जीतनराम मांझी का साथ कांग्रेस पार्टी सोने पर सुहागा मान रही है. कांग्रेस का अब पूरा ध्यान एनडीए के विभाजन पर है. कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि सीटों का बंटवारा एनडीए के लिए आसान नहीं है. अगर एनडीए का रास्ता कठिन हो गया, तो फिर कांग्रेस के लिए नया रास्ता तैयार हो जाएगा. रालोसपा या लोजपा में से कोई भी अगर महागठबंधन का साथी बन जाता है, तो फिर बिहार में नरेंद्र मोदी के रथ को आगे बढ़ाने में एनडीए नेताओं के पसीने छूट जाएंगे. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कौकव कादरी बार-बार दावा कर रहे हैं कि एनडीए के कई बड़े नेता हमारे संपर्क में हैं. श्री कादरी का दावा तो यहां तक है कि एनडीए के कम से कम छह मौजूदा सांसद कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं. तेजस्वी यादव भी रालोसपा और लोजपा को महागठबंधन में आने का न्योता दे रहे हैं. कहने का अर्थ यह है कि कांग्रेस अभी अतिउत्साह में है. जब से शक्ति सिंह गोहिल नए प्रभारी बनकर आए हैं, तभी से कांग्रेसियों को लगने लगा है कि अब पार्टी अपने पुराने गौरव को हासिल करने की यात्रा शुरू करने ही वाली है. श्री गोहिल ने आते ही यह तय किया कि जो पुराने कांग्रेसी किसी न किसी वजह से रूठ कर दूसरे दलों में चले गए हैं, उन्हें हर हाल में पार्टी से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा. श्री गोहिल के इस प्रयास का काफी अच्छा असर पार्टी पर पड़ रहा है. कांग्रेस के लिहाज से एक और अच्छी बात यह हुई कि पार्टी ने राजद को लेकर अपना स्टैंड एकदम साफ कर दिया है. राहुल गांधी के स्तर पर अब यह तय हो गया है कि राजद का साथ नहीं छोड़ा जाएगा. लालू प्रसाद को पार्टी ने अपना स्वाभाविक मित्र बताया है. राहुल गांधी खुद लालू प्रसाद से अस्पताल में मिलने गए. लालू प्रसाद को लेकर राहुल के दिल में जो कड़वाहट थी उसे दूर किया गया और नतीजा यह हुआ कि तेजस्वी यादव से महीने में एक से दो बार राहुल गांधी की मुलाकात हो रही है. दोनों नेताओं के बीच बेहतर तालमेल है और युवा होने के नाते दोनों की सोच में भी सामंजस्य बैठ रहा है. यह तेजस्वी यादव का ही आग्रह था कि बिहार में सीटों का बंटवारा जल्द से जल्द कर लिया जाए, ताकि लोकसभा चुनाव के लिए बेहतर तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल सके. राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव की भावना का सम्मान करते हुए बिहार के अपने सभी विधायकों और वरिष्ठ नेताओं की दिल्ली में बैठक बुलाई और उनकी राय जानने की कोशिश की. जानकार सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी ने बिहार के कांग्रेसी नेताओं को साफ कर दिया कि सीटों के बंटवारे को लेकर बिना वजह कोई बयानबाजी नहीं करनी है और राजद के साथ तालमेल के साथ चुनावी समर में उतरना है. अगर इसमें कोई नए सहयोगी आते हैं, तो इस हिसाब से सीटों की संख्या पर विचार किया जाएगा. राहुल गांधी ने साफ किया कि सीटों के बंटवारे पर पार्टी बहुत ही व्यावहारिक रवैया अपनाएगी और अपने सहयोगी दलों की भावना और ताकत का पूरा सम्मान करेगी. बदले में कांग्रेस भी यही चाहेगी कि इसके सहयोगी दल कांग्रेस की विरासत, भावना और ताकत का पूरा सम्मान करें. चूंकि चुनाव लोकसभा का होना है, इसलिए कांग्रेस अपने सहयोगी दलों से अपेक्षा रखेगी कि वे सीटों के बंटवारे को लेकर पार्टी के प्रति लचीला रुख रखें.

अध्यक्ष का इंतजार

पुरानी गलतियों से सबक सीखते हुए कांग्रेस ने इस बार काफी पहले से ही अपनी तैयारियों को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है. राहुल गांधी के साथ दिल्ली में बैठक इसी रणनीति का हिस्सा था. राहुल गांधी ने कहा भी है कि बिहार कांग्रेस को जल्द ही स्थायी अध्यक्ष दिया जाएगा. मौटे तौर पर यह तय हुआ है कि अध्यक्ष पद किसी सवर्ण को ही दिया जाएगा, ताकि इस वर्ग को यह संदेश जा सके कि कांग्रेस इनके लिए बहुत कुछ करने वाली है. इस दौड़ में अखिलेश सिंह, प्रेमचंद्र मिश्रा, मदन मोहन झा और अनिल शर्मा सबसे आगे चल रहे हैं. यह तय है कि राहुल गांधी जल्द ही इस मामले में फैसला कर देंगे. बिहार कांग्रेस के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि तेजस्वी यादव और राहुल गांधी के बीच सीधा संवाद हो रहा है. इसलिए कहीं भी भ्रम की गुंजाइश नहीं बन रही है. पहले भाया मीडिया बात होती थी और अर्थ का अनर्थ हो जा रहा था, लेकिन अब तस्वीर उल्टी है. राहुल और तेजस्वी मिलते हैं और आमने सामने बात होती है. इसलिए कहा जा रहा है कि सीटों के बंटवारे में कोई दिक्कत नहीं आएगी. राहुल गांधी को भी राष्ट्रीय राजनीति करनी है और तेजस्वी को भी खुद को बिहार  में साबित करना है, तो ऐसे में दो-तीन सीटों का पेंच कहीं बाधक नहीं बनेगा. सूत्र बताते हैं कि सीटों का बंटवारा होगा पर इसे अभी सार्वजनिक नहीं किया जाएगा. जिसे जो सीट मिलेगी उस पर उस दल की  तैयारी शुरू हो जाएगी और उचित समय पर उम्मीदवारों के नामों का एलान कर दिया जाएगा. ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि अभी एनडीए में टूट की संभावना बनी हुई है. अगर रालोसपा या लोजपा में से कोई दल महागठबंधन की तरफ आता है, तो फिर नए सिरे से सीटों का बंटवारा करना होगा. इसलिए फिलहाल सीटों की संख्या और उम्मीदवारों के नाम को गुप्त ही रखा जाएगा. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस की गाड़ी अभी सही लाइन में दौड़ रही है और भटकाव नहीं हुआ तो कांग्रेस को अच्छी चुनावी जीत हासिल हो सकती है.

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