universityवि.वि. और कॉलेज चला रहे हैं फर्जी कोर्स और हो रही हैं फर्जी परीक्षाएं

भंडाफोड़ कर दिया तो अपराधियों की तरह ऑपरेट करने लगा सिस्टम

उत्तर प्रदेश के फैजाबाद स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्‍वविद्यालय के एक प्राध्यापक ने परीक्षक के बतौर अमेठी के एक कॉलेज को गैर कानूनी गतिविधियों में लिप्त पाया और उसकी रिपोर्ट विश्‍वविद्यालय को दी तो पूरा विश्‍वविद्यालय प्रबंधन प्रोफेसर की जान के पीछे हाथ धोकर पड़ गया. प्रोफेसर की रिपोर्ट से आधिकारिक तौर पर खुलासा हुआ कि विश्‍वविद्यालय के आला अधिकारियों की साठगांठ से अमेठी के प्रेमनगर छीड़ा स्थित आचार्य विनोबा भावे महाविद्यालय फर्जी तरीके से परीक्षाएं कराने, फर्जी तरीके से शिक्षकों की भर्ती दिखा कर वेतन निकालने और फर्जी तरीके से पास के सर्टिफिकेट जारी करने का धंधा करता है. परीक्षक के बतौर कॉलेज में परीक्षा लेने गए अवध विश्‍वविद्यालय के फिजिक्स एवं इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग के प्राध्यापक डॉ. अनिल कुमार यादव ने जब फर्जीवाड़ा पकड़ लिया, तब उन्हें पहले तो रिश्‍वत देकर मनाने की कोशिश की गई, नहीं माने तो पिस्तौल की नोक पर दस्तावेजों पर दस्तखत करा लिए गए. प्रोफेसर ने इस घटना की रिपोर्ट विश्‍वविद्यालय प्रबंधन को दी तो प्रबंधन ने कॉलेज पर कार्रवाई करने के बजाय प्रोफेसर की ही फजीहत कर दी. स्पष्ट है कि विश्‍वविद्यालय प्रबंधन ऐसे कॉलेजों से कितना उपकृत रहता है. विश्‍वविद्यालय के कार्यवाहक कुलसचिव सह परीक्षा नियंत्रक अब्दुल मुईद अंसारी ने तो इस मामले को पर्सनल ले लिया. प्रोफेसर के खिलाफ अंसारी मुकदमे पर मुकदमे ठोक रहे हैं. अंसारी ऐसे बौखलाए हैं कि जैसे कॉलेज का फर्जीवाड़ा वही चलवा रहे थे. स्थानीय पुलिस तक कह रही है कि मुकदमे बेबुनियाद हैं, लेकिन स्थानीय अदालत पहले से ही खुद को अंसारी का पक्षकार माने बैठी है. अंसारी की अराजकता पर कुलपति प्रो. जीसीआर जायसवाल निरीह मौन साधे बैठे हैं. सरकार की जांच में प्रोफेसर द्वारा उद्घाटित तथ्य सच पाए गए थे और विश्‍वविद्यालय के कुलपति को कॉलेज की फर्जी परीक्षा रद्द करने पर विवश होना पड़ा था. लेकिन कॉलेज वालों के हाथ काफी लंबे और ऊंचे साबित हुए. हाईकोर्ट ने पक्षकार की बिना सुने, रद्द घोषित परीक्षा परिणाम को फिर से जारी कराया और फर्जी परीक्षार्थी पास हो गए. प्रोफेसर ने अर्जी दाखिल की कि अदालत ने उनकी बात सुने बिना फैसला जारी कर दिया, लिहाजा उनकी बात सुनी जाए. यह बात कहने पर अदालत ने प्रोफेसर पर दो लाख रुपये का जुर्माना ठोक दिया. कानून की धज्जियां उड़ गईं. प्रोफेसर अपनी ईमानदारी लिए-लिए दर-दर भटक रहा है. कॉलेज का गोरखधंधा जारी है. फर्जी परीक्षाएं जारी हैं. फर्जी तरीके से पास छात्र भी कहीं धंधा कर रहे होंगे. फर्जी कॉलेज के फर्जी शिक्षक नैतिकता पर भाषण दे रहे होंगे. देश का सिस्टम क्या है और यह कैसे अपराधियों की तरह ऑपरेट करता है, डॉ. अनिल यादव का मामला इसे व्याख्यायित करने वाला फिट केस है.

