dhobhi-ghatबनारस वैसा ही है जैसा था

हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना जन्मदिन अपने लोकसभा क्षेत्र बनारस में मनाया. रिटर्न गिफ्ट के तौर पर उन्होंने बनारस के लिए 550 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की योजनाएं लोकार्पित की. लोकार्पण के दौरान उन तमाम कामों का जिक्र किया जो उन्होंने बनारस के लिए किए हैं. उन्होंने वक्तव्य में कहा कि वे चाहते हैं बनारस में जो भी यात्री आए, वे विश्व में बनारस के ब्रांड एम्बेसडर बनकर जाए और विश्व को बताए कि काशी क्या नगरी है. खबर के पीछे की खबर ये है कि बाहर का दबाव छोड़िए, देश का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर का एक परिवार काशी दर्शन के लिए आता है और काशी के बारे में वो क्या कहता है? कहता है कि बहुत गंदगी है. जैसी उम्मीद थी, वैसा कुछ भी नहीं लगा. बाकी यह एक धार्मिक क्षेत्र है, उस हिसाब से सोचा नहीं था किइतनी गंदगी हो सकती है.

विश्वनाथ मंदिर की व्यवस्था के साथ-साथ बनारस की सड़क भी बहुत खराब है. यहां पर मोदी जी को थोड़ा तोड़-फोड़ करनी चाहिए. इस हिसाब से देखा जाए तो इंदौर एक नंबर है. बनारस को देखकर गर्व हो रहा है इंदौर पर. अगर इंदौर को देखा जाए तो मोदी जी से बहुत खुश हैं. लेकिन यहां देखने के बाद ऐसा लगा कि यहां तो कुछ भी नहीं है. योगी और मोदी के एक होते हुए भी यहां पर ऐसा हाल है. मैंने सुना था कि यूपी की हालात खराब है, अब आंखों से देखा तो यकीन हुआ कि यहां बहुत खराब स्थिति है. जबकि सुना था कि काशी बहुत अच्छी पवित्र जगह है लेकिन ये है काशी यानी बनारस का असली चेहरा.

एनडीए सरकार में एनपीए बढ़ा

आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के अनुसार, नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद यानी पिछले चार साल में सरकारी बैंकों का एनपीए 322 प्रतिशत बढ़ा है. पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने बैंकों के एनपीए को लेकर डिटेल में बात कही है. उनके अनुसार, जब भी बैंक कोई कर्जा देता है तो एनपीए नहीं होता. देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था उस प्रोडक्टिव एसेट को नॉन प्रोडक्टिव बनाती है. उन्होंने कहा कि जब देश की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही थी तो बैंकों ने भी दिल खोलकर कर्जा बांटा. क्योंकि स्थिति ऐसी थी कि सबको मुनाफा दिख रहा था.

खबर के पीछे की खबर ये है कि जब सरकार स्थिर होने लगी तो अर्थव्यवस्था पटरी से नीचे आ गई. अर्थव्यवस्था जैसे ही पटरी से नीचे आती है तो जो प्रोडक्टिव एसेट है वह नॉन प्रोडक्टिव होना शुरू हो जाते हैं और फिर बैंक एक चक्रव्यूह में फंस जाती है. यदि हमारे देश के बैंकों का एनपीए बढ़ता है तो उसके लिए उद्योगपतियों को दोषी मानना ठीक नहीं. क्योंकि जितना दोष उनका है उससे ज्यादा दोष बैंकों का हो सकता है. और उससे भी ज्यादा दोष सरकार का या यूं कहें कि उससे भी ज्यादा हमारे विरोधी पार्टियों का. क्योंकि वो सरकार को अस्थिर करने में लगी रहती है. उन्हें सत्ता में जो आना होता है.

सरकार जब अपने आप को डिफेंड नहीं कर पाती तो अर्थव्यवस्था पर इसका इम्पैक्ट होता है. और जैसे ही अर्थव्यवस्था पर इम्पैक्ट होता है, प्रोडक्टिव एसेटस नॉन प्रोडक्टिव हो जाते हैं. इसलिए एनपीए का ठीकरा एक दूसरे पर फोड़ने के बजाए इससे बैंकिंग सेक्टर को कैसे निकाला जाए उसकी रणनीति तय करने की जरूरत है. वर्तमान सरकार में अच्छा काम करने वाला मंत्रालय है-  ट्रांसपोर्ट मंत्रालय. उनके कैबिनेट मिनिस्टर नितिन गडकरी कहते हैं, उनके कई रोड के प्रोजेक्ट को अभी भी बैंक कर्ज नहीं दे रही है. अच्छा काम करने पर भी बैंक पैसा नहीं देता. और कभी जब इकोनॉमी अच्छी होती है तो एक कमजोर सेक्टर को भी बैंक फायनेंस करती है. ये अर्थशास्त्र के नियम हैं. इन नियमों को ध्यान में रखते हुए एनपीए के लिए एक नई रणनीति की जरूरत है.

