डॉ.राहुल रंजन

राजनीति में लोग आते जाते रहते हैं। सत्ता कभी है तो कभी नहीं है। परन्तु कुछ लोगों के लिए राजनीति सिर्फ माध्यम होती है जनसेवा करने का। हालांकि जनसेवकों का रूप और स्वरूप इतना बदल चुका है कि इनको पहचान पाना मुश्किल हो गया है। फिर भी उम्मीदों के आसमान पर हमेशा ऐसे बादलों की आस बनी रहती है जो कडी धूप में चंद पलों के लिए सही थोडी राहत तो दे। बीते दो महीनों से लाक डाउन ने ऐसी कमर तोड़ी है कि लोगों को सीधे खडे होने में ढाई बरस से अधिक लग जायेंगे। कुछेक तो कमर सीधी करने के चक्कर में दुनिया से निकल जायेंगे। पर इस बात की चिंता करता कोई राजनेता दिखाई नहीं दे रहा कि वह उन पीडित लोगों की सेवा के लिए उनके साथ खडा है। उसे इस बात की कतई चिंता नहीं कि उनका क्या होगा जिनके भरोसे के टिकट पर वह लालबत्ती में ठाठ से घूम रहा है। कोरोना वायरस ने देश के हर जननेता के चेहरे को बेनकाब किया है। ये इतने संक्रमित हैं कि तमाम दुखद घटनाओं पर भी तौल तौल कर बोल रहे हैं कोई भी ऐसा सामने नहीं आया जो यह कह सके कि मै हूं ना। ट्यूटर का ऐसा लांचिंग पैड नेताओं को मिल गया है कि इससे बैठे बैठे विरोधियों पर निषाना साधते रहते हैं। न कोई घायल होता न ही कोई हताहत और ट्यूटर युद्ध चलता रहता है। नए जमाने का यह युद्ध समझ से परे है आष्चर्य तो इसका है कि इस यु़द्धभूमि पर एक भी सैनिक देष का आम नागरिक नही होता। पर सबसे अधिक खून उसी का बहता है लेकिन कफन भी उसे नही मिलता। मार्च से जून का महीना आ गया। लाक डाउन के चार चरण पूरे और पांचवां शुरू होने को तैयार है मध्यप्रदेश की सियासत की खिचडी में पहली बार नए ब्रांड के घी से छौंका लगाया गया है। यह प्रदेश की सेहत के लिए ठीक होगी या नही यह तो समय बतायेगा पर इतना जरूर है कि कोरोना का वायरस सरकार को संक्रमण से मुक्त नही रख पायेगा। लेकिन अभी तो हमे अपने कमल पटेल से उम्मीद है वह फायर ब्रांड नेता है और साफगोई से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं शायद यही वजह रही जब उन्हें शिवराज ने अपनी टीम में कोरोना काल में ही अपने निकट बैठा लिया। कमल से उम्मीदें बहुत हैं जहां तक उनकी काम करने की तासीर को पहचान सका हूं वह रिश्तों को निभाने के प्रति ईमानदार रहे हैं। चूंकि यह वक्त उनके लिए परीक्षा का है क्योंकि इस समय हर घर का दरवाजा उनकी दस्तक का इंतजार कर रहा है। सत्ता से बाहर रहने पर जोखिम उतना नही होता जितना की सत्ता में रहकर। इसलिए कमल के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। आम लोगों के जीवन की खटिया हिल चुकी है भविष्य की छप्पर पर खपरैल नही है। छोटी छोटी जरूरतें रोज सामने हैं जेब में पैसा नही है रोजगार के रास्ते बंद हैं। मानवीयता और सहानुभूति किसी ने भी नही दिखाई काम करने वालों को चाहे वह कैसा भी काम कर रहे हों उनके मालिकों ने वेतन देने से इंकार कर दिया है। कमल कितना कुछ कर पाते हैं यह वही जाने पर उनसे उम्मीदों के खपरैल जीवन की छत पर चढाने की अपेक्षा है। हरदा के लोगों के लिए यही तसल्ली बहुत है कि उनके कमल मंत्री। सरकार में चाहे किसी भी घी को छौंका लगे हरदा के लिए स्वादिष्ट होगी।

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