कहा है कि हिंदू एक नहीं हो सकते, क्योंकि हिंदू शेर हैं और शेर कभी एक नहीं हो सकते. कुत्ते झुंड में घुमते हैं. शब्दों का चयन घटिया है. मोहन भागवत जिस पद पर बैठते हैं, उस पद की गरिमा गिरा रहे हैं. एक उर्दू शेर है कि ‘एक ही उल्लू काफी है, बर्बाद गुलिस्तां करने को, हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा.’ अब कोई किसी के कंट्रोल में नहीं है. यूपी के एक मंत्री कहते हैं कि मंदिर जरूर बनेगा.

पत्रकार ने पूछ लिया कि आपको तो पता है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है, तो कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट भी हमारी है. जल्दी से मीटिंग बुलाइए मोहन भागवत जी. आप मोदी जी, अमित शाह, आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी और सीनियर लोगों के साथ बैठ कर तय कीजिए कि हमें देश को कहां ले जाना है. यह भी तय कर लीजिए कि हमें लोकतंत्र खत्म करके जाना है या बचा कर रखना है. जब जेएनयू के स्टूडेंट कहते हैं कि हम देश के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे, तो आप क्यों नहीं कर सकते हैं? हर आदमी स्वतंत्र है. आप यह बयान नहीं दे सकते हैं कि किसी ने कह दिया देश के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे तो देश द्रोही है और हम अपने आचरण से देश को तोड़ें तो हम देशप्रेमी हैं. यह नहीं चलेगा.

साढ़े चार साल हो गए आपको. क्या किया आपने? क्या होता है देश में जब कोई आदमी प्रधानमंत्री बनता है. प्रधानमंत्री बन गए आप. एक आर्थिक स्थिति, एक सामाजिक वातावरण और एक राजनीतिक स्थिति. यह चुनाव के बाद भी कायम है. जो आर्थिक स्थिति दस साल पहले मनमोहन सिंह के राज में थी, वह आपके साढ़े चार साल में भी बिल्कुल सुधरी नहीं है. लोग बहुत कुछ कहते हैं. आप डॉलर को 40 पर लाने वाले थे, हर व्यक्ति के अकाउंट में 15 लाख रुपए देने वाले थे. अब इन सब बातों में जाना व्यर्थ है. लोग आपपर हंस रहे हैं. बाबा रामदेव आपके सबसे बड़े सपोर्टर थे, वे कहते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी से मेरा धंधा डूब गया. बाबाओं को धंधा करना चाहिए या नहीं, एक अलग बहस का विषय है, पर आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. बिगाड़ क्या हुआ वो आम आदमी बताएगा. 300 का सिलेंडर 800 का है, पेट्रोल 90 रुपए का है, डीजल 70 रुपए का है. हर चीज में महंगाई. खान-पान की जो चीजें हैं, सभी में तेजी है. आर्थिक स्थिति आपसे संभली नहीं. आपने उसको बर्बाद कर दिया. ऐसा बहुत सारे लोगों का कहना है.

कांग्रेस पार्टी यही कहती है. चिदंबरम साहब हर हफ्ते एक लेख लिखते हैं और तर्क संगत बात करते हैं कि आपने कितना नुकसान किया. मैं समझता हूं कि कांग्रेस ने 10 साल में और आपने पांच साल में जो आर्थिक स्थिति खराब की उसमें कोई फर्क नहीं है. वो भी अमेरिका परस्त हैं और आप भी अमेरिका परस्त हैं. आप भी समझते हैं कि ट्रम्प साहब का फोन आते ही खड़े हो जाना चाहिए. फर्क क्या है कांग्रेस और भाजपा में? लोगों को आप विकल्प नहीं दे रहे हैं. आर्थिक स्थिति के संदर्भ में बात करें, तो कांग्रेस और आपमें कोई फर्क नहीं है. प्रधानमंत्री खुद बयान देते हैं कि एनपीए से बैंक को नुकसान हो रहा है, कांग्रेस के समय मंत्री फोन करते थे बैंकों को और तुरंत लोन जारी हो जाता था. चाहे वो फेयर लोन हो या अनफेयर लोन हो. सही बोल रहे हैं आप. लेेकिन क्या यह आपके राज में नहीं होता.

क्यों नहीं होता? इसलिए कि आप भ्रष्ट नहीं हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आपके मंत्रियों के पास पावर नहीं है. आपके वित्त मंत्री फोन करेंगे तो भी लोन नहीं देंगे बैंक वाले. वे जानते हैं कि वित्त मंत्री के हाथ में नहीं, पावर तो नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के हाथ में है. अमित शाह फोन करें तो लोन मिलता है. झूठा लोन दिया है इन्होंने. मेरे पास फेहरिश्त है उसकी, वह भी एनपीए होने वाले हैं. आज नहीं तो कल. इसलिए इस हम्माम में हम सब नंगे हैं. अटल जी का डायलॉग है ये. समझिए वो दस साल राज किए, आप पांच साल राज किए और फिर राज बदलने वाला है. नियम एक समान रहने चाहिए. एक दूसरे की पैंट खोलने से पब्लिक में विश्वसनियता नहीं बढ़ती है.

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