यह बैरुत का भूमध्य सागर के किनारे का पोर्ट है जहा 4 अगस्त के दिन बहुत बडा विस्फोट हुआ और जिसमे 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई  और हजारो की संख्या में जख्मी हुए हैं इस विस्फोट की तीव्रता इतनी ज्यादा थी बैरुत के कई किलोमीटर की दूरी पर स्थित मकानो के शीशे टुटे है !

यह वही बैरुत बंदरगाह है जहा फिलिस्तीन मुक्ति के लिए 2012 के मार्च महीन के प्रथम सप्ताह में हम भारत से 55 प्रतिनिधि मंडल पकिस्तान के वाघा बॉर्डर से प्रवेश कर के लाहौर 10 मार्च को वहासे बाय रोड मुल्तान,सक्कर सिंध हैदराबाद और कराची और कराची से छोटी सी फ्लाईट से ईरान के झायदान लेकिन हमारा लक था की वह फ्लाईट बिचमे 45 मिनटों के लिए क़्वेट्टा पकिस्तान बलूचिस्तान की राजधानिमे एक स्टॉप ओवर था तो मैंने एयर होस्तेस से बात कर के क़्वेट्टा की जमिन पर उतर कर चारो तरफ देखा तो हैरान रह गया क्यौंकि हर 10 फीट पर एक जवान हाथमे एके 47 लेकर खड़े हैं और बीच बीच में टेन्क और दिवारपर टॉवर हर कुछ फासले पर वहा भी तोपे लेकर मुस्तैद! तो मैंने ग्राऊंड स्टाफ को पुछा कि यह आर्मी एयरपोर्ट है ? तो उन्होने बताया कि सिविलियन एयरपोर्ट है लेकिन बलूचिस्तान की अलगाववादी हरकत के कारण यह सब इन्तजाम है !
ईरानी बलूचिस्तान जो पकिस्तान के और दक्षिणी तरफ अफगान बलूचिस्तान के त्रिकोण में बसा हुआ है !और तिनो बलूच अपने स्वतंत्र बलिचीस्थान की मांग कर रहे हैं ! और हमसे बलूचीस्थान झिन्दाबाद के नारे लगाने की बात कही ! और हमने उनकी बात का सम्मान किया !
वहा से रोड से बाम ,खौम होते हुए तेहरान मे रात को ठहरे और दूसरे दिन सुबह अहमद निजाद इराणके राष्ट्र पति से उनके घर पर मिलने के लिए गए फिर आयातोल्लह खोमेनी के घर पर भी गए दोनो मकानो देखकर लगता नहीं कि यह लोग राष्ट्र के इतने बड़े नेता हैं ! हमारे देश के किसी भी मध्य वर्ग के परिवारों जैसे मकानो में ये दोनों रहे हैं ! हालाकि दुनिया के तेल उत्पाद में ईरान का हिस्सा काफी ज्यादा है इसलिये इराण के लोगों का जीवन स्तर काफी ठीक है और शहर गाव की व्यवस्था भारत की तुलना में बहुत ही सुंदर और साफ सुथरा और करिनेसे हैं ! गन्दगी अव्यवस्था कहिपर भी नजर नहीं आई ! रोड बहुत ही अच्छे है ! लेकिन वहा से दियार बाकिर से ईरान की बॉर्डर क्रॉस कर  तुर्कस्थानके इस्तम्बूल के एक मस्जिद में ठहरे उसके पहले इस्तांबुल में प्रवेश करते हुए एक पुलके इस्पार लिखा था वेल्कम टू यूरोप और परलि तरफ से देखा तो वेल कम आशिया ! यह मेरे जीवन का पहला मौका था कि मैंने एक खण्ड से दुसरे खंड़को बाय रोड क्रॉस किया था और टर्की के मशहूर सूफी संत रूमी के दरगाह वाले कोन्या से 11 मार्च की रात को खाना खाने के बाद बस से निकले और मर्सेल नामके एक छोटे शहर के बंदरगाह पर सुबह पहुचे और श्याम के समय एक स्टीमर पर बैठे तो सुबह सुबह सूरज निकलनेके पहले इसी बैरुत के बंदरगाह पर पहुँच कर लेबनिज जजमानोकी राह देख रहे हैं ! समय चला जाता रहा लेकिन नाही हमारे जजमान आ रहे थे और नाही हम पचाससे ज्यादा लोग भारत और ईरान के स्टीमर पर ही पडे हुए दोपहर हो रही फिर श्याम लेकिन हमे स्टीमरसे जमिन पर भी पैर रखने की इजाजत नहीं दी जा रही थी तिन चार लेबनिज सिक्यूरिटीज के जवान हथोमे मशीनगन लिए जहाज के पास निचे जमिन पर पहरा दे रहे थे !