मंत्री की ग़ुंडागर्दी

केन्द्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने अपने कार्यक्रम में स्टेज के सामने आने-जाने वाले एक व्यक्ति को टोकते हुए कहा यदि आप चुपचाप नहीं बैठे तो मैं आपकी टांगे तोड़कर आपको व्हील चेयर दे सकता हूं. बाबुल सुप्रियो पश्चिम बंगाल के आसनसोल में एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनकर गए थे. स्टेज पर वे दिव्यांगों के लिए अच्छा काम करने वाले लोगों का सम्मान कर रहे थे. जब कार्यक्रम चल रहा था तो एक व्यक्ति उनके सामने से गुजरा. इस पर क्रोधित होते हुए उन्होंने कहा कि आप बैठ जाइए नहीं तो मैं आपकी टांग तोड़कर आपको व्हील चेयर दे सकता हूं. यह वीडियो मार्केट में वायरल होने के बाद समाज के सभी वर्गों ने इसका विरोध किया. बाद में सुप्रियो ने इस पर एक्सप्लेनेशन देते हुए कहा कि मैंने ये बात मजाक में कही थी. इसको गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया.

खबर के पीछे की खबर ये है कि पश्चिम बंगाल में राजनीति का तापमान इतना बढ़ गया है कि कोई भी राजनीतिक दल हो यदि उसे कोई चीज पसंद नहीं होती तो उसे लगता है कि विरोधी पार्टी के लोग ही इसे करवा रहे हैं. बाबुल सुप्रियो का उत्तेजित होना कोई बड़ी बात नहीं थी. लेकिन बाबुल सुप्रियो एक केन्द्रीय मंत्री हैं. केन्द्रीय मंत्री पूरे देश के होते हैं, किसी पॉलिटिकल पार्टी के नहीं होते. ऐसे में उनका ये वक्तव्य उनके गरिमा को नीचे करता है. बाबुल का यह कहना है कि मैंने मजाक में कहा था.

यह हास्यास्पद लगता है क्योंकि उसी वीडियो में आगे वे अपने सिक्योरिटी गार्ड को कहते करते हैं कि इस पर ख्याल रखना आइंदा फिर से यदि ये आदमी सामने आता है तो इसकी टांग तोड़ देना. मैं चलने के लिए उसके हाथ में लाठी पकड़ा दूंगा. अब इस वक्तव्य के बारे में वे कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं.

सरकार मेहरबान डीआरआई परेशान

देश के जाने-माने बड़े उद्योगपति अडानी के खिलाफ डीआरआई को कोर्ट में लड़ने के लिए अभी तक कोई बड़ा वकील नहीं मिला है. अडानी समूह के अडानी पावर कंपनी के खिलाफ डीआरआई ने 29 हजार करोड़ रुपए का कोल आयात घोटाले का केस दर्ज किया. अडानी समूह ने अडानी पावर लिमिटेड के लिए विदेश से कोल आयात किया था. उसके वैल्यूशन को लेकर जो घपला हुआ, उसके खिलाफ 29 हजार करोड़ का मामला डीआरआई ने दर्ज किया.

सिंगापुर में केस हारने के बाद अडानी ग्रुप मुंबई उच्च न्यायाल में स्टे के लिए शरण में गया. ये सभी लोग जानते हैं कि अडानी की तरफ से कोर्ट में बहुत बड़े वकील होंगे. इसलिए हमारे तरफ से भी बड़े वकील होने चाहिए. इसके लिए डीआरआई ने वित्त मंत्रालय से गुहार लगाई. इसी महीने केस की सुनवाई मुंबई में होनी है. लेकिन कई बार अनुरोध करने पर भी वित्त मंत्रालय ने अभी तक डीआरआई एप्लीकेशन को ठीक से देखा तक नहीं.

खबर के पीछे की खबर ये है कि अडानी ग्रुप को कौन बचाना चाहता है, ये तोे पूरा भारत जानता है कि अडानी ग्रुप सरकार के कितना नजदीक है. डीआरआई ने जब 29 हजार करोड़ का कोल आयात घोटाला पकड़ा, उसके बाद भी सरकार अडानी के खिलाफ लड़ने के लिए इतने उदास क्यों? न खाउंगा न खाने दूंगा, इस नारे का ढोल पीटने वाली ये सरकार अडानी समूह के भ्रष्टाचार पर चुप क्यों है?

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