अफगानिस्तान के संसद पर आतंकी हमले में कई लोगों की मौत हो गई थी और 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. काबुल में इतने अहम स्थान पर हुए इस हमले ने नाटो की मदद के बिना तालिबान के खिर्लों र्एंगान सुरक्षा बलों की लड़ाई के बीच यहां की सुरक्षा को लेकर नए सिरे से सवाल खड़ा कर दिए हैं. सवाल अफगानिस्तान की अंदरुनी राजनीति से उपजे विवादों पर भी उठ रहे हैं. सवाल यह भी हैं कि क्या अफगानिस्तान के राष्ट्रपति की पाकिस्तान से करीबी और पाकिस्तान के कहने पर अफगानिस्तान के अंदर तालिबानी आतंकवादियों पर की गई कार्रवाइयों के बदले के रूप में तालिबान द्वारा यह हमला किया गया? कारण चाहे जो भी हों, लेकिन आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकना है, तो प्रतिबद्धता से संपूर्ण विश्व को आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी होगी. 

hआतंकवाद और आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता. रमजान के इस पवित्र महीने में आतंकवादियों ने इस बात को साबित भी कर दिया है. सिर्फ 26 जून को ही आतंकवादियों ने तीन देशों फ्रांस, कुवैत में एक शिया मस्जिद में जुमे की नमाज के वक्त और ट्‌यूनीशिया में समुद्र तट पर हमले कर कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया. यूनाइटेड नेशंस असिस्टेंस मिशन इन अफगानिस्तान के मुताबिक, जनवरी से जून 2015 तक पूरे अफगानिस्तान में आतंकी हमलों में 3237 और अकेले काबुल में 1174 लोग मारे गए. इन आंकड़ों से अफगानिस्तान में आतंकवाद की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है. यह कहने में तनिक भी गुरेज नहीं है कि अफगानिस्तान ही नहीं, पूरा विश्व आतंकवाद की गिरफ्त में है.
संसद पर हमले को लेकर अफगानिस्तान ने कहा है कि इस हमले में पाकिस्तान के एक र्खुिेंया अधिकारी ने तालिबान की मदद की थी. र्एंगान संसद पर हुए हमले के पीछे पाकिस्तान की र्खुिेंया एजेंसी आईएसआई का हाथ हो सकता है. सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पिछले महीने 25 मई को अफगानिस्तान सरकार के अधिकारियों और तालिबानी नेताओं के बीच चीन में एक बेहद गोपनीय वार्ता हुई थी. इस बात की जानकारी चीन के ही कुछ र्खुिेंया अधिकारियों ने आईएसआई को दे दी. पाकिस्तान को लगता है कि कहीं अफगानिस्तान में उसकी भूमिका कम न हो जाए या र्एंगान सरकार भारत और अमेरिका के ज्यादा करीब न चली जाए, इसीलिए तालिबान के एक खास धड़े से यह हमला कराया गया है. चीन में हुई उस बातचीत में अफगान प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मोहम्मद मासूम स्तानिकजेई ने किया, जो कि पिछले सप्ताह तक देश की शांति वार्ता संस्था हाई पीस काउंसिल के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य थे. उनके अलावा पूर्व सांसद सत्ता में साझेदार अब्दुल्ला अब्दुल्ला के सहयोगी मोहम्मद असीम ने भी इस बैठक में शिरकत की. तालिबान की ओर से तीन वरिष्ठ नेता मुल्ला अब्दुल जलील, मुल्ला मोहम्मद हसन रहमानी और मुल्ला अब्दुल रज्जाक बैठक में शामिल हुए. खास बात यह है कि ये तीनों पाकिस्तान में ही रहते हैं और तालिबान के क्वेटा स्थित नेतृत्व परिषद के करीबी हैं.
हालांकि पाकिस्तान ने इस आरोप को गलत बताया है. आरोप सही हों या नहीं, इस पर फर्क तभी पड़ता है, जब तक विश्व के देश आतंकवाद के मुद्दे पर जीरो टॉलरेंस की नीति नहीं अपनाएं. अगर अफगानिस्तान पाकिस्तान पर इस हमले का आरोप लगा रहा है, तो इस पर आसानी से विश्वास भी हो जाता है, क्योंकि दुनिया में यह बात आम है कि पाकिस्तान विश्व आतंकवाद की नर्सरी है और यह कलंक पाकिस्तान के दामन पर बहुत पहले से ही लगती आ रही है. अब तो इस बात पर भी मुहर लग गई है कि पाकिस्तान की सरकार और अदालतें भी आतंकवादियों की रक्षा करती हैं. लश्करे-तइबा के सरगना और मुंबई बम कांड का साजिशकर्ता ज़कीउररहमान लखवी को संयुक्त राष्ट्र ने दोषी करार दिया है और 15 में से 14 राष्ट्र दंडित करना चाहते हैं, उसे पाकिस्तान द्वारा रिहा करने और सारी सुविधाएं देने के पीछे सिर्फ एक ही कारण है कि लखवी को पाकिस्तान भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल करना चाहता है और दूसरी तरफ वह इसलिए भी लखवी को इतनी तवज्जो दे रहा है कि लखवी की गतिविधियां भारत विरोधी थीं. इसका क्या मतलब समझा जाए कि पाकिस्तान र्सिेर्ं उसी आतंकवाद का विरोधी है, जो उसके खिलाफ है, उसका विरोधी नहीं है, जो भारत और र्एंगानिस्तान के खिर्लों है?