हालाँकि नास्ते और खानेपीने की व्यवस्था  समय समय पर स्टीमर पर चढाए जा रहे थे ! रात मे हम लोगों का धीरज समाप्त हो गया तो डेक पर आकर नारे लगाने और विरोध प्रदर्शन किया गया पर कुछ नहीं हुआ अखिर सबेरे याने लगभग 40 घंटे बाद भारत की एम्बेसी के लोग आये और हमारी उतारने की शुरुआत हुई ! और किसी होटल में उतार कर दुसरे दिन सुबह 13 मार्च को  लेबनान-इस्राइल सीमा पर एक छोटे पहाड पर  ले गये थे और वह भी क्या गड़बड़ हुई अचानक दो गुटों के बीच कुछ कहा सुनी शुरु हुई और एक दूसरे पर पिस्तौल तान कर अरबी में वादविवाद चल रहा था हमारे तो कुछ भी पल्ले नहीं पड रहा था !
मै काफी हैंरान होकर खुर्सी पर सर पकड़कर बैठा था लेकिन अचानक मुझे लगा की अगर यही पर गोलीकांड होकर कुछ होनेके पहले हस्तक्षेप करना चाहिए अन्यथा खून खराबे में पूरा कार्यक्रम बर्बाद हो सकता है! तो मै अपनी खुर्सिसे उठकर जो दो गुट एक दुसरे पर पिस्तौल ताने एक दूसरे के सामने खड़े थे मैने दोनो तरफ की पिस्तौल मेरे दोनो हाथोसे पकड़कर जोरसे कहा की हमारे इस कार्यक्रम के कवरेज करने हेतु काफी मीडिया के लोग केमरे लेकर खड़े हैं और हम इस्राइल के खिलाफ चल रहे फिलिस्तीन मुक्ति को समर्थन देने के लिए यहाँ पर इतने सारे देश के लोग आये हैं और आप लोग आपस मे ही झगड रहे हो ! पूरे विश्व में क्या मेसेज जायेगा ?
मेरी आप दोनों गुटों (हेज्बुल्ला और हमास के थे!) से हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि इस तरह आपस मे झगड कर इस कार्यक्रम को बर्बाद कर रहे हो ! हम लोग अपने देश से निकल कर लगभग एक माह हो गया है और वापसी में क्या मेसेज लेकर जायेंगे ?
और यही लेबनान है जहा पर विश्व प्रसिद्ध फिलोसॉफर,कवी,और साहित्यिक,पेंटर! रवीद्रनाथ टेगोर के जैसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी!खलील ज़िब्रान बशारी लेबनान में  6 जनवरी 1883 में  पैदा हुये थे ! और बादमे भले अमेरिकन के रुपमे 10 एप्रिल 1931में न्युयोर्क में म्रुत्यु हुई है ! लेकिन उनके लेखन में सबसे ज्यादा असर अपनी जन्मभूमि लेबनान का ही असर रहा है ! प्रॉफेट 1923 में याने उम्र के 40 वे साल में पदार्पण करते हुए लिखी थी ! आनेवाले 2023 को एक सौ साल हो रहा है ! जैसी लगभग विश्व की हर भाषा में अनुवादित पुस्तक हो या उनकी कहनी कविताओका लेखनमे लेबनान के परिवेश का असर अधिक है !