अब खबर तफसील से…अमेठी के प्रेम नगर छीड़ा स्थित आचार्य विनोबा भावे महाविद्यालय में पीजीडीसीए (पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन) की परीक्षा लेने के लिए विश्‍वविद्यालय की तरफ से डॉ. अनिल कुमार यादव और अतिथि प्रवक्ता कुमारी श्‍वेता श्रीवास्तव को बाह्य परीक्षक बनाया गया था. डॉ. अनिल प्रायोगिक परीक्षा कराने महाविद्यालय पहुंचे तो पाया कि वहां प्रायोगिक परीक्षा के लिए कोई उपकरण और संसाधन उपलब्ध नहीं हैं. इसके बावजूद कॉलेज प्रबंधन ने परीक्षा शुरू करने का जोर बनाया. मौखिक परीक्षा के बाद उपस्थिति पत्रक पर कुल उपस्थित परीक्षार्थियों की संख्या 50 पाई गई, जिसमें एक छात्र के स्थान पर उसका भाई परीक्षा देता हुआ पकड़ा गया. मूल्यांकन की औपचारिकताएं चल ही रही थीं कि कॉलेज के प्राचार्य डॉ. प्रेम कुमार तिवारी ने 10 ऐसे छात्रों को भी उपस्थित दिखाने और उन्हें नंबर देने के लिए दबाव बनाया, जो परीक्षा में मौजूद ही नहीं थे. दबाव बढ़ने पर कुमारी श्‍वेता श्रीवास्तव सादे अवॉर्ड शीट व उत्तर पुस्तिकाओं पर हस्ताक्षर करके वहां से चली गईं. लेकिन डॉ. अनिल कुमार अड़े रहे. उन्होंने यह भी पाया कि उत्तर पुस्तिकाओं में श्‍वेता श्रीवास्तव की हस्ताक्षरित पांच कॉपियां और बढ़ी हुई हैं. यानी 50 के बजाय चमत्कारिक तरीके से कुल 55 उत्तर पुस्तिकाएं पाई गईं. इसके अलावा 10 और छात्रों को ऊपर से शामिल किए जाने का दबाव. डॉ. अनिल ने फर्जी छात्र (मुन्ना भाई) को परीक्षार्थी नहीं मानने और अनुपस्थित छात्रों को परीक्षार्थी के रूप में दर्ज नहीं करने का स्टैंड लिया तो कॉलेज प्राचार्य बौखला उठे. डॉ. अनिल कुमार यादव का कहना है कि प्राचार्य के इशारे पर हथियार दिखा कर उनसे सादे अवॉर्ड शीट्स पर हस्ताक्षर कराए गए और परीक्षा से संबंधित प्रपत्र और पारिश्रमिक तक छीन कर उन्हें अपमानित कर कॉलेज परिसर से बाहर निकाल दिया गया.

वहां से लौटते ही डॉ. अनिल यादव ने इस घटना के बारे में विश्‍वविद्यालय प्रशासन को लिखित सूचना दी और आचार्य विनोबा भावे महाविद्यालय में कराई गई फर्जी परीक्षा तत्काल प्रभाव से रद्द करने और दोषी प्राचार्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का औपचारिक अनुरोध किया. विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने इस गंभीर शिकायत पर ठंडा रुख दिखाया. शिक्षकों का दबाव बढ़ने पर विश्‍वविद्यालय ने जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी. समिति ने सुनवाई भी की लेकिन रिपोर्ट नहीं सौपी. जांच समिति के सदस्य भी भारत की मुख्यधारा से प्रभावित पाए गए, लिहाजा जांच में पक्षपात की शिकायत उत्तर प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव से की गई. इस तरह इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार का प्रवेश हुआ. शासन के निर्देश पर मामले की जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति गठित की गई. सरकार की जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट विश्‍वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक को सौप दी. लेकिन सरकार की पांच सदस्यीय समिति ने भी डॉ. अनिल कुमार का पक्ष नहीं सुना. इसकी भी शिकायत शासन से की गई. इस पर शासन ने विश्‍वविद्यालय प्रशासन से 13 बिंदुओं पर विस्तृत आख्या तलब की. समिति ने डॉ. अनिल की भी बात सुनी. उत्तर प्रदेश शासन ने अमेठी के प्रेम नगर छीड़ा स्थित आचार्य विनोबा भावे महाविद्यालय में हुई विवादास्पद परीक्षा को निरस्त करने का आदेश (पत्रांकः वीआईपी-130-सत्तर-6-2013-3(124)-2014 दिनांक-27.11.2013) जारी कर दिया. शासन ने उक्त परीक्षा में व्यापक पैमाने पर धांधली और अनियमितता की शिकायत को स्वीकार करते हुए दोषियों के खिलाफ एक महीने के अंदर कठोर दंडात्मक कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया और विश्‍वविद्यालय प्रशासन से यह भी कहा कि की गई कार्रवाई से शासन को बाकायदा अवगत कराया जाए. सरकार ने कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. प्रेम कुमार तिवारी को केंद्राध्यक्ष के पद से हटाने का भी आदेश साथ-साथ जारी किया. शासन के इस आदेश पर अवध विश्‍वविद्यालय के कुलपति ने अमेठी के प्रेमनगर छीड़ा स्थित आचार्य विनोबा भावे महाविद्यालय की पीजीडीसीए प्रायोगिक परीक्षा-2011 रद्द कर दी. लेकिन शासन के स्पष्ट निर्देश के बावजूद कॉलेज के दोषी प्राचार्य और तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई और न ही इस बारे में शासन को अवगत कराने की कोई जरूरत समझी गई.