अफगानिस्तान में संसद पर हमले के कारण के रूप में यह बात भी सामने आ रही है कि र्एंगाानिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद अशर्रें गनी और पाकिस्तान सरकार के बीच हाल के महीनों में कई समझौते हुए हैं. अफगानिस्तान की र्खुिेंया एजेंसी के प्रमुख के विरोध के बावजूद अफगानिस्तान ने आईएसआई से समझौते किए. पाकिस्तान के कहने पर अफगानिस्तान में छिपे पाकिस्तानी आंतकवादियों के खिर्लों कार्रवाई हुई. इसी के जवाब में तालिबान वहां हमले कर रहा है. अफगानिस्तान ऐसा इसलिए कर रहा है कि वहां की सरकार को इस बात का भरोसा है कि पाकिस्तान की मदद से तालिबान से निपटा जा सकता है. यहां अगर गनी सरकार पाकिस्तान की बजाय भारत के साथ सुरक्षा नीतियां बनाती तो परिणाम बेहतर होते. गनी सरकार की इस नीति से ऐसा नहीं कि सिर्फ उनका देश ही प्रभावित होगा, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से भारत भी काफी हद तक प्रभावित होगा. जिस तरह से काबुल में पहले भी भारतीय उच्चायोग पर हमले हो चुके हैं, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस हमले ने भारतीय उच्चायोग और हमारे दूसरे काउंसलेट की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं. र्एंगानिस्तानी संसद सहित वहां के कई बड़े प्रोजेक्ट्स पर भारत सरकार के जरिए काम हो रहा है, अफगानिस्तान में भारतीय नागरिकों को भी इससे हानि हो सकती है. इसलिए अफगानिस्तान में अगर तालिबान की पकड़ मजबूत होती है तो भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरा बढ़ेगा. दूसरी तरफ अफगानिस्तान में लंबी लड़ाई के बाद अब अमेरिका और नाटो के देश अपनी अधिकतर सेना को वापस बुला चुके हैं. अमेरिकी सेना के जाते ही तालिबान अफगानिस्तान के अंदरूनी इलाकों में धीरे-धीरे पकड़ मजबूत कर रहा है. वहीं, काबुल में बड़े हमलों की साजिश रच रहा है. उत्तरी प्रांत कुंदुज के दो जिलों चारदारा और दश्त-ए-अर्ची पर अब र्एंगान तालिबान का कब्जा है. अमेरिका और नाटो देशों ने र्एंगान बलों को आतंकवाद विरोधी अभियानों की ट्रेनिंग देने के लिए 60 अरब डॉलर खर्च किए हैं, लेकिन अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों के पास अमेरिकी बलों जैसी काबिलियत और आधुनिक हथियार नहीं हैं.
आतंकवाद के मुद्दे पर चीन को अलग कर के नहीं देखा जा सकता, क्योंकि जिस पाकिस्तान पर अफगानिस्तान के संसद पर हमले का आरोप लग रहा है, चीन उसे अपनी ढाल के रूप में तैयार कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ की 15 सदस्यीय कमेटी मुंबई बम कांड के साजिशकर्ता लखवी की गिरफ्तारी चाहती थी, फिर भी सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य होने के नाते चीन ने अड़ंगा लगा दिया. चीन खुशफहमी में है कि वह जिस देश की सहायता कर रहा है, वह भी भारत विरोधी गतिविधियों में उसकी सहायता करता रहेगा, लेकिन वह भूल जा रहा है कि आतंकवाद और आतंकवादी किसी का सगा नहीं हो सकता. इसका ताजा उदाहरण है 26 जून को कुवैत में मस्जिद पर जुम्मे की नमाज के दौरान हमला. अफगानिस्तान के प्रमुख मौलवियों ने भी तालिबानी आतंकवादियों से आग्रह किया था कि वे रमजान के महीने में हमले न करें, लेकिन उन्होंने किसी की एक न सुनी, क्योंकि आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता. अभी एक सप्ताह पहले ही चीन के शहर काशगर में 18 लोग मारे गए हैं. अमेरिका ने भी ओसामा बिन लादेन को कुछ इसी तरह से फलने-फूलने का मौका दिया था, जो बाद में उसके लिए नासूर बन गया. क्या र्एंगानिस्तान जैसे आतंकवाद पीड़ित देश के लोग, जिसके दिल पर आतंकवादियों ने हमला किया है, क्या चीन के बारे में अच्छी राय बनाएंगे? चीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन-यात्रा के दौरान आतंकवाद के खिर्लों साझा मोर्चे की बात कही थी और यही बात उसने फरवरी में रूस, चीन, भारत संवाद में भी कही थी. अब चीन के बारे में बाकी दुनिया के देश क्या राय बनाएंगे?
एक विदेशी न्यूज एजेंसी के जर्नलिस्ट ने अपने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि हमले के पीछे अफगानिस्तान की अंदरूनी राजनीति हो सकती है, उसने कहा कि र्एंगानिस्तान में संसद ही सबसे सुरक्षित जगह है और वहां आत्मघाती धमाके के बाद भी घुसना असंभव है, लेकिन न सिर्फ हमलावर संसद परिसर में घुसे, बल्कि संसद भवन के भीतर भी एक आतंकी पहुंच गया. इस जर्नलिस्ट ने कहा कि ऐसा तभी हो सकता है जब कोई बड़ा सुरक्षा अधिकारी या सांसद उसकी मदद करे. जर्नलिस्ट की बातों पर यकीन करना कोई अचरज वाली बात नहीं है, क्योंकि र्िेंलहाल, अफगानिस्तान में उपराष्ट्रपति और रक्षा मंत्री की नियुक्ति को लेकर विवाद चल रहा है.
अफगानिस्तान की संसद पर हमले से र्सों है कि वहां अमेरिका की तमाम कोशिशों के बावजूद र्एंगान-तालिबान बेअसर नहीं हुआ है. तालिबान अब अफगानिस्तान के अंदरूनी जिलों पर कब्जा कर रहा है. वह काबुल में हाई प्रोफाइल हमलों को अंजाम दे रहा है. पिछले दिनों काबुल एयरपोर्ट और राजधानी में एक गेस्ट हाउस पर हमला और उसके बाद अफगानिस्तान की संसद पर हमला कर आतंकवादियों ने सीधे-सीधे अफगानिस्तानी लोकतंत्र पर हमला किया है. अफगानिस्तान में हर दिन 10 हमले नाकाम किए जा रहे हैं. फिर भी काबुल में 6 महीने में एक हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. नाटो के जनरल जॉन कैंबेल के मुताबिक, र्सिेर्ं मई में काबुल एयरपोर्ट सहित राजधानी के अंदर 6 बड़े हमले हुए. इनमें 19 नागरिकों सहित 100 लोगों की मौत हो गई. अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, पूरे देश में आतंकी हमलों के कारण सुरक्षा बलों के जवानों की मौतों के आंकड़े में 75 फीसदी का इजाफा हुआ है. 2014 में 4634 र्एंगान जवान आतंकी हमलों में शहीद हुए थे.