लेबनान बहुत ही खुबसूरत देश हैं और मुसलमान,ख्रिस्ति धर्म के लोग मुख्य रूप से हैं ! लेकिन अभि कुछ समय से अमेरिकन हस्तक्षेप के कारण वहा पर बहुत ही अशांति का माहौल बना हुआ है वहां के करंसी का दाम काफी कम हो गया है इसलिये लेबनान बहुत बडे संकट के दौर से गुजर रहा है और ऊपर से यह विस्फोट !  जिसकी आवाज बगल्के साईप्रस नामके छोटे से देश तक पाहूची हैं और लेबनान की मुश्किलें और बढ़ गई है ! असल में जब तक फिलिस्तीन की समस्या का समाधान नहीं होगा तब तक इस भूप्रदेशमे इस तरह की घटनाओं का अंत नहीं हो सकता है ! लेकिन अमेरिकन और कुछ योरोपियन मुल्को की अर्थव्यवस्था के कारण दुनियाकी शांती और सद्भाव के साथ खिलवाड़ जारी रहेगा  यह भी वास्तविक स्थिति हैं !

तब कही जाकर मामला शांत हुआ और इस्राइल के खिलाफ प्रदर्शन करने के बाद शाम को बैरुत के होटल में वापस आये ! क्यौंकि दूसरे दिन सुबह सुबह सभी को एयरपोर्ट जाना था और इस तरह लेटेस्ट  बैरुत या लेबनान की यात्रा इस विस्फोट के कारण याद आयी ! मार्च 2012 का महीना जिसे आज लगभग साडे आठ साल हो गए हैं ! यह वही पोर्ट है जहापर हम लोगों को 40 घंटे से ज्यादा समय रिफ्यूजी जैसे पडे रहना पड़ा था उसकी वजह कुछ कम्मुनिकेशन की गेपकी वजह से यह अनुभव मिला ! जिसे मैं जिन्दगी भर भूल नहीं सकता क्यौंकि वह 40-45 घंटे मेरे जीवनकाल के सबसे मंथन के क्षण थे 40 घंटो मे एक घंटा भी नहीं सो सका था और मेरे जेहन में इस पृथ्वी पर मानव सभ्यता के सफर में राष्ट्र नामक संकल्पना का पैदा होना और कागज कलम से रेखाये खिचकर यह देश तुम्हरा और यह हमारा की बिमारी से अबतक कितने युद्घ हुये हैं और कितनी जाने गई है ? धर्म और देश के नाम पर जितने लोग मारे गए उतने किसी और कारण से नही मरे होंगे ! और इसीलिए बैरुत एयरपोर्ट से हमारी फ्लाईट मुम्बई के लिए बदलनेके लिए कतार एयरलाइंस के दोहा एयरपोर्ट पर काफी समय रहे थे इसलिये टाईमपास करते देखा की एक किताबें की दुकान में क्रूसेडस पर किताब दिखी सो मैने उस पूरे प्रवास के दौरान सिर्फ कोई खरीददारि की तो कराची में जेरूसलम नामकी किताब और दोहा मे विमानतल पर क्रूसेडस!1095 से 1492 तक याने लगभग 400 साल का मध्ययुगीन काल धर्म को लेकर युद्घ में चले जाने का मध्ययुग का समय ! और ये वही समय है जब भारत की तरफ भी मुह्हमद घोरी ने दोबारा कोशिश कर पृथ्वीराज चौहान को मारकर मुल्तान और पंजाब से लेकर दिल्ली तक पाहूचनेकी कोशिश की है ! हांलाकि इसके पहले और 711 में मुहम्मद बीन कासिमने बलूचिस्तान,सिंध और पंजाब के मुल्तान तक पाहूच चुका था लेकिन इसी क्रूसड़के समय 1024 में मुहम्मद गाझी ने लगातार कोशिश करते हुए भारत में अपने कब्जेकी नीव रखते हुए सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया था जो अंग्रेजोने प्लासी की लडाई में सिराजुद्दौला को 7 जुलाई 1757 को पराजित कर के अपना राज लगभग 200 साल तक कायम किया याने 1000 साल का भारत की गुलामी का दिख रहा है ! यह सब बात 40-45 घंटो के बैरुत पोर्ट के स्टीमर पर ही पडे पडे मेरे जहन में आ रही थी जिसकी थोडी झलक 4 अगस्त के बैरुत के विस्फोट की वजह से आज याद आ रही है ! जो आप लोगों से शेयर कर रहा हूँ !

