biharराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक 18 मिनट में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले आते हैं. बिहार में दलितों पर लगातार अत्याचार हो रहे हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी किए ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में दलितों के खिलाफ अपराध के उत्तर प्रदेश में 10,426 मामले सामने आए थे, वहीं बिहार दूसरे नंबर पर रहा जहां पर 5,701 मामले दर्ज किए गए थे. देशभर में दलितों पर हुए अत्याचारों के मामले की बात करें, तो 2016 में 40,801 केस दर्ज किए गए थे, जबकि 2015 में यह आंकड़ा 38,670 था. सवाल अत्याचार का नहीं, बल्कि दम तोड़ रही मानवीय संवेदनाओं का है.

तंत्र का सिस्टम इतना वीभत्स है कि बिहार के भागलपुर नवगछिया के झंडापुर थाने के इलाके में तीन परिवार को कुल्हाड़ी से काट कर मार दिया गया. यहां महादलित टोले में रहने वाले गायत्री राम, उनकी पत्नी मीना देवी, 10 साल का बेटा छोटू को कुल्हाड़ी से काट कर मार दिया गया. 14 साल की बेटी बिंदी को भी नंगा कर दिया गया और उस पर हमला हुआ. बिंदी पटना मेडिकल कॉलेज में भर्ती है. अपराधियों ने गायत्री राम को कुल्हाड़ी से काटा ही नहीं, बल्कि उनकी दोनों आंखें भी निकाल लीं. बाप और बेटे के गुप्तांगों को काट दिया गया. मीना देवी के शरीर पर जगह-जगह कुल्हाड़ी के निशान हैं.

उनकी बेटी बिंदी जिंदगी और मौत से जूझ रही है. फिलहाल वह कोमा में है. भागलपुर के झंडापुर गांव के एक महादलित परिवार के तीन लोगों की हत्या के बाद यह परिवार खौफ के साये में जीने को मजबूर है. इस हत्या के इकलौते चश्मदीद बिंदी कुमारी पर हमला होने की आशंका के बाद उसकी हिफाजत का पुख्ता इंतजाम आरक्षी उप महानिरीक्षक विकास वैभव के निर्देश पर किया गया है. हर घटना को राजनीतिक दल वोटबैंक के नजरिए से तौलते हैं.

इस घटना के साथ भी यही हो रहा है. सभी राजनीतिक दलों के नेताओं का पीड़ितों के घर आने-जाने का तांता लगा है. सभी हत्यारों की फौरन गिरफ्तारी की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन और बाजार बंद किए जाने का सिलसिला जारी है. राजद के भागलपुर सांसद शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल ने भी पीड़ित के घर जाकर दिलासा दिया. साथ ही राजद प्रदेश इकाई ने एक जांच दल गठित किया है. जद (एकी) के नेता व पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी भी पहुंचे और दलितों पर बिहार में हो रहे जुल्म के खिलाफ सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ खुलकर बोले. भाजपा के भागलपुर के पूर्व सांसद सैयद शाहनबाज हुसैन भी पीड़ित परिवार से मिले. बिहपुर के पूर्व विधायक भाजपा नेता शैलेन्द्र कुमार तो पीड़ित परिवार के लिए न्याय की मांग को लेकर आमरण अनशन पर ही बैठ गए.

दो रोज के अनशन के बाद नवगछिया के एसडीओ ने भरोसा देकर अनशन खत्म कराया. जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के संरक्षक व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव भागलपुर के बीहपुर प्रखंड के झंडापुर गांव में हुए हत्याकांड में घायल बिंदी कुमारी को देखने पीएमसीएच पहुंचे. उन्होंने बच्ची के इलाज के लिए 25 हजार की मदद दी. सांत्वना राजनीतिक दलों के वोट को लेकर है. नेताओं के आने का सिलसिला जारी है, पर सरकार की तरफ से कोई मंत्री या मुख्यमंत्री का नुमाइंदा अभी तक नहीं आया है. जिस बस्ती में यह दलित परिवार रहता है, वहां 70 दलित परिवार रहते हैं. कोई हत्या को लेकर कुछ नहीं कहना चाहता है.