अफगानिस्तान में भारतीय कितने सुरक्षित

  • काबुल में हाल के महीनों में ही कोलोला पुश्ता के पार्क पैलेस पर आतंकी हमले में 4 भारतियों की मौतें हुई थीं.
  • हेलमंद प्रांत में तालिबान ने फादर अलेक्सिस प्रेमकुमार एंटनीसामी का अपहरण कर लिया था.
  • 2014 में र्एंगानिस्तान में भारतीयों के खिर्लों 14 आतंकी वारदातें हुईं, जबकि 2013 में जलालाबाद स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले सहित 3 आतंकी घटनाएं हुई थीं.

भारत का तोहफा है अफगानिस्तान का संसद भवन
अफगान जनता को लोकतंत्र का तोहफा देने के लिए भारत ने काबुल में संसद भवन बनवाया है. भारत ने इसका निर्माण कार्य 2009 में शुरू किया था. संसद भवन में 4 हिस्से हैं-हाउस ऑफ़ पीपुल, ऑफिसर्स हाउस, एंट्रेंस लॉबी और 120 सदस्यों की क्षमता वाला सीनेट हॉल. इसके निर्माण की लागत 710 करोड़ रुपए आई थी, जिसमें करीब 350 करोड़ रुपए भारत सरकार ने दिए थे. इसके निर्माण के लिए 150 विशेषज्ञ भारत से बुलाए गए थे.

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