|| हर मज़हब पाक है, हर मज़हबी पाक नहीं ||

मेरे दोस्त
हर मज़हब पाक है, हर मज़हबी पाक नहीं
ग़रीबी, अमीरी और बीमारी
ये मज़हब देखकर नहीं आती है
ज़िन्दगी और मौत सबकी एक समान होती है

बच्चे की हँसी और ममता का मज़हबों में फ़र्क़ नहीं
बदमाश, आतंकी, बलात्कारी का मज़हब से सरोकार नहीं

हर मज़हब पाक है, हर मज़हबी पाक नहीं

हर मज़हब बना इंसानों के अनुशासन की ख़ातिर
पंडित, मौलाना, पादरी ने देखा उसको स्वार्थ की ख़ातिर

ऐसा दौर चलता रहा और आज यहाँ हम पहुँच गए
जो बांच रहे अपना मज़हब
जो बांच रहे अपना मज़हब
वो मज़हबी अब पाक नहीं

हर मज़हब पाक है, हर मज़हबी पाक नहीं

“जी वेन्कटेश”

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