परीक्षा रद्द होने का आदेश जारी होते ही भ्रष्ट-तंत्र सक्रिय हो उठा. आचार्य विनोबा भावे महाविद्यालय के प्रिंसिपल डॉ. प्रेम कुमार तिवारी ने तथ्यों को छुपाते हुए विश्‍वविद्यालय के निर्णय के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में चुनौती दी. पूर्वनियोजित तरीके से विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने इस मामले में अपनी पैरवी लचर रखी और हाईकोर्ट के जज एसएन शुक्ला ने रद्द परीक्षाफल फिर से घोषित करने का फैसला सुना दिया. हाईकोर्ट ने केंद्राध्यक्ष पद से कॉलेज प्रिंसिपल को हटाए जाने के सरकारी आदेश को भी खारिज कर दिया. अदालत ने इस मामले में न विश्‍वविद्यालय की कुछ सुनी और न ही डॉ. अनिल कुमार की कोई बात सुनी. डॉ. अनिल कुमार को मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में हाजिर रहने की कोई सूचना नहीं दी गई, जबकि डॉ. अनिल इस मामले के प्रमुख पक्षकार थे. डॉ. अनिल ने इसके खिलाफ रिव्यु-पेटिशन दाखिल किया तो जज राजीव शर्मा ने डॉ. अनिल कुमार यादव पर दो लाख रुपये का जुर्माना ठोक दिया. उसी बेंच ने विश्‍वविद्यालय प्रशासन की तरफ से दाखिल स्पेशल अपील भी बेसाख्ता खारिज कर दी. विडंबना यह है कि हाईकोर्ट के आदेश की आड़ में बाद में परीक्षा नियंत्रक बने अब्दुल मुईद अंसारी ने 11 उन छात्रों का परीक्षाफल भी घोषित कर दिया, जो परीक्षा में बैठे ही नहीं थे. इसकी शिकायत करने पर कुलपति ने एक्जेक्यूटिव काउंसिल के सदस्य पूर्व पुलिस महानिदेशक केएल गुप्ता की अध्यक्षता में छह सदस्यीय जांच समिति गठित की. दिसम्बर 2014 में इस समिति की पहली बैठक हुई जिसमें परीक्षा नियंत्रक मुईद अंसारी को प्रथम द्रष्टया दोषी पाया गया और उनसे अग्रिम सुनवाई के लिए मूल अभिलेख मांगा गया. इस बैठक की सूचना जांच समिति के एक सदस्य शैलेन्द्र वर्मा को नहीं दी गई थी. परीक्षा नियंत्रक को बचाने के इरादे से बैठक की कार्यवाही (प्रोसीडिंग्स) को दर्ज भी नहीं किया गया.

इसके बाद व्हिसिल ब्लोअर डॉ. अनिल कुमार यादव के खिलाफ साजिशें सतह पर आने लगीं. परीक्षा नियंत्रक अब्दुल मुईद अंसारी ने डॉ. अनिल के खिलाफ कार्रवाई के लिए कुलपति पर दबाव बनाना शुरू किया. कुलपति ने विज्ञान संकाय के अध्यक्ष प्रो. आरएल सिंह और भौतिकी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसएन शुक्ला की मौजूदगी में डॉ. अनिल कुमार को अपने आवास पर बुलाकर प्रकरण के संबंध में विस्तृत जानकारी ली और इसे शीघ्र निस्तारित करने का आश्‍वासन दिया. यहां तक कि विश्‍वविद्यालय के स्थापना दिवस पर दिए अपने वक्तव्य में भी कुलपति ने व्हिसिल ब्लोअर डॉ. अनिल कुमार प्रसंग का जिक्र किया और दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की बात कही. लेकिन मामला ठंडे बस्ते में ही चला गया.

भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले डॉ. अनिल ने इस बीच अब्दुल मुईद अंसारी द्वारा पद का दुरुपयोग कर बिना औपचारिक मंजूरी के विश्‍वविद्यालय के धन से अपने सरकारी आवास में स्विमिंग पूल, मछली पालन हेतु पक्का तालाब, बकरी पालन के लिए पक्का शेड, मुर्गी पालन के लिए लोहे के पिंजड़े बनवाने के कृत्यों का भी पर्दाफाश कर दिया. इस पर अंसारी और बौखला गए. उन्होंने अंजनी यादव के नाम से डॉ. अनिल यादव के खिलाफ शिकायतनामा दाखिल कराया. बाद में अंजनी यादव ने ही उसे फर्जी करार दिया. लेकिन अंसारी की हरकतें रुकी नहीं. डॉ. अनिल कुमार यादव के खिलाफ अंसारी सारे हथकंडे अपना रहे हैं और आपराधिक षडयंत्र रच रहे हैं. इस बारे में डॉ. अनिल यादव ने प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, पिछड़ा वर्ग आयोग, मानवाधिकार आयोग और फैजाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पत्र लिख कर वस्तुस्थिति की जानकारी दी है और सुरक्षा प्रदान किए जाने की मांग की है. डॉ. यादव ने अब्दुल मुईद अंसारी द्वारा पद का दुरुपयोग कर विश्‍वविद्यालय को वित्तीय क्षति पहुंचाने, शासनादेशों और अदालती आदेशों की अवहेलना कर सत्र 2015-16 की प्रवेश प्रक्रिया सम्पन्न कराने, महाविद्यालयों को मान्यता देने में गलत रास्ता अख्तियार करने के बारे में भी शासन को विस्तृत जानकारी दी. अंसारी ने पद के दुरुपयोग की इंतिहा तब कर दी जब उनकी बेटी बुसरा अंसारी एमए उर्दू की परीक्षा दे रही थीं. नियमतः अंसारी को गोपनीय मुद्रण व परीक्षा कार्यों से दूर रहना चाहिए था. लेकिन अंसारी ने नियम और नैतिकता को ताक पर रख कर अपनी बेटी को प्रथम वर्ष (अनुक्रमांक-140011391002) में 77 प्रतिशत और द्वितीय वर्ष (अनुक्रमांक-2390002) में 72.6 प्रतिशत, यानी कुल 74.7 प्रतिशत (821/1100) अंक दिलवाए. ये अंक विश्‍वविद्यालय के इतिहास में उर्दू विषय में विगत कई वर्षों में गोल्ड मेडल प्राप्त छात्रों के अंकों से भी कहीं अधिक हैं. मुईद अंसारी डॉ. अनिल कुमार यादव के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर मुकदमे ठोके जा रहे हैं. जबकि पुलिस की ही रिपोर्ट कहती है कि दर्ज किए जा रहे मुकदमे फर्जी हैं, संदेहास्पद हैं और निरस्त किए जाने योग्य हैं. फिर भी हमारा सिस्टम व्हिसिल ब्लोअर के पक्ष में कहां खड़ा होता है! पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच कराए जाने और दोषियों के खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई किए जाने की डॉ. अनिल कुमार यादव की मांग नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह घुट रही है.

अवध विश्‍वविद्यालय का पीजीडीसीए ही फर्जी!

सूचना के अधिकार के तहत अवध विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने अपने यहां चल रहे पीजीडीसीए कोर्स के बारे में जो सूचनाएं दीं, वे चौंकाने वाली हैं. इस सूचना से तमाम छात्र और उनके अभिभावक हतप्रभ हैं. विश्‍वविद्यालय प्रशासन खुद कहता है कि पीजीडीसीए (पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन)पाठ्यक्रम का कोई अध्यादेश विश्‍वविद्यालय के पास नहीं है. यानी इस पाठ्यक्रम का संचालन अवैध रूप से हो रहा है. किसी भी नए पाठ्यक्रम को संचालित करने के लिए कुलपति नियमतः संबंधित विषय के अध्ययन बोर्ड (बोर्ड ऑफ स्टडीज) को निर्देशित करते हैं. अध्ययन बोर्ड नवसृजित पाठ्यक्रम का अध्यादेश और सिलेबस तैयार करता है. उसके बाद उसे एकेडेमिक काउंसिल और एक्जेक्यूटिव काउंसिल से पास कराया जाता है. इन औपचारिकताओं के बाद राज्य सरकार से पाठ्यक्रम शुरू करने की औपचारिक अनुमति मांगी जाती है. लेकिन विश्‍वविद्यालय ने ऐसा कुछ नहीं किया. इसी तरह अमेठी के प्रेमनगर छीड़ा स्थित आचार्य विनोबा भावे महाविद्यालय में भी पीजीडीसीए की मान्यता अनुमोदित नहीं है, लेकिन कागजातों पर वहां इसकी पढ़ाई हो रही है और परीक्षाएं भी ली जा रही हैं.

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