मृतक कनिक राम का बड़ा बेटा संतोष राम पश्चिम बंगाल में दिहाड़ी मजदूर है. घटना की जानकारी मिलने के बाद जब वह घर पहुंचा, तब उसने आसपास के लोगों से पूछताछ की. किसी ने कुछ नहीं बताया. संतोष के मुताबिक गांव में बेरोजगारी है. भूमिहार टोले के लोगों के पास जमीन है. वे हम लोगों से अपने खेतों में काम कराना चाहते हैं, लेकिन वाजिब मजदूरी नहीं देते हैं. इसलिए गांव के दलित या तो मछली बेचकर अपना पेट पालते हैं या फिर बड़े शहरों में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं.

घटना की वजह कहीं मजदूरी तो नहीं, यह पूछने पर संतोष ने कहा कि उसे इस बात की जानकारी नहीं है कि आखिर किन कारणों से उसके माता-पिता और भाई की हत्या व बहन को बुरी तरह से जख्मी किया गया. लेकिन यह सच है कि पूरे इलाके में खास जाति के लोगों की दबंगई चलती है. आखिर अन्याय के प्रति समाज में इतनी बेरुखी क्यों? संत रविदास महासभा के राष्ट्रीय संरक्षक प्रो. विलक्षण रविदास का कहना है कि इतनी वीभत्स घटना के बाद पड़ोसी चुप क्यों हैं, यह जांच का विषय है. जो मुंह खोलेगा, उसकी भी हत्या होगी. अपराध के कई दिनों बाद भी आरोपी छुट्‌टा घूम रहे हैं.

भाकपा माले के रिंकू, राम विलास, अजय रविदास, रामानंद पासवान का कहना है कि पीड़ितों की सुरक्षा की गारंटी के साथ 50 लाख का मुआवजा मिले और परिवार में किसी एक को सरकारी नौकरी के अलावा प्रशासन घायल बिंदी के इलाज की समुचित व्यवस्था करे. दलित अधिकार के लिए लड़ रहे कार्यकर्ता विमल कुमार बताते हैं कि पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है. पुलिस तर्क दे रही है कि गवाह मिलने पर अपराधियों को गिरफ्तार किया जाएगा. एससीएसटी एक्ट के तहत मुआवजे से भी वे मरहूम हैं. कनिक की कोई मजबूत पृष्ठभूमि भी नहीं है. इंदिरा आवास योजना के तहत उसे बीस हजार रुपए मिले थे.

आधा-अधूरा घर बना है, जिसमें खिड़की, दरवाजे तक नहीं लगे हैं. हत्या को लेकर कई तर्क दिए जा रहे हैं. कनिक राम ने हाल में जलकर (मछली पालने का तालाब) को ठेके पर लिया था. जलकर पर उस इलाके की ऊंची जाति का कब्जा है. इस हत्या के पीछे जलकर विवाद और दलितों का समाज में आगे बढ़ना भी एक वजह है. दरअसल झंडापुर गांव भूमिहार बहुल गांव है, जबकि आसपास के गांवों में दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों की संख्या अधिक है. लेकिन इनमें से अधिकतर या तो सीमांत किसान हैं या फिर भूमिहीन खेत-मजदूर. मजदूरी को लेकर हिंसक संघर्ष यहां बहुत पहले से होते रहे हैं. हिंसक संघर्ष को देखते हुए बिहार सरकार ने 1982 में ही झंडापुर में उप थाना बनाया था. लेकिन यह उप थाना दलित बस्ती में न होकर भूमिहार टोले में है. यह पूरा इलाका बिहपुर थाने के इलाके में आता है. हालांकि गांव के लोग यह जरूर कहते हैं कि उप थाना यदि दलितों के टोले में होता, तो उनकी रक्षा हो सकती थी.

गरीबों को उनकी पुश्तैनी जमीन से उजाड़ा जा रहा है. दलितों के घरों में आग लगाई जा रही है. दलित-गरीबों के साथ प्रशासन का रवैया बेहद उपेक्षापूर्ण है. उस पर भूमाफिया की नजर है. मुंगेर के मुबारकचक गांव में दबंगों ने महादलित परिवारों के इंदिरा आवास योजना से बने आवास पर ही बुलडोजर चला दिया. राज्य महिला आयोग की पूर्व सदस्य शायरा बानो के पुत्र शाहीन रजा उर्फ चिंटू, मुंगेर शहर के पूर्व वार्ड पार्षद, मो. इकराम ने दुर्गा दास, शैलेन्द्र दास, लुटकुन दास, जयनंदन दास के इंदिरा आवास पर बुलडोजर चलवा कर बेघर कर दिया.