हालाकि मै 2010 के दिसंबर में भी लेबनान सिरिया की राजधानि दमास्कससे  आया था और वह यात्रा काफी अच्छी-खासी और सम्मान पूर्वक थी ! उस समय भी बैरुत किसिके फ्लैट में एक रात रुक कर वापस सिरिया दमास्कस लौट गया था और उस समय का सिरिया बहुत ही सुंदर इमारते थी जो अब इसिस्के युध्द के कारण लगभग खण्डहर में तब्दील हो गया है!और कई सांस्कृतिक विरासत के जगह जाने का मौका मिला है दुनिया की पहली लिपियों में से एक उगारीटिक आधुनिक नाम रास शमरा नामकी जगह के खण्डहरो में घूम रहा था तो मेरे शरीर पर रौंगटे खड़े हो गये थे ! विश्व के सभ्यता और संस्कृति से जुड़े यह भूमि पर घूमकर मै बहुत ही अभिभूत हूँ ! लेकिन सत्ता के मद में शामिल होने के कारण आज बाबिलोन और मेसोपोटामिया के ये आजकल के नये नाम वह भी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप और अमेरिका ने आपस मे बंदरबाट करते हुए एक इराक तो किसीको सिरिया जॉर्डन,लेबनान इस्राइल इत्यादि नामकरण कर दिया है ! और अब होम्स,अलेप्पो,दमास्कस,और एक मात्र बंदरगाह का शहर लताकिया सभी बहुत ही अच्छे थे जो आज तथाकथित इसिस की लडाईने लगभग पुरा खण्डहर में तब्दील कर दिया है!और बर्बादियों के राह पर चल रहा है !


और 4 अगस्त का बैरुत पोर्ट की घटना उसी कडी का पार्ट है ! आज ही एक झियोनीस्ट इस्राइल के आदमी का वक्तव्य भी आया है कि हम बदला लेना जानते हैं ! ईरान,इराक,सिरिया,कुर्दिस्तान,लेबनान,और फिलिस्तीन के दोनो तरफ गाझा और वेस्ट बैक या रमल्ला वाले हिस्से में आये दिन कुछ ना कुछ तो होते रहता है ! और इस पूरे कांड में इस्रइल की मोसाद और अमेरिकन एफ बी आई और सी आई ए के हाथ हैं अन्यथा आई एस आई की कोई औकात नहीं कि वह पारंमपारिक युध्द कर सके 1972 में पैदा हुआ आबू बकर बागदादी सिर्फ 48 साल की उम्र का बगदाद के एक साधरण परिवार में पैदा हुआ और आज 15-20 साल के भीतर अल कायदा के बाद इसिस बनाकर पूरे उस प्रदेश में बकायदा पर्यायी सरकार चला रहा है  और रोजका 10 हजार टेन्कर तेल किसको बेच रहा!और इतने अत्याधुनिक हथियार उसको कौन दे रहा है ? 50 हजार से एक लाख की सेना पाँच साल से भी ज्यादा समय से लेकर तथाकथित स्वघोषित खलीफा अपने आपको घोषित कर वहाबी इस्लाम को लागु करने के लिए दबीक नामके अपनी पत्रिका में क्या क्या फतवे जारी करने का काम कर रहा है यह सब किसकी शहपर ?

1916 मे जब पहला तेल का कुआँ ईरान के आबादांन में मिला और पहले विश्व युद्ध के कारण तेल की आवस्यकता के लिए इस पूरे इस्लाम के प्रदेशकी फितरत पस्चिमी देशो के हथोमे चली गई और 1948 में इस्रइल की निर्मिती भी इसी लिए की गई है ! और उस बित्ते भर के इस्रइल को हर तरह की मदद अमेरिका,इंग्लंड,जैसे देश कर रहे हैं और अल कायदा उसी कडी का पार्ट था अबतक !

डॉ सुरेश खैरनार ,अध्यक्ष भारत फिलिस्तीन सॉलिड्यारिटी फोरम,

7 अगस्त 2020,नागपुर

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