एक माह पहले दलितों ने आरक्षी उप महानिरीक्षक विकास वैभव से जनता दरबार में मिलकर सुरक्षा की गुहार लगाई थी. इसके बाद अब महादलितों को यह भय सताने लगा है कि दबंगों द्वारा उन्हें अपनी पुश्तैनी जमीन से बेदखल न कर दिया जाए. पुलिस अधीक्षक आशीष भारती कहते हैं कि इस मामले में मुफस्सिल इंस्पेक्टर को जांच का आदेश दिया गया है. पुलिस अधीक्षक के आदेश पर इंस्पेक्टर ने स्थल का निरीक्षण भी किया और उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही पुलिस आगे की कार्रवाई करेगी.

इतना ही नहीं, श्रीमतपुर पंचायत को खुले में शौच से मुक्त पंचायत घोषित किया था. मुबारकचक के दास टोला में इसी साल सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस सामुदायिक शौचालय का अवलोकन किया था, उसका लाभ आज तक महादलितों को नहीं मिल पाया है़. कहने को तो यह सामुदायिक शौचालय संजय दास, कुंदन दास, उदय दास, लखन दास, राजेश दास, विपिन कुमार दास, मथुरा दास, शैलेंद्र दास सहित कुल 10 महादलित परिवारों के लिए बना था. किंतु इनमें से एक भी परिवार आजतक इस शौचालय का उपयोग नहीं कर पाए हैं. दिखावे के लिए शौचालय की दीवार पर महादलित परिवारों के नाम भी अंकित हैं, लेकिन वे आज भी खुले में ही शौच जा रहे हैं.

सबसे शर्मनाक तो यह है कि सरकारी कुएं पर बांस की चचरी डाल कर उसे भी बंद किर दिया है. मुंगेर की अन्य घटना में हवेली खड़गपुर के गालिमपुर में बैजू दास नामक व्यक्ति और उसकी गाय को उसके झोपड़ी में जला दिया गया है. गांव में सवर्णों की बहुलता के कारण कोई भी व्यक्ति बयान देने से मुकर रहे हैं कि कहीं उनके साथ भी ऐसी स्थिति न हो जाए. मुंगेर में घटित घटना पर तो कोई प्रतिक्रिया भी नहीं हुई. यहां के स्थानीय विधायक विजय कुमार विजय, जो लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति की उपज हैं, उन्होंने भी पीड़ितों की खोज-खबर नहीं ली.

भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल कहते हैं कि जब तक सत्ता के लोग दबंग लोगों को संरक्षण देंगे, तब तक ऐसी घटनाएं नहीं रुकेंगी. चंपारण के मैनाटांड इलाके में दबंग लोगों ने करीब पचास एकड़ जमीन पर लगी फसल को लूट लिया और जमीन पर कब्जा कर लिया. इस जमीन पर लंबे समय से दलित खेती करते रहे हैं. लूटने और कब्जा करने के क्रम में दबंगों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की. वहीं वहां से करीब एक किलोमीटर दूर थाना में पुलिस कान में तेल डालकर सोई रही. इस घटना में डेढ़ दर्जन लोग घायल हुए हैं. इस संबंध में भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल ने स्थानीय विधायक व बिहार सरकार के गन्ना विकास मंत्री फिरोज उर्फ खुर्शीद आलम पर दबंगों को संरक्षण देने का आरोप लगाया है. स्थानीय विधायक व बिहार सरकार के गन्ना विकास मंत्री फिरोज उर्फ खुर्शीद आलम पर दबंगों को संरक्षण देने का आरोप है.

वैशाली के दलित आवासीय विद्यालय में एक लड़की की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या, भागलपुर में दलित महिलाओं पर हमला और रोहतास जिले के काराकाट थाना क्षेत्र के मोहनपुर गांव में 15 साल के एक दलित लड़के को दबंगों द्वारा जिंदा जला दिए जाने समेत कई बड़े मामले सामने आये हैं. ये घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि बिहार अपनी अर्धसामंती संरचना से अब तक निकल नहीं पाया है, उसके अवशेष अब भी बचे हुए हैं.

यह तल्ख सच्चाई है कि 37 फीसदी दलित गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं. 54 फीसदी कुपोषित हैं, प्रति एक हजार दलित परिवारों में 83 बच्चे जन्म के एक साल के भीतर मर जाते हैं. यही नहीं 45 फीसदी बच्चे निरक्षर रह जाते हैं. 40 फीसदी सरकारी स्कूलों में दलित बच्चों को कतार से अलग बैठकर खाना पड़ता है, 48 फीसदी गांवों में पानी के स्रोतों पर जाने की मनाही है.

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